जारी बारिश से पतली होगी सरसों धार
(सभी तस्वीरें- हलधर)संभवत: इस महीने के अंत अथवा अक्टूबर के पहले सप्ताह में मिशन का ऐलान हो सकता है। गौरतलब है कि सरकार ने किसानों को बेहत्तर एमएसपी दिलाने के लिए खाद्य तेलों पर आयात शुल्क को शून्य से बढाकर 20 फ ीसदी किया। लेकिन, वर्षाजनित परिस्थितियों से सरसों बुवाई पर संकट अभी से नजर आने लगा है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि जमीनी नमी सोखने के लिए तेज धूप की जरूरत किसानों को है। लेकिन, यहां अब भी बारिश हो रही है। इसका सीधा असर सरसों के रकबे पर देखने को मिलेगा। गौरतलब है कि सरसों बुवाई का वैज्ञानिक समय शुरू हो चुका है। वैसे तो किसान 20 अक्टूबर तक सरसों की बुवाई कर सकते है। लेकिन, जमीनी नमी के लिए 10 दिन बाद भी बुवाई संभव है। इसके बाद बुवाई करने पर उत्पादन में नुकसान उठाना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा परिस्थितियों में गेहूं, जौ और चना के रकबे में बढौत्तरी हो सकती है। बता दें कि इस साल राष्ट्रीय तिलहन मिशन के तहत सरकार और कृषि विभाग सभी फसलों के प्रदर्शन बढ़ाने की तैयारियों में जुटा हुआ है। लेकिन, बुवाई समय किसानों के हाथ से निकल जाने की स्थिति में फसल प्रदर्शन के लक्ष्य भी प्रभावित होने का डर है। गौरतलब है कि प्रदेश में 30-32 लाख हैक्टयर क्षेत्र में सरसों की बुवाई होती है।
200 रूपए की तेजी
सरकार के द्वारा खाद्य तेल आयात शुल्क बढ़ाकर 20 फीसदी किए जाने के बाद से प्रदेश की कृषि उपज मंडियो में सरसों के प्रति क्विंटल भाव में उछाल दर्ज होने लगा है। बाजार जानकारो की माने तो दो दिन के भीतर ही सरसों के भाव 200 रूपए प्रति क्विं टल पर तेज हुए है। इससे सरसों के भाव 6500-7000 रूपए प्रति क्विंटल तक पहुंच चुके है। गौरतलब है कि सरकार ने रिफ ाइंड तेल पर आधारभूत कस्टम शुल्क बढाकर 32.5 फ ीसदी कर दिया गया। सरकार को उम्मीद है कि यह निर्णय घरेलू सूरजमुखी, मूंगफ ली और सरसों के तेल की मांग बढाएगा।
सरसों का दुश्मन पॉम तेल
सरसों का भाव एमएसपी से कम रहने के पीछे कृषि विशेषज्ञ बड़ी मात्रा में पॉम तेल आयात को मानते है। उनका कहना है कि कोरोना काल में आयात पर प्रतिबंध रहा। वहीं, इम्युनिटी पावर की फिक्र ने लोगों को सरसों तेल का उपयोग करने पर मजबूर किया। वहीं, ब्लेडिग़ पर रोक लगने और कच्चे माल की कमी ने सरसों के प्रति क्विंटल भावों को आसमान देने का काम किया। लेकिन, अब परिस्थितियां सामान्य हो चुकी है। इस कारण सरसों के भाव बाजार में दम तोड़ते नजर आ रहे है। बाजार में नई सरसों आने पर भी सरसों में कोई तेजी नजर नहीं आती है। इस कारण बुवाई क्षेत्र घट रहा है। इसका ताजा उदाहरण है सरसों के भाव में आई तेजी। गौरतलब है कि वर्ष 2021-22 के दौरान बाजार में सरसों का औसत भाव 7444 रूपए प्रति क्विंटल था। जो पिछले साल घटकर 4500 रूपए औसत पर आ टिका है। इस कारण किसानों को प्रति क्विंटल तीन हजार रूपए का घाटा उठाना पड़ रहा है।
सारा खेल विदेशी ताकतों का
पिछले तीन सालों में पॉम तेल का आयात कम रहने से सरसों में चौतरफा लिवाली का रूख रहा। लेकिन, केन्द्र द्वारा आयात शुल्क शून्य किए जाने से सरसों के हालात बिगड़ गए। भावों में गिरावट का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ, जो अब भी बदस्तूर जारी है। गौरतलब है कि वर्ष 2017-18 में अपरिष्कृत और परिष्कृत पाम आयल पर आयात शुल्क 45 प्रतिशत और परिष्कृत पाम आयल पर अतिरिक्त 5 प्रतिशत सुरक्षा शुल्क भी था । इसके परिणाम स्वरूप किसानों को अधिक दाम मिले। फिर सरकार ने अक्टूबर 2021 को शून्य कर दिया। इस कारण विदेशी पाम आयल की मात्रा बढ़ गई। इस कारण घरेलू तेल-तिलहन बाजार मंदी का शिकार होकर रह गया।
75 फीसदी बाजार के हवाले
सरसों सहित दूसरी जिंसों के दाम कम होना आयात-निर्यात नीति मुख्य कारक है । वहीं भारत सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद नीति भी किसानो के पक्ष में नहीं है। इसी कारण कुल उत्पादन में से 75 प्रतिशत उपज एमएसपी के दायरे से बाहर होती है। साथ ही, अनेक प्रकार के अवरोध खरीद पर लगाए हुए हैं। जिनमें एक दिन में एक किसान से 25 क्विंटल से अधिक खरीद नहीं करना तथा वर्ष भर में खरीद की अवधि अधिकतम 90 दिन रखना आदि है।
यदि सरकार घरेलू तिलहन को समृद्ध करने की मंशा रखती है तो आयात शुल्क बढ़ाकर 300 प्रतिशत किए जाने की आवश्यकता है।
रामपाल जाट, राष्ट्रीय अध्यक्ष, किसान महापंचायत
पॉम ऑयल आयात सरसों सहित दूसरी तिलहनी फसलों को प्रभावित करता है। इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाएं जाने से ही सरसों के भाव में बढौत्तरी दर्ज होना शुरू हो गई है। प्रदेश में जारी बारिश के दौर से सरसों का बुवाई क्षेत्र प्रभावित होने की ंसंभावना है।
डॉ. पीके राय, निदेशक, डीआरएमआर, भरतपुर