अगले साल तक 45 मिलियन टन पहुंचने का अनुमान भूमि से हर साल 36 मिलियन टन पोषक तत्व (सभी तस्वीरें- हलधर)
पीयूष शर्मा
जयपुर। कृषि योग्य भूमि की मिट्टी में पोषक तत्वों की लगातार कमी होती जा रही है। हालांकि, कृषि विभाग हर वर्ष पोषक तत्वों की कमी की समस्या के समाधान के लिए लगातार किसानों को खेतों पर खरपतवार नहीं जलाने और रासायनिक खाद के बजाय जैविक खाद का प्रयोग करने के लिए जागरूक कर रहा है। लेकिन, साल दर साल पोषक तत्वों का दोहन बढ़ता जा रहा है। हालात यह है कि फसलोत्पादन के वर्तमान स्तर पर मृदा से लगभग 36 मिलियन टन पोषक तत्वों (एन.पी.के.) का दोहन प्रतिवर्ष हो रहा है, जो 2025 में 45 मिलियन टन हो जायेगा। जबकि, रासायनिक उर्वरको से पोषक तत्वों की आपूर्ति 28 मिलियन टन प्रतिवर्ष है। इस प्रकार मृदा से प्रतिवर्ष 8-10 मिलियन टन पोषक तत्वों का ह्यस हो रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश में ऐसी कई मृदा प्रयोगशालाएं है, जहां पर ताले लटके हुए है। वहीं, जिन किसानों के मृदा स्वास्थ्य कार्ड बन चुके है, वह भी वैज्ञानिक सिफारिश के आधार पर उर्वरकों का उपयोग नहीं कर रहे है। इस कारण खाई बढ़ती जा रही है। देशभर में हुए मृदा जांच नमूनों के विश्लेषण से यह आंकड़ा निकल कर सामने आया है। मृदा परीक्षण से पता चला है कि खेतों में आवश्यक पोषक तत्व नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा का न्यूनतम स्तर है। मृदा परीक्षण की इस रिपोर्ट ने किसानों की परेशानी में डाल दिया हैं। इसके बाद किसानों को भविष्य की चिंता सताने लगी है। कृषि विभाग ने मृदा कार्ड बनाने के लिए खेतों की मिट्टी के नमूने लिए थे। मिट्टी परीक्षण के परिणामों से चौंकाने वाली जानकारी मिली है। मिट्टी के इन नमूनों में 60 प्रतिशत से अधिक में नाइट्रोजन की कमी पाई गई है। इन नमूनों में नाइट्रोजन एक प्रतिशत की बजाय 0.2 प्रतिशत मिला है, मिट्टी में यह अति न्यूनतम स्तर है। वहीं अधिकतर नमूनों में फास्फोरस, सल्फर और जैविक कार्बन की कमी पाई गई है।
आग से जमीन हो रही है खराब
किसानों को धान और गेहूं की पराली और खरपतवारों को खेत में जलाने से होने वाली हानि के बारे में जागरूक किया जाता है। इसके बावजूद किसान खेतों में आग लगाकर एक ओर तो वायु प्रदूषण करते है। दूसरी ओर अपना नुकसान भी करते हैं। खेत में पराली जलाने से मिट्टी के आवश्यक पोषक तत्व विशेषकर आयरन, जिंक, कॉपर, मैग्रिशियम सहित दूसरे पोषक तत्वों की हर साल चिंताजनक स्तर तक कमी होती जा रही है। इसके अलावा खेतों में गोबर की खाद अथवा जैविक खाद डालने का भी किसानों में रुझान नहीं हैं। खेतों में रासायनिक खादों का ही इस्तेमाल बढ़ रहा है। कई किसान उचित जानकारी के अभाव में रासायनिक खादों का आवश्यकता से ज्यादा प्रयोग कर रहे हैं। यह प्रयोग भी उनके लिए हानिकारक साबित हो रहा है।
फसलों में नुकसान ऐसे
नाइट्रोजन की कमी होने से पौधों की पत्तियां पीली पडऩे लगती हैं। लचक कम होने के साथ कडी और छोटी हो जाती हैं। इस कारण हल्के से भी तनाव के कारण वह आसानी से टूटकर गिर जाती हैं। वहीं फास्फोरस की कमी से पौधे की पत्ती गहरे हरे रंग की संकरी होने के साथ कठोर हो जाती है। फसल के सिरे का रंग भी बैंगनी हो जाता है। साथ ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया धीमी पडऩे लगती है और पौधों का विकास रूक जाता है।
20 राज्यों में सर्वे
लगभग 36.5 लाख मिट्टी के नमूनो के विभिन्न मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं में उपलब्ध एन.पी.के. के विश्लेषण से यह पाया गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर मृदा में कुल नाइट्रोजन का स्तर कम है, फॉस्फोरस का स्तर मध्यम और पोटेशियम का स्तर उच्च आंका गया है। अखिल भारतीय समन्वित सूक्ष्म पोषक तत्व योजना के तत्वाधान में देश के 20 राज्यों में तैयार 2.52 लाख मिट्टी के नमूनों के विश्लेषण के आधार पर गंधक, जिंक, बोरोन, मोलिब्डिनम, लोहा, मैंगनीज और तॉबा के क्रमश: 41, 49, 33, 13, 12, 5 और 3 प्रतिशत नमूनो में कमी के संकेत मिले है।
क्या है मृदा स्वास्थ्य कार्ड
मृदा स्वास्थ्य कार्ड एक रिपोर्ट अर्थात खेत की मिट्टी की जन्मपत्री है जिसमें मृदा स्वास्थ्य सम्बन्धी 12 मापदंडो (मानकों) को दर्शाया जाता है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक प्रयोग और मृदा सुधारक उपयोग की सलाह प्रदान करता है। यह एक गुणात्मक रूप से मृदा के स्वास्थ्य का मूल्यांकन है। इस कार्ड का उद्देश्य एक मृदा का किसी दूसरी मृदा से तुलना करने का नही। बल्कि, मृदा क्षमता और साईट सीमा के अन्दर फसल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक मृदा की क्षमता का मूल्यांकन संकेतको द्वारा उपयोग करने के लिए है।
आदर्श उपयोग अब तक नहीं
देश में कृषि उत्पादन की वर्तमान स्थिति वैज्ञानिकों और किसानों के लिए चुनौती भरी है। क्योंकि, जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया में सिरमौर बन चुका है। खाद्यान्न की मांग बढ़ती जा रही है। लेकिन, कृषि के मूलभूत संसाधन समय के साथ घटते जा रहे है। ऐसे में, मृदा की उर्वरता को बचाना बड़ी चुनौति बन चुका है। मृदा वैज्ञानिकों का कहना है कि किसान मृदा परीक्षण आधारित उर्वरक सिफारिश के अनुसार खाद और उर्वरको का उपयोग नही कर रहे हैै। जिसके कारण असंतुलित उर्वरक उपयोग हो रहा है। अभियान चलाने के बाद भी नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश 4:2:1 का आदर्श उपयोग अनुपात अब तक नही हो पा रहा है।