खजूर से मरूस्थल मीठा, प्रसंस्करण की नहीं है सुविधा (सभी तस्वीरें- हलधर)
खजूर से मरूस्थल मीठा, प्रसंस्करण की नहीं है सुविधा
उपज को खपाने में किसानों को आ रही है दिक्कत
प्रसंस्करण के काम आने वाले उपकरणों पर नहीं मिलता है किसानों को अनुदान
पीयूष शर्मा
जयपुर। खजूर की खेती से थार के धोरों के साथ-साथ देश-दुनिया का मुंह मीठा होने लगा है। लेकिन, उत्पादक किसानों को संगठित बाजार का अभाव खल रहा है। किसानों का कहना है कि सरकार खजूर के पौधों पर अनुदान मुहैया करवा रही है। लेकिन, खजूर के प्रसंस्कृत उत्पाद तैयार करने के लिए सरकार के पास कोई नीति नहीं है। इस कारण दूर-दराज क्षेत्र में पैदा होने वाली फसल का बाजार दिखाने में किसानों को दिक्कत आ रही है। किसानों का कहना है कि खजूर से लाभ और हानि का गणित निकालने के लिए एक से डेढ़ माह का समय मिलता है। ऐसे में पेड से फल की तुड़ाई और बाजार की तलाश एक साथ संभव नहीं है। सरकार को इस दिशा में सकारात्मक सोच के साथ प्रसंस्कृत उपकरणों पर अनुदान देने की पहल करनी चाहिए। ताकि, खेतों में पैदा हो रहे मरूस्थल के मेवे से लाभ का गणित बढाया जा सके। गौरतलब है कि खजूर के प्रसंस्कृत उत्पाद तैयार करने के काम आने वाले विभिन्न उपकरणों का विकास जोधपुर स्थित काजरी संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा किया जा चुका है। लेकिन, ये उपकरण और किसान अब भी सरकारी अनुदान की बांट जोह रहे है। गौरतलब है कि समय गुजरने के साथ ही अब दुबई वाले खजूरों की जगह राजस्थान में पैदा हो रहे खजूर की मांग बढ़ रही है। साथ ही, उत्पादन का आंकड़ा भी साल दर साल बढ़ता जा रहा है। बड़ी बात कि ये खजूर खाड़ी देशों के खजूर से सस्ते भी हैं और इनका स्वाद भी उनसे बेहतर है। किसानों का कहना है कि यदि सरकार सोलर ड्रायर पर अनुदान दें तो खजूर से मिलने वाला मुनाफा तीन गुना तक बढ़ जायेगा।
इन खजूरों में विशेषता
इन खजूरों के बारे में जो बात सबसे ज्यादा लोकप्रिय है वह है इनका केमिकल फ्री तरीके से उगाया और पकाया जाना। इन्हें पकाने के लिए किसी प्रकार के केमिकल की जरूरत नहीं पड़ती. यह बिना केमिकल के आसानी से पक जाते है। ये स्पेशल खजूर हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद हैं। इनमें मौजूद फाइबर, विटामिन, मिनिरल्स और पोषक तत्व हमारे शरीर को अंदर से मजबूत करते हैं। वहीं जहां तक बात रही इसकी कीमत की बाजार में इन खजूरों की कीमत खाड़ी देशों के खजूरों की कीमत से काफी कम होता है। सबसे बड़ी बात कि जितना फ्रेश ये खजूर आपको मिल जाएंगे, उतने फ्रेश आपको दुबई वाले खजूर नहीं मिलेंगे।
सालाना 20-25 करोड का करोबार
गौरतलब है कि प्रदेश में एक हजार से अधिक क्षेत्र फल में खजूर की खेती हो रही है। खजूर के व्यस्क पौधों से किसानों को बंपर उत्पादन मिल रहा है। इससे खजूर उत्पादन के साथ-साथ करोबार का आंकड़ा भी गति पकड़ रहा है। एक अनुमान के तहत कच्चे खजूर का सालाना व्यापार 20-25 करोड़ रूपए तक पहुंच चुका है। किसानों का कहना है कि खजूर की कुछ किस्में टेबल उपयोग के लिए है। लेकिन, कई किस्में ऐसी है, जो छुआरे सहित दूसरे उत्पाद तैयार करने के काम आती है। इन किस्मों का बाजार में खपाने में दिक्कत आती है।
यह है समस्या
किसानों ने बताया कि फल को बारिश से बचाना ही हमारे लिए बड़ी चुनौति होती है। क्योंकि, पानी लगने के साथ ही फल खराब होना शुरू हो जाता है। यदि फल की तुड़ाई हो गई तो इसकों ज्यादा समय तक भंड़ारित करके भी नहीं रख सकते है। क्योंकि, बामुश्किल सप्ताह भर के भीतर टूटे हुए फल गलकर नष्ट होने लग जाते है। गौरतलब है कि प्रदेश में उत्पादित हो रहे खजूर का बाजार पश्चिमी जिलो तक ही सीमित है। दूसरे जिलों में लोग खजूर के कच्चे फलों के स्वाद से ज्यादा परिचित नहीं है। इस कारण किसानों को बाजार की तलाश में दूसरे राज्यों का रूख करना पड़ रहा है।
इन किस्मों की पैदावार
थार में मेडजुल, बरही, घनामी और खुनेजी किस्म का उत्पादन किया जा रहा है। खजूर की खेती पर कृषि विभाग द्वारा 75 फीसदी अनुदान किसानों को दिया जा रहा है। यह अनुदान राशि का लाभ लेने के लिए किसानों को राज किसान पोर्टल एप पर ऑनलाइन फॉर्म भरना होगा। इसके बाद हार्ड कॉपी विभागीय कार्यालय में जमा करवानी होगी। वही, किसान हिस्सेदारी राशि जमा होने के बाद पौधों का वितरण किया जाएगा। गौरतलब है कि खजूर की खेती करने वाले किसान को एक बार ही पौध खरीद की जरूरत होती है। इसके बाद ऑफ शूट पौधें उसके खेत में भी तैयार होने लग जाते है।
खाने के अलावा और भी कई उत्पाद
खजूर अनुसंधान से जुड़े डॉ. राजेन्द्र सिंह कहते है कि खजूर खाने में फल के रूप में पसंदीदा है, लेकिन दूसरे फलों की तरह इसका भी कई और विकल्प के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। जिसमें अचार, मुरब्बा और जैम बनाया जा सकता है।
क्यों मुफीद है पश्चिमी राजस्थान
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि गर्म मौसम और खारा पानी खजूर की खेती के लिए अनुकूल वातावरण है। खजूर के ऊपरी भाग में जितनी गर्मी मिलती है, उतना ही फल मीठा होता है और हमारे यहां का गर्मी का मौसम इसके लिए अनुकूल है।