त्राहिमाम सरकार, त्राहिमाम सरकार
(सभी तस्वीरें- हलधर)लेकि न, खेती-किसानी करना उतना ही मुश्किल। क्योंकि, खेती इंतजार नहीं करती। समय निकलने के बाद स्थिति चिडिय़ा के खेत चुगने जैसी होती है। सालभर पूरा होने का जश्न मनाना ठीक है। लेकिन, किसानों को अनुदान के लिए तरसाना कहां तक ठीक है? गौरतलब है कि सरकार ने प्रदेश के 70 लाख किसानों को 700 करोड़ रूपए किसान सम्मान निधि के रूप में देने का दावा किया। लेकिन, इसका स्याह पहलू यह है कि सरकारी निधि से ज्यादा तो किसान बैंकों में ब्याज का भुगतान कर चुका है। उनके हालात यह है कि अनुदान अटक जाने से कर्ज का भार तो बढ़ा ही है। वहीं, प्रोजेक्ट का श्री गणेश तक नहीं हो पाया है। ऐसे में किसान कल्याण के दावे की पोल स्वत: ही खुलती नजर आ रही है। सरकार का यह कारनामा ठीक वैसे ही लग रहा है, जैसे सालगिरह नहीं आती तो कृपा ही नहीं होती। बीते एक साल में कृषि और पशुपालन क्षेत्र को देखे तो ऐसा कुछ हुआ ही नहीं, जो जश्र मनाने लायक हो। किसान अब भी खाद, बीज, बिजली, पानी, उपज की सरकारी खरीद की समस्या से जूझ रहा है। यानी, खेती और अन्नदाता पहले भी आईसीयू में था और सरकार बदलने के बाद भी आईसीयू में ही नजर आ रहा है। आमजन के साथ-साथ किसानों को अहसास ही नहीं हो रहा कि प्रदेश में नई सरकार का एक साल पूरा हो चुका है। भले ही सरकार ने एक साल पूरा होने पर किसानों पर सरकारी खजाना लुटाने के लंबे-चौड़े इश्तिहार दिए हो। लेकिन, हकीकत यह है कि सरकार ने बीते एक साल मेें किसानों को फूटी कौढ़ी भी नहीं दी है। लाखों-करोड़ों की सौगात, जो भी किसानों को मिली है, वह राज्य और केन्द्र परिवर्तित योजनाओं के बदले मिलने वाली अनुदान राशि है। जिसे सरकार ने एक साल की उपलब्धि गिनाने के लिए अटकाए रखा और प्रदेश के किसानों की समृद्धि को भटकाए रखा। गौरतलब है कि सरकार ने वर्ष 2023-24 और वर्ष 2024-25 का अनुदान ही किसानों को जारी किया है। सरकार के एक साल के सुशासन पर नजर डाले तो प्रशासन की बिगड़ती स्थिति, रेप, गैंगरेप और पॉस्कों के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। 90 लाख लाभार्थियों की सामाजिक सुरक्षा पेंशन तीन महीने से ज़्यादा समय से अटकी हुई है। दो लाख से ज़्यादा बेरोजग़ार युवा अपने भत्ते का इंतज़ार कर रहे हैं। अप्रैल-जून तिमाही में राजस्थान से होने वाले निर्यात में 38 फीसदी की गिरावट आई है। राज्य के कानून मंत्री जोगाराम पटेल के बेटे मनीष पटेल को अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त किए जाने का मामला काफी उछला है। हालांकि मनीष ने इस्तीफा सौंप दिया था। लेकिन, इस पर भी अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है। राजस्थान के बजट में बिजली, सड़क और पानी पर जोर दिया गया है, जिससे कुछ लोगों को उम्मीद जगी है कि इससे हालात कुछ बेहतर हो सकते हैं, हालांकि, इससे अभी तक कोई फायदा नहीं मिला है। बिजली कटौती बढ़ गई है और बिजली बिलों में बदलाव किए गए हैं। 