गर्मियों में पशुओं की देखभाल (सभी तस्वीरें- हलधर)
गर्मी के मौसम में पशु के बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है। लेकिन, यदि देखरेख और खान-पान संबंधी कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखा जाए तो गर्मी में पशु को बीमार होने से बचाया जा सकता है। साथी ही, अगली ब्यांत में अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। एक दुधारू पशु को प्रतिदिन 5 किलोग्राम हरे चारे और 15 किलोग्राम भूसे अथवा सूखे चारे की आवश्यकता होती है जिसका बाजार मूल्य 75 से 90 रूपए बैठता है। किसान भूसा तैयार करता है तो उसे बायलर और भट्टों में जलाने के लिए ऊचें दाम पर उद्योगपति खरीद लेते हैं। इस तरह भूसे का अकाल बढ़ रहा हैं। साथ ही, पशु कुपोषण की समस्या से साधारण पशुपालक के लिए पशुपालन बूते से बाहर हो रहा है। भूखा और कुपोषित जानवर कब तक और कितना दूध देगा? यह सोचनीय और चिन्तनीय हैं। गर्मी के मौसम में यह समस्या विकराल रूप ले लेती है। कुपोषित पशु गर्मी का शिकार होना शुरू हो जाता है। गर्मियोंं में पशु प्रबंधन पर हलधर टाइम्स की डॉ. अनिल कुमार लिंबा से हुई वार्ता के मुख्यांश...
जीवन परिचय
डॉ. अनिल कुमार लिम्बा नागौर के टांकला गाँव से ताल्लुक रखते है। इन्होंने वर्ष 2016 में पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर से स्नातकोत्तर की उपाधि ली है। इनके 5 शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका में प्रकाशित हो चुके है। वर्तमान में पशु चिकित्सालय पांचोड़ी में पशु चिकित्सा अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं दें रहे है। उत्कृष्ट सेवाओं के लिए डॉ. लिम्बा को दो बार जिला प्रशासन के द्वारा ब्लॉक स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है।
गर्मी में लू से कौनसी नस्ल ज्यादा प्रभावित होती है।
गर्मियों में जब तापमान बहुत अधिक हो जाता है। वातावारण में नमी अधिक बढ जाती है जिससे पशु को लू लगने का खतरा बढ़ जाता है। अधिक मोटे पशु अथवा कमजोर पशु लू के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं। ज्यादा बालों वाले अथवा गहरे रंग के पशु को लू लगने की घटना ज्यादा देखी गयी है। विदेशी अथवा संकर नस्ल के पशु में लू लगने का खतरा ज्यादा होता है। यदि बाढे में बहुत सारे पशु रखे जाएं तो भी लू लगने की आशंका बढ़ जाती है। यदि पशु के रहने के स्थान में हवा की निकासी की व्यवस्था ठीक न हो तो पशु लू का शिकार हो सकता है।
लू के लक्षण पशु में किस तरह नजर आते है?
पशु के शरीर का तापमान बढ़ जाने के साथ-साथ पशु का बेचैन रहने लगता है। पशु में पसीने और लार का स्रावण बढ़ जाना, भोजन लेना कम अथवा बंद कर देना, पशु का अत्यधिक पानी पीना और ठन्डे स्थान की तलाश और पशु का उत्पादन कम हो जाता है।
लू से पशुधन का बचाव कैसे किया जाए?
पशु को दाना कम तथा रसदार चारा अधिक दें। पशु को आराम करने देना चाहिए। पशु चिकित्सक की सहायता से फ्लूड थेरेपी दी जानी चाहिए । पशु को बर्फ के टुकड़ेे चाटने के लिए उपलब्ध करवाएं। पशु को हवा के सीधे संपर्क से बचाना चाहिए।
गर्मी के मौसम में अपच की समस्या भी आम होती है। इसके क्या कारण है।
गर्मियों में अधिकतर पशु चारा खाना कम कर देता है और खाने में अरुचि दिखाता है। इससे पशु को बदहजमी हो जाती है। इस समय पशु को पौष्टिक आहार न देने पर अपच व् कब्ज लगने की संभावना होती है। इसके पीछे के कारणों में अधिक गर्मी होने पर कई बार पशु मुंह खोलकर साँस लेता है जिससे उसकी लार बाहर निकलती रहती है। साथ ही, पशु शरीर को ठंडा रखने हेतु शरीर को चाटता है जिससे शरीर में लार कम हो जाती है। एक स्वस्थ पशु में प्रतिदिन 100-150 लीटर लार का स्त्रवण होता है जो रुमेन में जाकर चारे को पचाने में मदद करती है। लार के बाहर निकल जाने पर रुमेन में चारे का पाचन प्रभावित होता है जिससे गर्मियों में अधिकतर पशु अपच का शिकार हो जाता है।
बदहजमी की स्थिति में पशुपालक को क्या उपाय करने चाहिए।
पशु को उसकी इच्छानुसार स्वादिष्ट राशन उपलब्ध करवाएं। यदि 1-2 दिन बाद भी पशु राशन लेना न शुरू करे तो पशु चिकित्सक की मदद लेकर उचित उपचार करवाना चाहिए। आजकल पशुपालकों के पास भूसा अधिक होने से वह पाने पशुओं को भूसा बहुतायत में देते हैं ऐसे में पशुओं का हाजमा दुरुस्त रखने ओर उत्पादन बनाएं रखने के लिए पशु को संतुलित आहार देना चाहिए। इससे पशु का हाजमा दुरुस्त होगा और दुग्ध उत्पादन भी बढेगा।
असंतुलित आहार किन समस्याओं को जन्म देता है?
असंतुलित आहार के कारण पशु में आनुवंशिक क्षमता से कम दुग्ध उत्पादन, छोटा दुग्ध-काल और दो ब्यांत के बीच अधिक अंतराल, प्रजनन क्षमता में कमी, पशु में उपापचयी समस्या जैसे कि मिल्क-फीवर, कीटोसिस की सम्भावना और धीमा शारीरिक विकास जैसी हानि उठानी पड़ती हैं।
पशुपालक चारे की पौष्टिकता को कैसे बढ़ा सकता है ?
हरे चारे की कमी के कारण पशु की निर्भरता रेशेदार सूखे चारे पर अत्यधिक बढ़ जाती है। अत: सूखे चारे की पौष्टिकता बढ़ाने में यूरिया घोल, यूरिया-शीरा, खनिज तरल मिश्रण और यूरिया शीरा खनिज ब्लॉक सहायक होते हैं। स्थानीय उपलब्धता के अनुसार अरडू, खेजड़ी, बबूल, पीपल, नीम, गूलर, बरगद, शहतूत आदि की पत्ती पशु को खिलानी चाहिए। सरसों की पत्ती और दूसरे हरे चारे को, सूखी घास और कडबी के साथ कुट्टी बनाकर खिलाने से चारा व्यर्थ नहीं जायेगा। आहार में खनिज लवण की कमी को दूर करने के लिए पशु को प्रतिदिन 50 ग्राम मिनरल मिक्सचर पाउडर खिलाना जरूरी रहता हैं।