सोया पीछे, सरसों आगे, अब सरकार सोचे आगे -तिलहन प्रोत्साहन की नई नीति (सभी तस्वीरें- हलधर)
तिलहन प्रोत्साहन की नई नीति इन बातों पर हो फोकस
सोया पीछे, सरसों आगे, अब सरकार सोचे आगे
पीयूष शर्मा
जयपुर। खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के लिए मोदी सरकार, केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में घरेलू तिलहन का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक नई नीति का मसौदा तैयार करने में जुटी है। कृषि विशेषज्ञों का कहना कि तिलहन प्रोत्साहन के लिए लागू की जाने वाली नीति में उत्पादकों के हितों के बारे में सोचने की जरूरत है। क्योंकि, बडे धोखे है इस राह में...। इसके लिए सरकार को किसानों में विश्वास पैदा करना होगा। साथ ही, उपज खरीद की गांरटी किसानों को देने की जरूरत है। ताकि, लघु-सीमांत के साथ-साथ किसान उत्पादक संगठन से जुडे किसान भी तिलहन बुवाई के लिए प्रोत्साहित हो सके। गौरतलब है कि खाद्य तेल पर इम्पोर्ट ड्यूटी साढे 5 प्रतिशत के करीब होने से विदेशों से सस्ता तेल भारत में आ रहा है। इस कारण किसानों को उपज का वाजिब दाम नहीं मिल पा रहा है। जबकि, तिलहनी उपज की लागत दूसरी फसलों की तुलना में कम है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक डब्ल्यूटीओ की पेचीदगियों को सरकार कम नहीं कर सकती। लेकिन, कुल उत्पादित तिलहन में से 30-35 प्रतिशत कीे एमएसपी पर खरीद सरकार सुनिश्चित कर सकती है। किसान को उपज खरीद की गांरटी मिली तो किसान स्वत: ही तिलहन उत्पादन के लिए प्रोत्साहित होने लगेगा। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि सरकार द्वारा पूर्व में शुरू किए गए तिलहन मिशन के बाद से देश में तिलहनी फसलों के सकल उत्पादन में 7-8 फीसदी की बढौत्तरी हुई है। गौरतलब है कि प्रदेश सरसों उत्पादन के मामले में देश में सिरमौर है। सरसों के क्षेत्रफल और उत्पादन के मामले में प्रदेश की भागीदारी क्रमश: 44 और 47 फीसदी के करीब है। लेकिन, किसानो की स्थिति काफी जुदा है। किसान उपज को घोषित होने वाले एमएसपी से कम दाम पर बेचने को मजबूर है।
सोया नहीं, अब सरसों नम्बर वन
तिलहन फसलों के उत्पादन में सरसों पहले नम्बर वन पर थी। सोयाबीन की खेती शुरू होने के बाद यह नम्बर दो पर आ गई थी। लेकिन, वर्ष 2023-24 के तीसरे अग्रिम अनुमान में सरसों ने उत्पादन के मामले में सोयाबीन को पीछे छोड़ दिया है। वर्ष 2023-24 के तीसरे अग्रिम आंकलन के अनुसार देश में पहली बार राई-सरसों का उत्पादन (131.61 लाख मैट्रिक टन) और सोयाबीन (130.54 लाख मैट्रिक टन ) से अधिक होने का अनुमान है। गौरतलब है कि
पिछले कुछ वर्षों में सोयाबीन का उत्पादन राई-सरसों की तुलना में अधिक रहा है। लेकिन, अगर खाद्य तेल की बात की जाए तो राई-सरसों का तेल प्रतिशत (लगभग 39 से 42 प्रतिशत), सोयाबीन (18 प्रतिशत) से कहीं अधिक है, जिससे राई-सरसों का स्थान शीर्ष पर बना हुआ है। दूसरी ओर, मूंगफली का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा खाने के काम में आता है। इस कारण देश खाद्य तेलो के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन पा रहा है।
इन पर मुद्दो फोकस करनेे की जरूरत
उपज खरीद की मिले गारंटी
सरकार को नई नीति में उपज खरीद की गारंटी किसानों को देने की जरूरत है। ताकि, किसान को यह भरोसा हो जाएं कि जो फसल वह खेत में बोने जा रहा है, उसका वाजिब दाम मुझे मिलेगा। उदाहरण के तौर पर सरसो की ही बात की जाएं तो इसकी प्रति हैक्टयर लागत 35-40 हजार रूपए के मध्य आती है। जबकि, सकल आमदनी 70-80 हजार रूपए प्रति हैक्टयर के करीब है। इस तरह किसानों को प्रति हैक्टयर 40-50 हजार रूपए का लाभ प्रति हैक्टयर मिल रहा है।
तेल मिलो को जीवनदान
