एनपीके + गोबर खाद, शताब्दी तक स्वस्थ-खुशहाल
(सभी तस्वीरें- हलधर)एमपीयूएटी की शोध रिपोर्ट: दीर्घकालीन उर्वरक परीक्षण परियोजना
पीयूष शर्मा
जयपुर। यूरिया भूमि को बंजर बनाने के साथ मंहगे बीजों का दम भी निकाल रहा है। साथ ही, किसानों के लिए कंगाली में आटा गीला की कहावत को भी सटीकता देता नजर आ रहा है। लेकिन, किसानों में यूरिया इस्तेमाल को लेकर अजीब होड़ मची है। यदि इस पर रोक नहीं लगी तो छोटी जोत धारक किसानों को निकट भविष्य में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। इस बात का खुलासा हुआ है, महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा मक्का और गेहंू फसल पर किए गए एक शोध में। शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरिया, कृषि के साथ-साथ मृदा-पानी, पर्यावरण, मानव, जीव-जंतु के स्वास्थ को निगल रहा है। साथ ही, फसल उत्पादन की लागत भी बढ़ा रहा है। इसके बावजूद भी किसानों को आशातीत उत्पादन नहीं मिल पा रहा है। यह शोध परिणाम है आईसीएआर, नई दिल्ली द्वारा वित्तपोषित दीर्घकालीन उर्वरक परीक्षण परियोजना के। इस परियोजना की शुरूआत वर्ष 1997 में हुई थी। परियोजना के तहत मक्का और गेहूं की फसल पर शोध कार्य जारी है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मेवाड़ के किसान केवल यूरिया उपयोग तक सीमित होकर रह गए है। लेकिन, उन्हें यह पता नहीं है कि जिस यूरिया पर वो इतना पैसा खर्च रहे है, वह मंहगे बीजों का दम घोटने और उत्पादन निगलने का काम कर रहा है। परियोजना के मुख्य अन्वेषक डॉ. रामहरि मीना ने बताया कि योजना के तहत गेहूं और मक्का फसल में उर्वरक प्रबंधन पर शोध किया जा रहा है। जिसमें जैविक, अजैविक (उर्वरक) और मिश्रित यानी तीन तरह से फसल का उत्पादन लेकर देखा गया है। जिसमें सबसे सकारात्क परिणाम उर्वरक और गोबर खाद के सामने आए है। उनका कहना है कि यदि किसान ने संतुलित उर्वरक और गोबर की खाद फसल को दे दी तो एक शताब्दी तक पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं है। साथ ही, मानव और पर्यावरण पर भी कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा।
शताब्दी तक स्वस्थ-खुशहाल ऐंसे
उन्होने बताया कि शोध के तहत दर्जन भर तरीके से मक्का और गेहंू का उत्पादन लिया गया है। जिसमें सबसे उम्दा परिणाम एनपीके+ गोबर खाद के सामने आये है। इस विधि से मृदा-पानी, मानव और पर्यावरण स्वास्थ्य को भी शताब्दी तक स्वस्थ रखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि फसल में इस उपचार के अलावा किसान बायो फर्टीलाइजर का उपयोग कर लेता है तो औसत उत्पादकता से 10-12 फीसदी की बढौत्तरी देखने को मिलती है। उन्होंने बताया कि किसान नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम की निर्धारित मात्रा के साथ 10 टन प्रति हैक्टयर गोबर खाद का उपयोग करें तो सारी चिंताए दूर हो सकती है। उन्होने बताया कि इस विधि से मक्का की प्रताप हायब्रिड़- 3 किस्म और गेहूं की राज 4037 कि स्म का औसत उत्पादन प्राप्त हुआ है। गौरतलब है कि मक्का और गेहंू की इन किस्मों का प्रति हैक्टयर क्रमश: 40-45 और 45-50 क्ँिवटल है।
कंगाली में गीला आटा
उन्होने बताया कि जो किसान फसल में केवल यूरिया डाल रहे है। वह सीधे तौर पर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे है। इससे मृदा, पानी, मानव-पर्यावरण के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव आ रहा है। साथ ही, उत्पादकता में भी गिरावट आ रही है। उन्होंने बताया कि एकल यूरिया डोज के परिणाम में उत्पादकता में 40 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है। वहीं, नाइट्रोजन+ फास्फोरस का उपयोग करने से 15-18 प्रतिशत तक उत्पादकता में गिरावट आई है।
माइनस में पोटेशियम
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के अन्तर्गत आने वाले उदयपुर, बांसवाड़ा,
डूंगरपुर, प्रतापगढ़, चित्तौडग़ढ़, सिरोही और भीलवाड़ा जिले में ढ़ाई दशक पूर्व प्रति हैक्टयर 671 किलोग्राम तक पोटैशियम विद्यमान था। लेकिन, अब यह आंकड़ा माइनस में जा चुका है। किसान पोटेशियम का उपयोग करना भूल चुके है। उन्होने बताया कि मेवाड़ संभाग में प्रति हैक्टयर माइनस 1500 किलोग्राम तक पोटैशियम तत्व की कमी आ चुकी है। गौरतलब है कि फास्फोरस और पोटैशियम की चलनशीलता कम है। लेकिन, यह दोनों मुख्य पोषक तत्व फसल की जरूरत है। इन तत्वों के अभाव में पौधों का स्वास्थ्य तंत्र गड़बड़ा जाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। साथ ही, मृदा स्वास्थ्य और उत्पादन भी प्रभावित होता है।
बीज के साथ खाद भी दें सरकार
टिप्पणी
इस शोध रिपोर्ट को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि राज्य सरकार महंगे प्रमाणित बीज के साथ-साथ मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्व की किट भी छोटी जोत धारक किसानों को उपलब्ध कराएं। ताकि, किसान को नि:शुल्क वितरित की गई किस्म से आशातीत उत्पादन प्राप्त हो। इससे किसानों की आय और उत्पादन भी बढेगी। वहीं, यूरिया के उपयोग में भी कमी आयेगी। मृदा-पर्यावरण संंबंधी चिंताओं पर भी विराम लगेगा। गौरतलब है कि प्रतिवर्ष 8-10 मिलियन टन पोषक तत्वों का खात्मा जमीन से हो रहा है। फसलोत्पादन के वर्तमान स्तर पर मृदा से लगभग 36 मिलियन टन पोषक तत्वों (एन.पी.के.) का दोहन प्रतिवर्ष होता है, जो 2025 में 45 मिलियन टन हो जायेगा। जबकि , रासायनिक उर्वरको से पोषक तत्वों की आपूर्ति 28 मिलियन टन प्रतिवर्ष है। इस प्रकार मृदा से प्रतिवर्ष 8-10 मिलियन टन पोषक तत्वों का ह्यस हो रहा है।