एमएसपी पर खरीफ फसलों की खरीद नहीं हुई शुरू
(सभी तस्वीरें- हलधर)
जयपुर। सरकार, भले ही किसान आय बढौत्तरी के कितने ही दांवे करें। लेकिन, जमीनी हकीकत कुछ ओर है। हालात यह है कि इस साल भी सोयाबीन, मूंग, बाजरा, मक्का उत्पादक किसानों को खरीफ वर्ष 2024-25 के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस कारण किसानों को प्रति क्विंटल हजारों रूपए का घाटा हो रहा है। गौरतलब है कि इन दिनों कृषि उपज मंडियों में खरीफ फसलो की जोरदार आवक हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक 40-45 फीसदी उपज बाजार में पहुंच चुकी है। लेकिन, एमएसपी पर फसल खरीद कीे कोई तैयारियां प्रदेश में नजर नहीं आ रही है। इस कारण अतिवृष्टि प्रभावित किसानों के हालात कंगाली में आटा जैसे नजर आने लगे है। किसानों का कहना है कि यह सिलसिला एक दो साल का नहीं, वर्षो से चला आ रहा है। बाजार में 60-65 फीसदी उपज पहुंचने के बाद सरकार किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीद करना शुरू करती है। ऐसे में जरूरतमंद किसान अपनी उपज को बाजार में बिक्री के लिए मजबूर हो जाता है। क्योंकि, अगली फसल बुवाई के लिए किसानों को पैसे की जरूरत होती है। साथ ही, देनदारियां भी चुकानी होती है। गौरतलब है कि इस स्थिति का फायदा जिंस कारोबारी उठाते है। किसानों से एमएसपी से काफी कम भाव पर जिंसों की खरीद कर अच्छा खासा मुनाफा कमाते है। हालांकि, केन्द्रीय कृषि मंत्री किसानों की दलहनी फसलों का दाना-दाना खरीदने की बात बार-बार दोहरा रहे है। लेकिन, मौजूदा स्थिति में किसानों को एमएसपी पर फसल खरीद शुरू होने की ही दरकार बनी हुई है। इस मामले को लेकर सरकार के पक्ष विपक्ष के किसान संगठनों में भी रोष व्याप्त है। उनका कहना है कि सरकार कुल उत्पादन से महज 25 फीसदी खरीद करती है। वो भी समय पर शुरू नहीं हो पाती। यह हालात किसानों के आर्थिक हालात और पतले कर देते है। सरकार को इस दिशा में ध्यान देने और 15 अक्टूबर से फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद करने की जरूरत है। अन्यथा, सरकार का सपना कभी धरातल नहीं ले पायेगा। भले ही सरकार किसानों के लिए कितनी ही लाखों करोड़ो रूपए लागत की कृषि योजनाएं शुरू कर लें।
ऐसे समझे नुकसान
किसान सोयाबीन में 1800 रुपये, मूंग 4000 रुपये, बाजरा 400 रूपए प्रति क्ंिवटल का घाटा वर्तमान में उठा रहे है। व्यापारी सरकारी खरीद शुरू नहीं होने का फायदा उठा रहे है। इस कारण किसानों को उपज का वाजिब दाम नहीं मिल पा रहा है। गौतरलब है कि एक अक्टूबर तक प्रदेश की कृषि उपज मंडियों में 1407 टनम सोयाबीन और 2120 टन मूंग की आवक दर्ज हो चुकी है। इसी तरह बाजरे की आवक भी तेज हो चुकी है। जबकि, इन दिनों सोयाबीन के औसत मंड़ी भाव 3050 से 4500 तक, मूंग के 5000 से 7500 रुपये और बाजरे के भाव 2200 से लेकर 2400 रुपये प्रति क्विंटल बोले जा रहरहे है। जबकि, सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 2625 रुपए प्रति क्विंटल है । एक क्विंटल पर औसत 300 रुपये के अनुसार सितंबर माह में किसानों को घोषित न्यूनतम मूल्य से 1 करोड़ 52 लाख 40 हजार रुपए कम प्राप्त हुए प्राप्त हुए ।
70 फीसदी उपज बाजार में
उधर, सरकार ने एक नवम्बर से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीफ फसलो की खरीद शुरू करने का ऐलान किया है। लेकिन, खरीद से जुड़ी तैयारियां और खरीद केन्द्रों की स्थापना की जानकारी अब तक सामने नहीं आई है। जबकि, एक नवम्बर तक मूंग की 70 फीसदी, सोयाबीन की 60 फीसदी और बाजरे की 70 फीसदी उपज बाजार पहुंचने की संभावना है। ऐसे में सरकार समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद की औपचारिकता ही निभायेगी।
