गांवों में बाजारीकरण

नई दिल्ली 02-Sep-2024 01:18 PM

गांवों में बाजारीकरण

(सभी तस्वीरें- हलधर)

जीवन-शैली में आया यह बदलाव जहां बाजारवाद को बढावा दे रहा है। वहीं पर कृषि आधारित भारतीय जीवन-शैली, जो स्वदेशी, शाकाहार, स्वावलंबन, स्वसंस्कृति पर आधारित रही है, इसको विकृत करता जा रहा है। गांवों की जीवन-शैली पर इस बाजारू व्यवस्था ने ऐसा असर डाला है कि अब लगता ही नहीं कि ये वही भारतीय गांव हैं, जहां इंसानियत का एक अलग रूप दिखाई पडता था। शहरीकरण की वजह से भाईचारा, खुशमिजाजी और हंसी के फुहारों में सराबोर चौपालों की शामें अब शायद ही किसी गांव में दिखाई पड़ें। वैश्वीकरण के बाद पिछले 40 वर्षों से शहरों और गांवों में बाजारीकरण के कारण जो गैर-बराबरी बढ रही है, उसने गांवों के असली विकास पर सवाल पैदा कर दिया है। अब गांवों में जो विकास दिखता है, वह विकास नहीं। बल्कि, बाजारीकरण की मजबूत होती पैठ है। यही उपभोक्तावाद है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में पिछले 1993-94 से 2012 के दौरान उन ऐशो-आराम की वस्तुओं का उपभोग तेजी से बढा, जो अमूमन शहरी अमीरों के पास हुआ करती थीं। मसलन, जिन गांवों में साइकिल अथवा अपवाद स्वरूप मोटर साइकिल हुआ करती थी, वहां कारें दौडने लगी हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 1993-94 से 2012 के बीच कार रखने वालों का प्रतिशत 12 से बढकर 40 हो गया। दोपहिया वाहनों की संख्या में पांच गुना से अधिक की बढोतरी हुई। यानी गांवों में भी ऐशो-आराम की जिंदगी जीने वालों की संख्या पिछले एक दशक में तेजी से बढी है। इससे यह धारणा बननी शुरू हो गई है कि उपभोग के मामले में गांव शहरों को पीछे छोडते जा रहे हैं। लेकिन, यह विकास गांवों में बाजार की घुसपैठ का नतीजा है। आंकडों की जादूगरी में मन को उलझा देने से असलियत दब जाएगी। इसलिए देखना यह है कि सर्वे रिपोर्ट किस मूल बात को प्रकट करने में चूक गई है। दरअसल, गांवों के असली हालात का सर्वे रिपोर्ट में खुलासा ही नहीं किया गया है। आज भी भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ कृषि ही है। गांवों में रहने वालों में 95 प्रतिशत लोग खेती से ही जीविकोपार्जन करते हैं। और इन खेती करने वालों में 85 फीसदी लोग सीमांत अथवा छोटे किसान हैं। इन 85 प्रतिशत लोगों के पास दोपहिया वाहन नहीं हैं और कार खरीदने का तो सवाल ही नहीं उठता है। गांवों में जिनके पास चार पहिया अथवा दोपहिया वाहन हैं, वह बडे किसान कहे जाते हैं। यानी गांवों में जो उपभोग की वस्तुएं खरीदते हैं, उनकी तादाद 20 प्रतिशत से भी कम ही है। इसलिए पंद्रह प्रतिशत लोगों द्वारा उपभोग की जा रही वस्तुओं के आंकडों से गांवों की खुशहाली का अनुमान लगाना उचित नहीं है। निश्चित रूप से गांव का गरीब अब आधुनिक विकास की दौड़ में शामिल होना चाहता है। लेकिन, पैसे की कमी के चलते वह इस दौड़ में शामिल नहीं हो पा रहा है। बाजारीकरण के बाद निश्चित रूप से गांव की तस्वीर बदली है। लेकिन, यदि विकास से इसे जोडा जाए, तो महज 20 प्रतिशत यानी बड़ी जोत वाले किसानों का विकास हुआ। गांव में बड़ी जोत वाले किसानों के पास ही संपत्ति, जायदाद और व्यापार की मोटी कमाई है। यानी मलाई वही वर्ग छान रहा है, जिसकी जमीन पर बिना जोत वाले किसान काम करते हैं। एक आंकडे के मुताबिक, देश के 11 करोड से ज्यादा किसानों के पास अपनी जमीन नहीं है। पंजाब को सबसे संपन्न प्रांत माना जाता रहा है। लेकिन, कर्ज में डूबकर आत्महत्या करने वाले किसानों की तादाद वहां सबसे ज्यादा है। एनएसएसओ की सर्वे रिपोर्ट बताती है कि गांवों में आजादी के लंबे अंतराल के बाद भी दस प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जिनके पास खर्च करने के लिए बमुश्किल से दस रुपये भी नहीं होते हैं। इस लिहाज से देखा जाए, तो उपभोग और विकास के अंतर्संबंधों में कोई तालमेल नहीं दिखाई पडता है। मतलब, जब तक गांव के सबसे गरीब व्यक्ति और परिवार के पास विकास की किरण नहीं पहुंचती, ग्रामीण विकास का दावा नहीं किया जा सकता। अर्थव्यवस्था की अभी जो दिशा और दशा है, वह ठीक कही जा सकती है। लेकिन, अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। आज जरूरत इस बात की है कि गांवों में रोजगार सृजन के नए अवसर तलाशे जाएं और उन जरूरतों को पूरा करने के लिए कदम उठाए जाएं, जिनकी जरूरत आम आदमी को होती है। मतलब, विकास की किरण गांव के हर तबके तक जानी चाहिए, न कि कुछ गिने-चुने लोगों के पास।


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प्रकाश संश्लेषण सूर्य के प्रकाश को जीवन-ऊर्जा में रूपांतरित करने की नैसर्गिक घटना है और शाकाहार प्राकृतिक दोहन को नियंत्रित करने की मानव की मौलिक प्रकृति-प्रदत्त जीवन शैली। इन्हें प्रोत्साहित किए बिना हमारे जीवित ग्रह को बचा पाना संभव नहीं होगा। प्रकाश संश्लेषण पृथ्वी पर जीवन का आधार है, जिसके माध्यम से हरे पौधे, शैवाल और कुछ जीवाणु सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को ग्लूकोज में परिवर्तित कर ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं। यह नैसर्गिक क्रिया न केवल वनस्पति के साम्राज्य को बनाए रखती है, वरन हमारे सांस लेने के लिए ऑक्सीजन भी प्रदान करती है।