दुग्ध उत्पादन: संक्रामक रोग का उपचार जरूरी (सभी तस्वीरें- हलधर)
पशुपालन कारोबार के तौर पर विकसित होने से लोगों की जहां कृषि पर निर्भरता घटी है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारों को स्वरोजगार का एक बेहतर विकल्प मिला है। पशुपालन व्यवसाय को ज्यादा से ज्यादा फायदेमंद बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने भी कई तरीके ईजाद किए हैं। पशुओं के रख-रखाव, आहार प्रबंधन, संक्रामक बीमारियों की रोकथाम, दुग्ध उत्पादन बढ़ाने सहित अनेक नई तकनीक वैज्ञानिक ईजाद कर चुके है। फिर भी जाने-अनजाने पशु कई रोगों के शिकार हो जाते है। पशु रोगों को लेकर हलधर टाइम्स की पशु विशेषज्ञ डॉ. चंद्रशेखर गोदारा से हुई चर्चा के मुख्यांश...
जीवन परिचय
डॉ. चंद्रशेखर गोदारा जोधपुर के रहने वाले है। इन्होंने राजस्थान पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय बीकानेर से पशु पोषण विभाग मे स्नातकोत्तर की उपाधि ली है। डॉ. गोदारा वर्तमान मे भारत सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय मे तकनीकी सलाहकार के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे है। इनके राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय जर्नल मे 3 रिसर्च पेपर और पत्र-पत्रिकाओ मे 2 उपयोगी आलेख प्रकाशित हुए है।
पशुओं की संक्रामक बीमारियों से रक्षा किस प्रकार करें?
पशुओं को समय-समय पर चिकित्सक के परामर्श अनुसार बचाव के टीके लगवा लेने चाहिये। रोगी पशु को स्वस्थ पशु से तुरन्त अलग कर, उस पर निगरानी रखें। रोगी पशु का गोबर, मूत्र और जेर को किसी गड््डे में दबा कर उस पर चूना डाल दें। मरे हुए पशु को जला दें। दूर कहीं 6-8 फुट गड्डे में दबा कर उस पर चूना डाल दें। पशुशाला के मुख्य द्वार पर फुट बाथ बनवाएं । ताकि, खुरों द्वारा लाए गए कीटाणु उसमें नष्ट हो जाएं। पशुशाला की सफाई नियमित तौर पर लाल दवाई अथवा फिनाईल से करें। आपको बता दें कि संक्रामक रोग पशु की दुग्ध उत्पादकता को गिराने में महत्ती भूमिका निभाते है।
सूतक बुखार क्या है?
यह एक रोग है जो अक्सर ज्यादा दूध देने वाले पशुओं को ब्याने के कुछ घंटे अथवा दिनों बाद होता है। रोग का कारण पशु के शरीर में कैल्शियम की कमी को माना जाता है। सामान्यत: ये रोग गाय के 5-10 वर्ष कि उम्र में अधिक होता है। आम तौर पर पहली ब्यात में ये रोग नहीं होता है। इसके उपचार के लिए ग्रोवेल का ग्रो कैल डी-3 दें ।
मिल्क फीवर के लक्षण क्या है?
इस रोग के लक्षण ब्याने के 1-3 दिन तक प्रकट होते है। पशु को बेचैनी रहती है। मांसपेशियों में कमजोरी आ जाने के कारण पशु चलता-फिरता नहीं है। पिछले पैरो में अकडऩ और आंशिक लकवा की स्थिति में पशु गिर जाता है। उसके बाद गर्दन को एक तरफ पीछे की ओर मोड़ कर बैठा रहता है। शरीर का तापमान कम हो जाता है।
हीमोग्लोबिन्यूरिया रोग क्यों होता है?
यह रोग गाय-भैस में ब्याने के 2-4 सप्ताह के अंदर ज्यादा होता है और गर्भावस्था के आखरी दिनों में भी हो सकता है। भैस में यह रोग अधिक होता है। इसे आम भाषा में लहू मूतना भी कहते है। यह रोग शरीर में फास्फोरस तत्व की कमी से होता है। जिस क्षेत्र कि मिट्टी में इस तत्व कि कमी होती है वहाँ चारे में भी ये तत्व कम पाया जाता है। अत: पशु के शरीर में इस तत्व की कमी आ जाती है। फस्फोरस की कमी उन पशुओं में अधिक होती है । जिनको केवल सूखी घास, सूखा चारा अथवा पराल खिला कर पाला जाता है।
पशुशाला को रोगमुक्त कैसे बनाएं?
पशुशाला को हर रोज पानी से झाड़ू द्वारा साफ करना चाहिये। इससे गोबर और मूत्र की गंदगी दूर हो जाती है। पानी से धोने के बाद एक बाल्टी पानी में 5 ग्राम लाल दवाई (पोटेशियम परमेग्रेट) अथवा 50 मिली लीटर फिनाईल डाल कर धोना चाहिये। इस से जीवाणु जूं, किलनी और विषाणु इत्यादि मर जाते हैं। पशुओं की बीमारियां नहीं फैलती और स्वच्छ दूध उत्पादन में मदद मिलती है।
लंगड़ा बुखार की छूत क्या है? रोग फैलने पर बचाव कैसे संभव है ?
रोग फैलने पर पशु चिकित्सक से तुरन्त संपर्क करे। पशु को रोग से बचाव का टीका लगवाएं। छूत फैलने से रोकने के लिये मरे पशु को भूमि में 2-2.5 मीटर की गहराई तक चूने से ढ़क कर दबा देना चाहिये। जिस पशुघर में पशु की मृत्यु हुई हो, उसे फिनाईल मिले पानी से धोना चाहिये। कच्चे फर्श की 15 सेंटीमीटर गहरी मिट्टी में चूना मिला कर वहाँ बिछा दें। गौ जाति के पशुओं में यह रोग खाने-पीने की वस्तुओं द्वारा फैलता हैं। जबकि भेड़ों में ऊन उतारने, पूंछ काटने और नपुंसक करने के पश्चात ही होता है।