किसान मजबूर क्यों
प्रदेश में मूंग, सोयाबीन, बाजरा सहित दूसरी खरीफ फसलों की कटाई सितम्बर में शुरू हो जाती है। सर्वाधिक मूंग सितम्बर और सोयाबीन अक्टूबर माह में मंडियों में आता है। खरीफ फसल विपणन के चार महीनों के दौरान मंडियों में आने वाली सोयाबीन 60 प्रतिशत आवक अक्टूबर माह में होती है। वही 25 प्रतिशत नवम्बर और शेष दिसम्बर बाद आती है। वही मूंग की सितम्बर और अक्टूबर माह में ही 70 प्रतिशत फसल की आवक हो जाती है। जबकि, सरकार 1 ने नवम्बर से समर्थन मूल्य पर खरीद आरम्भ करती है। फसल की कटाई और मंडियों में ले जाने के समय खरीद कार्यक्रम भी घोषित नही हो पाता। जिससे किसानों को खरीद का लाभ नही मिल पाता और सस्ते दामों पर खरीदी हुई फसल बिचौलियों किसानो से दस्तावेज लेकर समर्थन मूल्य पर फसल बेचेते है।
फसल आवक का गणित
गत वर्ष के आंकडो की माने तो सरकार की ओर से 1 नवम्बर को भी अगर खरीद शुरू होती है । तब तक मूंग की 70 और सोयाबीन की 60 फीसदी फसल मंडियों जा चुकी होगी। गत वर्ष सितम्बर 2023 में मूंग 56646 मिट्रिक टन और अक्टूबर 2023 में 42428 मिट्रिक टन की आवक हुई थी। यह सीजन की कुल आवक का 70 प्रतिशत था। वही सोयाबीन की अक्टूबर 2023 को 1 लाख 96 हजार मिट्रिक टन की आवक हुई थी, जो सीजन की कुल आवक का 60 प्रतिशत थी। इस सीजन में अकेले सितम्बर में ही 46 हजार मिट्रिक टन मूंग मंडियों में जा चुके है। जो सरकार द्वारा घोषित 8682 रुपये समर्थन मूल्य के मुकाबले 5000 से 7600 रुपये किंवटल कम भाव मे बिके। जो 1100 से 3600 तक सस्ता है। इससे मूंग उत्पादक किसानों को 100 करोड से अधिक का नुकसान हुआ है। वही सोयाबीन 500 से 1800 रुपये प्रति किंवटल तक सरकार की ओर से घोषित समर्थन मूल्य 4892 से नीचे बिक रहा है।
वर्ष 2023 में सामानवधि में फसल आवक
मूंग मात्रा प्रतिशत
सितम्बर 56646 31.69
अक्टूबर 42021 28.39
नवम्बर 25428 13.88
दिसम्बर 17798 11.20
सोयाबीन
समय कुल आवक
अक्टूबर 196796 40
नवम्बर 82168 29.69
दिसम्बर 17798 17.67
समर्थन मूल्य खरीद को लेकर सरकार गंभीर नही है। सरकारें बजट जारी होने के बावजूद खरीद की औपचारिकता ही पूरी करती है। सितम्बर-अक्टूबर तक मंूग 70 प्रतिशत और सोयाबीन की अक्टूबर तक 60 प्रतिशत उपज मंडियों में चली जाती है। इसके बाद खरीद का क्या फायदा। सरकार 15 अक्टूबर से फसल की खरीद करें। साथ ही, सोयाबीन और मूंग खरीद पर बोनस की घोषणा करें। पिछले साल किसानों को 100 करोड का नुकसान उठाना पड़ा है। एमएसपी खरीद व्यवस्था में सुधार के लिए संगठन बडे आंदोलन की तैयारी कर रहा है।
तुलछाराम सिंवर
प्रदेशमंत्री
भारतीय किसान संघ, जोधपुर
बगरू, चौमू, श्रीमाधोपुर, केकड़ी, दौसा, लालसोट, मुंडावर, मंडावरी, बयाना और डीग की मंडियों में 50,800 क्विंटल बाजरा किसानों को 2200 से लेकर 2400 रुपये प्रति क्विंटल बेचना पड़ा। जबकि, सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 2625 रुपए प्रति क्विंटल है । एक क्विंटल पर औसत 300 रुपये के अनुसार सितंबर माह में किसानों को घोषित न्यूनतम मूल्य से 1 करोड़ 52 लाख 40 हजार रुपए कम प्राप्त हुए प्राप्त हुए । इस वर्ष बरसात की अधिकता के कारण अधिकांश फसले नष्ट हो गई, जो फसल बची उसे भी वह दाम नहीं मिल रहे ,जिन्हें सरकार न्यूनतम बताती है ।
रामपाल जाट, राष्ट्रीय अध्यक्ष, किसान महापंचायत