100 यूनिट मुफ्त बिजली के लिए रजिस्ट्रेशन भी बंद कर दिया गया है। यहां तक की विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी भी विधानसभा के बढ़े हुए बिजली बिल से परेशान हो गए और उन्होंने इसकी जांच के आदेश दिए हैं। नए जिलों को लेकर सरकार फैसला नहीं कर पाई। एसआई भर्ती परीक्षा रद्द करने का मामला ज्यो को त्यों अटका पड़ा है। प्रदेश के कृषि और पशु विज्ञान विश्वविद्यालयों में एक साल बाद भी प्रबंधन मंडल के सदस्य मनोनीत नहीं हो पाए। विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की बढ़ती मनमानी, भ्रष्टाचार के मामले और भर्तियों में धांधली अलग की सुर्खिया बटोर रही है। लेकिन, सरकार बीते एक साल में इन मामलों की जांच कराने तक की फुरसत नहीं निकाल पाई है। लंबित फसल बीमा क्लेम का भुगतान किसानों को नहीं मिल पाया है। अनार, अमरूद अब भी प्रसंस्करण की बाट जोह रहे है। जैतून और खजूर की खेती अपने दुर्दिनों पर आंसू बहा रही है। मेगा सहित मिनी फूड पार्को की स्थापना पर धूल जमी हुई है। प्रसंस्करण यूनिट लगाने वाले किसानों को समय पर अनुदान उपलब्ध नहीं हो रहा है। रेगिस्तान का जहाज यानी ऊंट के साथ-साथ उसके पालक भी डूबते जा रहे है। किसान एमएसपी पर फसल खरीद की उम्मीद में बैठा है।
किसान सम्मेलन और सच्चाई
जयपुर। किसानों के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी की अगुवाई में कायड-अजमेर में विशाल किसान सम्मेलन आयोजित हो चुका है। सम्मेलन के दौरान राज्य सरकार किसानों को लाखों-करोड़ो रूपए की सौगाते दे चुकी है। लेकिन, हकीकत यह है कि सरकार ने सालभर के शासन के दौरान किसानों को एक पाई भी नहीं दी है। जिन किसानों ने शैडनेट, पॉली हाउस, ड्रिप, सौर उर्जा पंप, प्रसंस्करण इकाई, फव्वारा, ड्रिप, फार्मपौंड, पाइपलाइन, तारबंदी, डिग्गी, वर्मी कम्पोस्ट इकाई के लिए अपनी हिस्सा राशि जमा करवाई, उनको योजना के तहत देय अनुदान राशि जारी की है। लेकिन, कहते है कि हाथी के खाने के दांत और दिखाने के दांत और होते है। सरकार का यह प्रयास भी ठीक वैसा ही है। सरकार की सालगिरह के चक्कर में अनुदान राशि अटकने से किसानों को ब्याज का बोझ बढ़ा है। ऐसे किसानों की संख्या एक दो नहीं, बल्कि, सैकड़ो में है। गौरतलब है कि प्रदेश के अधिकांश किसान लघु और सीमांत श्रेणी में आते है। किसी भी बड़े प्रोजेक्ट के लिए किसान बैंक से ऋण लेते है। ताकि, प्रोजेक्ट समय पर पूरा हो जाएं। लेकिन, इसका समुचित लाभ तभी मिलता है, जब सरकार से योजना के तहत देय अनुदान राशि समय पर मिल जाएं। अन्यथा किसान को चक्रवृद्धि ब्याज का मर्ज झेलना ही पड़ता है। इस बात में कोई दौराय नहीं है। एक साल के मौके पर प्रदेश की भजन सरकार के द्वारा गिनाई गई उपलब्धियों पर गौर किया जाएं तो पुरानी योजनाओं को नए कलेवर में पेश करने और दो वित्तीय वर्षो की अनुदान राशि को एक साथ जारी करने के सिवाए सरकार ने खेती किसानी के लिए कुछ नहीं किया है।
राइजिंग राजस्थान के एमओयू
