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गर्मी के मौसम में पशु के बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है। लेकिन, यदि देखरेख और खान-पान संबंधी कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखा जाए तो गर्मी में पशु को बीमार होने से बचाया जा सकता है। साथी ही, अगली ब्यांत में अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।
पशुपालन कृषि विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं के विभिन्न पक्ष जैसे भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि का अध्ययन किया जाता है।
प्रदेश में चारागाह अतिक्रमण की भेंट चढ़ते जा रहे है। इसके चलते किसान और पशुपालक के सामने चारे की समस्या साल दर साल गहराती जा रही है। एक दुधारू पशु को प्रतिदिन 5 किलोग्राम हरे चारे और 15 किलोग्राम भूसे अथवा सूखे चारे की आवश्यकता होती है जिसका बाजार मूल्य 75 से 90 रूपए बैठता है। किसान भूसा तैयार करता है तो उसे बायलर और भट्टों में जलाने के लिए ऊचें दाम पर उद्योगपति खरीद लेते हैं।
ऊंट प्रजाति मरुस्थलीय और शुष्क क्षेत्रों में पाया जाने वाला बहुपयोगी पशुधन है। पिछले दो दशकों में ऊंटनी के दूध के औषधीय मूल्यों के कारण दूध उपयोग में वृद्धि और दिलचस्पी बढ़ती देखी गई है।
पशुपालन को वैज्ञानिक विधि से करने पर पशु का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। वहीं, उत्पादन बढऩे से औसत लाभ में भी वृद्धि होती है। पशुपालन की लागत कम करने के लिए पशुपालकों को सामान्य बीमारियों की जानकारी होना जरूरी है।
पशुपालन कारोबार के तौर पर विकसित होने से लोगों की जहां कृषि पर निर्भरता घटी है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारों को स्वरोजगार का एक बेहतर विकल्प मिला है। पशुपालन व्यवसाय को ज्यादा से ज्यादा फायदेमंद बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने भी कई तरीके ईजाद किए हैं।
बीटी कपास की बुवाई के लिए पौधे से पौधे की दूरी 2.5 से 2.5 फीट होनी चाहिए। बुवाई के पश्चात अच्छी बढ़वार और पौध मजबूती के लिए निराई-गुड़ाई करते रहे।
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