सरसों उत्पादन में अग्रणी प्रदेश होने के बावजूद भरतपुर सहित दूसरे जिलों में स्थापित लघु-मझोले तेल मिलों को विदेशी तेल आयात के चलते घाटे की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। इसका बड़ा कारण खाद्य तेल पर इम्पोर्ट ड्यूटी काफी कम होना है। मिल संचालकों तक सरकार घरेलू तेल उद्योग को ऑक्सीजन नहीं देगी, तिलहनी फसलों को प्रोत्साहन के साथ-साथ उत्पादक किसानों को तिलहनी फसलों का उचित दाम नहीं मिलेगा। क्योंकि, तेल आयात के चलते बाजार से प्रतिस्पद्र्धा खत्म हो चुकी है।
नए क्षेत्रों की पहचान
सरकार को तिलहन का बुवाई क्षेत्र बढ़ाने के लिए उन क्षेत्रों की पहचान करने की जरूरत है, जहां, किसान धान की कटाई के बाद खेत खाली छोड़ देते है। पूर्वोत्तर राज्यों में यह समस्या ज्यादा है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार प्रमुख उत्पादक राज्यों के साथ-साथ बिहार, झारखंड़, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आसाम, मेघालय, मणिपुर आदि राज्यो में विस्तार के बारे में सोच सकती है।
वैल्यूचैन भी जरूरी
सरसों सहित दूसरी तिलहनी फलसों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार को मजबूत वैल्यूचैन के बारे में भी सोचने की जरूरत है। क्योंकि, किसान फसल का उत्पादन तो कर लेता है। लेकिन, फिर किसान और उपज बाजार के भरोसे होकर रह जाती है। ऐसे में उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार जिन नए क्षेत्रों की पहचान करें, वहां पर लघु और मझोले श्रेणी के तेल मिलो की भी स्थापना करें। इसमें निजी क्षेत्र का निवेश जरूरी है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सूजन को भी बढ़ावा मिलेगा।
नए बीज हब की स्थापना
सरकार को दलहन के जैसे ही तिलहन के सीड हब खोलना चाहिए। ताकि, किसानों को समय पर क्षेत्र की जलवायु अनुकूल सरसों किस्म का बीज उचित दर पर एक ही छत के नीचे उपलब्ध हो सके। इसके साथ-साथ जिप्सम और एसएसपी की उपलब्ध को भी बढ़ाना होगा। क्योंकि, दाने में तेलीय प्रतिशत बढ़ाने में यह दोनों आदान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
कलस्टर एप्रोच और प्रदर्शन
कृषि विशेषज्ञो का कहना है कि कृषि संस्थानों द्वारा विकसित तकनीक और किस्म की जानकारी किसानो को देने के लिए कलस्टर विकास के साथ-साथ प्रथम पंक्ति प्रदर्शनो की संख्या भी बढ़ानी होगी। रिसर्च पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
42 प्रतिशत तेलीय किस्मों को बढ़ावा
सरकार को बाजार मांग को ध्यान में रखते हुए 42 प्रतिशत तेलीय प्रतिशत वाली किस्मों का बीज किसानों को उपलब्ध कराने की जरूरत है। ताकि, उपज तैयार होने के बाद व्यापारी किसानों को तेलीय प्रतिशत के बहाने अपना शिकार नहीं बना पाए।
चौथे पायदान पर भारत
दुनिया के सरसों उत्पादक देशों की बात करें तो वर्ष 2016-17 तक भारत चौथे स्थान पर काबिज था। जबकि, 2017 के बाद देश में उत्पादन और बुवाई क्षेत्र बढ़ा है। जानकारी के मुताबिक दुनिया में सरसों फसल की भागीदारी 36 फीसदी के करीब है। वहीं उत्पादन 71.49 एमटी और उत्पादकता 1990 किग्रा. प्रति हैक्टयर है। कनाड़ा में कुल खेती योग्य रकबे में सरसों की भागीदारी 23.59 प्रतिशत, चायना में 21.28 प्रतिशत, यूरोपियन यूनियन में 18.99 प्रतिशत, भारत में 17.69 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया में 7.68 और दूसरे देशों में 10.77 फीसदी के करीब है।
दशक में रिकॉर्ड किस्मों का विकास
दशक भर में रबी तिलहनी फसलों की रिकॉर्ड किस्मों का विकास देश के कृषि वैज्ञानिकों ने किया है। वहीं, बीजोत्पादन का दायरा भी काफी बढ़ चुका है। सरसों किस्म विकास के रोड़मैप को देखे तो वर्ष 2011 से 2020 तक सरसों की 44, पीली सरसों की 2, तोरिया की 11, भूरी सरसों की 4, तारामीरा की 4, अफ्रीकन सरसों की 1 और गोभी सरसों की 4 किस्मों का विकास हुआ है।
कुल राई-सरसों क्षेत्रफल में राजस्थान की 42 प्रतिशत हिस्सेदारी है। फसल उत्पादन में लगे किसानों, सरकार नीतियों और वैज्ञानिकों की मेहनत से देश तिलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। देश में पहली बार सरसों ने सोयाबीन को पीछे छोड़ दिया है।
डॉ. पीके राय, निदेशक, डीआरएमआर, भरतपुर