सबसे अधिक 2333 एमओयू कृषि विपणन क्षेत्र में किए गए हैं, जिनकी कुल लागत 45,489 करोड़ रुपये है। इसके बाद उद्यानिकी क्षेत्र में 8835 करोड़ रुपये के 121 एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। जबकि कृषि विभाग में 2757 करोड़ रुपये के 23 एमओयू किए गए हैं। बीज निगम में 119 करोड़ रुपये के 4 एमओयू और जैविक प्रमाणीकरण संस्था में 148 करोड़ रुपये के 9 एमओयू भी किए गए। कहा गया है कि राजस्थान में कृषि और संबद्ध विभागों से जुड़े महत्वपूर्ण एमओयू हस्ताक्षर किए गए हैं, जिनका कुल निवेश 57,340 करोड़ रुपये है।
हकीकत ये भी
प्रदेश की पूववर्ती सरकार के समय पशुपालन के क्षेत्र में एक भी एमओयू नहीं हुआ। वसुंधरा राजे सरकार के समय इस क्षेत्र में आधा दर्जन करीब एमओयू हस्ताक्षर हुए। इनमें से एक-दो एमओयू धरातल ले पाएं। इसी तरह प्रसंस्करण के क्षेत्र में हुए एमओयू की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। बात करें गहलोत सरकार की तो कृषि प्रसंस्करण, कृषि व्यवसाय एवं कृषि निर्यात प्रोत्साहन नीति-2019 के तहत 617 प्रोजेक्ट मंजूर हुए। इनमे से 338 प्रोजेक्ट पर 119 करोड रूपए की सब्सिडी सरकार के द्वारा जारी की गई। ये वो प्रोजेक्ट है, जो वेयर हाउस, केटल फीड उद्यमों के साथ तिलहन, दलहन, मसाले, मूंगफली, कपास, दूध और अनाज प्रोसेसिंग इकाई स्थापना से जुड़े है। ऐसे में सरकार के निवेश के दांवो और धरातल की स्थिति का अंदाजा स्वत: ही लगाया जा सकता है। सूत्रो का कहना है कि कृषि और सम्बद्ध क्षेत्र में अब तक हुए एमओयू का 10-15 फीसदी भी धरातल पर उतर जाते तो प्रदेश के कृषि परिदृश्य में स्वत: ही बड़ा बदलाव देखने को मिल जाता है। किसानों को एमएसपी गांरटी मांगने की जरूरत नहीं होती।
अनुदान से थोथी वाह-वाही
अब नजर डालते है कायड किसान सम्मेलन के दौरान किसानों को दी गई सौगात की। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा प्रदेश के 70 लाख से अधिक किसानों के बैंक खातों में मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि की दूसरी किश्त के रूप में 700 करोड से अधिक की राशि का सीधा हस्तान्तरण किया। वहीं, 15 हजार 983 किसानों को ड्रिप-फव्वारा संयंत्रों के लिए 28 करोड रूपये से अधिक, 17 हजार से अधिक किसानों को फार्म पौण्ड, पाइपलाइन, तारबन्दी, डिग्गी निर्माण, कृषि यंत्र, जैविक खाद सहित विभिन्न कार्यों के लिए 74 करोड रुपये से अधिक की राशि और सोलर पंप स्थापना संवेदन के 80 करोड रुपये डीबीटी के माध्यम से हस्तांतरित की जाएगी।
हकीकत : किसान सम्मान निधि के तहत जारी राशि की बात करें तो जितनी राशि सरकार ने किसानों के बैंक खाते में हस्तान्तरित की है, उससे ज्यादा का ब्याज किसान भुगत चुके है। क्योंकि, सरकार ने वर्ष 2023-24 और मार्च 2024 से लेकर अब तक योजनाओ का अनुदान रोके रखा। समय पर अनुदान राशि नहीं मिलने से किसानों को ब्याज का बोझ बढ़ गया। वहीं, प्रोजेक्ट भी समय पर शुरू नहीं हो पाए है।
पुरानी योजना पर नया कलेवर
सम्मेलन के दौरान मुख्यमंत्री मंगला पशु बीमा योजना, ऊँट संरक्षण एवं विकास मिशन और 100 गौशालाओं में गौ काष्ठ मशीन उपलब्ध करवाने के कार्य का शुभारम्भ किया। साथ ही, 200 नए बल्क मिल्क कूलर्स, एक हजार नए दूध संकलन केन्द्रों की भी शुरूआत की गई। इसके अतिरिक्त गोपाल क्रेडिट कार्ड योजना के अन्तर्गत 20 हजार गोपालकों को 1 लाख रूपये तक का ब्याजमुक्त ऋ ण प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा, सीकर जिले से एग्रीस्टेक के माध्यम से किसानों का पंजीकरण एवं ऑनलाइन माध्यम से सीमाज्ञान के आवेदन एवं सहमति विभाजन नामांतरण प्रक्रिया का प्रारंभ किया गया।
हकीकत : प्रदेश में पशु बीमा योजना पहले से ही क्रियान्वित होती आई है। हर बार योजना का नाम बदला गया। लेकिन, बीमा योजना का समुचित लाभ पशुपालकों को समय पर नहीं मिल पाया। ऊंष्ट्र संरक्षण योजना भी काफी पुरानी है। सरकार ने केवल इसका नाम बदला है और योजना के तहत देय अनुदान को दोगुना किया है। गौकाष्ट मिशन, गोपालकों को क्रे डि़ट कार्ड योजना भी पुरानी है। सीकर जिले में एग्रीस्टेक का शुभारंभ केन्द्र सरकार की पहल है। जो देशभर में लागू है। केन्द्र सरकार के रिपोर्ट कार्ड को देखे तो इस योजना में राजस्थान अभी फिसड्डी साबित हो रहा है। सरस डेयरी सूत्रों ने बताया कि 200 करोड़ रूपए में से चवन्नी भी किसान और पशुपालक के बैंक खाते में डीबीटी नहीं हुई है।
चर्चा में डॉ करोड़ी की दूरी
प्रदेश के कृषि उद्यानिकी मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीना की किसान सम्मेलन से दूरी चर्चा का विषय बनी हुई है। उल्लेखनीय है कि सम्मेलन के लिए डॉ. मीना का नाम विशिष्ट अतिथी में शामिल था। लेकिन, वो सम्मेलन में पहुंचे ही नहीं। गौरतलब है कि राइजिंग राजस्थान समिट में भी डॉ. किरोड़ी को लेकर संशय था। लेकिन, उन्होंने कार्यक्रम में पहुंचकर सबको चौका दिया था।
ये बात भी पुरानी
इसी प्रकार, प्रदेश के 3 लाख 25 हजार पशुपालकों को 5 रूपए प्रति लीटर के आधार पर 200 करोड रूपए की सहायता राशि डीबीटी के माध्यम से हस्तांतरित की गई। साथ ही, कृषि शिक्षा को बढावा देने के लिए कृषि संकाय में अध्ययनरत 10 हजार 500 छात्राओं को 22 करोड रूपए प्रोत्साहन राशि भी डीबीटी की गई। यह दोनो ही योजनाएं कई सालों से चली आ रही है। इसमें सरकार ने कुछ नया नहीं किया है। क्योंकि, पांच रूपए प्रति लीटर की दर से भुगतान और बालिकाओं को कृषि शिक्षा के लिए राशि बढौत्तरी का फैसला प्रदेश की पूववर्ती सरकार के समय ही अमल में आ चुका था।
किसान के हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है। किसान अब भी एमएसपी की समस्या स जूझ रहा है। फसल बुवाई के समय डीएपी नहीं और सिंचाई के समय यूरिया नहीं। इस स्थिति में किसान फसल पैदा करें। यह सोचनीय और चिंतनीय है। सरकार किसान को समय पर आदान उपलब्ध करा दें, वही सबसे बड़ी सौगात होगी।
विमल मीणा, समरावता, टोंक
सरकार जल बचत को प्रोत्साहित कर रही है। फार्मपौंड, जलहौज, डिग्गी का निर्माण करवा रही है। लेकिन, किसानों को जल संरचना निर्माण के बाद समय पर अनुदान नहीं मिल पा रहा है। यदि सरकार किसानों का कल्याण चाहती तो अनुदान जारी करने के लिए सालगिरत का इंताजार नहीं करवाती। यह स्थिति सरकार की कथनी और करनी के अंतर को स्पष्ट रूप से समझा रही है।
रामधन गुर्जर, जयपुर
सरकार ने अपने वादे के मुताबिक एमएसपी पर बाजरे की खरीद सुनिश्चित कर दी होती तो भी किसान इसे भजनलाल सरकार की बडी सौगात समझ लेते। लेकिन, सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। मौजूदा खरीफ सीजन में किसानों को मूंग, मक्का, बाजरा के उचित दाम नहीं मिल रहे है। किसानों को प्रति क्ंिवटल दो से तीन हजार रूपए का आर्थिक नुकसान उठाना पड रहा है। किसान बार-बार फसल की खरीद सीमा को बढाने की मांग कर रहे है। एमएसपी पर खरीद की गारंटी सरकार से मांग रहे है। लेकिन, सरकार अभी मौज मस्ती में डूबी हुइ है। सरकार ने किसानों को दिन में सिचाई के लिए बिजली उपलब्ध कराने का वादा किया था। लेकिन, अब मुख्यमंत्री भजन लाल ने वर्ष 2027 तक बिजली उपलब्ध कराने की बात कही है। यह किसानों के साथ मजाक नहीं तो और क्या है।
रामेश्वरलाल जाट, प्रदेशाध्यक्ष, युवा किसान महापंचायत
वर्ष 2012 से ही किसान कृषि कनेक्शन के इंतजार में है। सरकार के निर्देशानुसार किसानों ने डिमांड राशि का भुगतान भी कर दिया है। लेकिन, बिजली का कनेक्शन अब तक नहीं मिल पाया है। किसान अब भी कृषि कनेक्शन की बाट जोह रहे है। किसानों को दिन छोड़ रात के समय भी पर्याप्त बिजली नहीं मिल पा रही है। जबकि, प्रदेश में उत्पादित बिजली को दूसरे प्रदेशों को बेचकर सरकार मोटा मुनाफा कमा रही है।
-नंदलाल मीणा, दूदू
प्रदेश में औषधीय और सुगंधीय पादप खेती की जानकारी के लिए किसान को यहां-वहां भटकना पड़ता है। इस ओर भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया है। औषधीय फसलों की खेती को कोई विशेषज्ञ सरकार के पास नहीं है। बांस की खेती को लेकर सरकार के पास कोई योजना नहीं है। जो किसान प्रसंस्करण यूनिट लगाना चाहता है, उसके लिए कोई सरल और प्रभावी योजना नहीं है। और जिन किसानों ने बैंक से प्रोजेक्ट स्वीकृत करवाकर प्रसंस्करण यूनिट लगा ली तो उनको अनुदान प्राप्त करने केलिए सालभर इंतजार करना पड़ रहा है। इससे बैंक का ब्याज किसान पर आर्थिक बोझ बन रहा है।
बत्तीलाल मेघवाल, बाडमेर
औषधी उत्पादक किसानों के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं हैं। उचित विपणन और प्रोसेंसिग सुविधा के अभाव में औषधी उत्पादक के लिए लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा हैं। बीमा योजना का लाभ भी किसान को समय पर नहीं मिल रहा हैं।
जगदीश प्रजापति, चित्तौडग़ढ
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किसान की समस्याओं को जानने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों को गांवों में रात्रि कैम्प आयोजित किया जाएं। हालात यह है कि कृषि अधिकारी किसान की सुनते नहीं है। इस कारण सरकार की योजनाओं का लाभ किसान को नहीं मिल पा रहा है। जैविक उपजाने वाले किसान को उचित भाव नहीं मिल पा रहे है।
नाथूलाल कुम्हार
सालभर करवाया भजन, सालगिरह पर हाथ में कमंडल
भाईयों और बहिनों, जैसा की आप देख रहे है देश-परदेस में राइ जिंग राजस्थान की धूम मची है। ये डबल इंजन सरकार का ही कमाल है। किसी ने सोचा नहीं होगा कि पहले साल में यह सब होगा। ये जनता का विश्वास ही है, जो हमें मजबूती दे रहा है। हमने एक साल के भीतर ही उठता राजस्थान (राइजिंग राजस्थान) बना दिया है। आप का विश्वास बना रहा तो उड़ता राजस्थान बनते भी आप देखेंगे। हम आपके खून-पसीने की कमाई को ऐसे ही जाया नहीं जाने देंगे। लाख रूपए टर्न वाले रहेड़ी वालों को भी कारोबारी और छोटे खोमचे वालो को बेशकीमती जमीन देकर बड़ा शोरूम खुलवा देंगे। राई को पहाड़ और पहाड़ को राई बनाने में हम माहिर रहे है। आगामी दो साल में 35 लाख करोड़ तो क्या, गधों के सिर सींग उगते भी आप देखेंगे। क्योंकि, एक्सचेंज आफर कारोबार में भी चलता है, एक्सचेंज ऑफर अब पॉलिटिक्स में भी धुआंधार चलने लगा है। इस हाथ ले, उस हाथ ले, टाइप ऑफर पॉलिटिक्स में बहुत धुआंधार चलने लगे हैं। हम इस तरह की नयी-नयी स्कीम बना रहे है, जिसमें लूट सके तो लूट की तर्ज पर देसी-विदेशी निवेश को बढावा मिलने वाला है। आधा रेगिस्तान लुटा दिया है। वन्य जीवों के साथ पशु-पक्षियों के प्राणों को सौर के झटके से उड़ा दिया है। खेजड़ी अब आईसीयू में सांसे गिन रही है। सड़क, नहर के चक्कर में उपजाऊ जमीन अब किसान के हाथ से छीन रही है, उचित मुआवजे की आस में किसान की आंखे भर रही है। सरकारी खरीद में मजाकियां और मक्कारियां चल रही है। लेकिन, सरकार यही नहीं रूकेंगे। होशियार चतुर कारोबारी की तरह आपको तारे जमी पर दिखाकर ही दम लेंगी। यानी, राई जितना राजस्थान बनने तक हम चैन से नहीं बैठेंगे। अभी नई-नई दुकान जमा रहे है। आंख वालो के हाथ में अपने तरीके से बटेर पकड़ा रहे है। मान-मनुहार का दायरा बढ़ा रहे है। उठते राजस्थान में भूख के बदले भजन करवा रहे है। ज्यादा प्लेट लगाकर खाना कम बनवा रहे है। ये महारानी की सरकार थोडी है, जो खाना ज्यादा और मुंह कम पड़ जाएं। समय पर गांव-गरीब-किसान का भला हो जाएं। ये उठता राजस्थान है। जिसमें अन्नदाता को अनुदान के लिए सालभर तरसा रहे है। उसके कर्ज और मर्ज को और बढा रहे है। यानी हम राई नहीं देंगे। लेकिन, राई का पहाड़ जरूर बना देंगे। यकीन ना हो तो अखबारों में छपे लंबे-चौडे विज्ञापनों को देख लिजिए। कैसे हम किसानों के हाथों में रीता कमंडल थमाकर उनसे भजन करवा रहे है। पता ही नहीं चला उन्हें कि एक साल के मौके पर उनकी सुबह हुई है या शाम। हाथ में पत्रा लिए हमने साल भर का लेखा-जोखा बाच दिया। सभी आश्चर्यचकित थे। क्योंकि, उनको लग रहा है कि ऊपर वाला तो छप्पर फाडकर देता नहीं है। लेकिन, सरकार जरूर बादल फाड़कर ही बरसती है, सो यह मुहावरा भी चल ही जाएगा। खैर, अब थोडे दिन बाद में यह बताया जाएगा कि कडाके की सर्दी के चलते पारा शून्य से नीचे जा सकता है। सरकारी पॉलिसी के नीति नियमों के चलते फलां-फलां एमओयू पर पाला जम सकता है। इससे उठते राजस्थान को नुकसान हो सकता है। ऐसे में जिन्हें नाज है राजस्थान पर वो कहां हैं, की तर्ज पर यह पूछ लेना चाहिए कि अब तक जो मुरीद हुए थे राजस्थान के- वो कहां हैं, कहां हैं। गर्मी में गर्मी बढ रही है। सर्दी में सर्दी बढ रही है। तो फिर, पांच सितारा मौज मस्ती करवाने के बाद भी निवेश क्यों नहीं बढ़ रहा ? निभाई जिम्मेदारी तो हर घर खुशहाली छोड़, किसानों का खाद-बीज-बिजली-पानी का सपना साकार क्यों नहीं हो रहा। लेकिन, मौसम के जैसे बदलती सरकारों की मुफ्तखोरी से आत्मनिर्भरता की सीनाजोरी को किस सांचे में डाले। सोच कर बताइए तो!
-पीयूष शर्मा