तने को खोखला कर रहा है रेड पाम वीविल

नई दिल्ली 12-Apr-2024 06:53 PM

तने को खोखला कर रहा है रेड पाम वीविल (सभी तस्वीरें- हलधर)

प्रदेश में खजूर की खेती: घातक प्रकृति के एक नये कीट की और दस्तक
पिछले साल दर्ज हुआ था राइनोसेरॉस कीट का प्रकोप
पीयूष शर्मा

जयपुर। उत्पादन में बेजोड़ मानी जाने वाली खजूर की खेती भी अब कीटों से अछूती नहीं रही है। इस खेती में भी हर साल नए कीट का प्रकोप दर्ज होने लगे है। कीटों की प्रकृति भीतरी दुश्मन जैसी है। जिससे उत्पादक किसान को पता नहीं चलता और पौधा सडगलकर नष्ट हो जाता है। यानी, जिंदा पेड खत्म हो जाता है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कीट घातक प्रकृति के है, जो पौधें को खोखला करने की क्षमता रखते है।  इससे किसानों को आर्थिक नुकसान संभव है। गौरतलब है कि बीकानेर और हनुमानगढ़ जिले के कई खेतों में खजूर की फसल में रेड पाम वीविल कीट का प्रकोप इस साल देखने को मिला है। इससे उत्पादक किसानों की चिंता गहरा गई है। खजूर के पेड़ो में इस नए कीट की पहचान स्वामी केशवानंद राजस्थान कृ षि विश्वविद्यालय के अन्तर्गत खजूर अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर के कृषि वैज्ञानिकों ने की है। बता दें कि पिछले साल भी पूर्व कृषि मंत्री डॉ. प्रभुलाल सैनी के खेत पर लगे खजूर के पौधों में राइनोसेरॉस कीट का प्रकोप दर्ज हुआ था। कृषि वैज्ञानिकों की माने तो राइनोसेरॉस का नुकसान तो फिर भी नजर आ जाता है। लेकिन, यह कीट भीतरी दुश्मन का काम करता है। तने के अंदर इस कीट का खात्मा करना काफी मुश्किल काम है। गौतरलब है कि रेड पॉम वीविल कीट पौधें के तने को खाकर खोखला कर देता है। तना खोखला होने के बाद पौधें के जिंदा रहने और उत्पादन आने की संभावना भी पूरी तरह से दम तोड़ देती है। गौरतलब है कि प्रदेश में खजूर की खेती को कृषि नवाचार के रूप में अपनाया गया है। लेकिन, रिसर्च के नाम पर आज भी हालात ढ़ाक के तीन पात जैसे बने हुए है। काजरी और स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर को छोड़कर खजूर पर रिसर्च कार्य हुआ ही नहीं है। उद्यानिकी विभाग भी किसानों के लिए पैकेज ऑफ प्रैक्टिसेज तैयार नहीं कर पाया है। हालांकि, सरकार खजूर की खेती पर अनुदान जरूर दे रही है। लेकिन, कीट-रोग संबंधी जानकारी देने के लिए उद्यानिकी विभाग के पास कोई विशेषज्ञ नहीं है। ऐसे में समझा जा सकता है कि कीट का प्रकोप ऐसे ही बढ़ता रहा तो प्रदेश में खजूर का भविष्य क्या होगा? गौरतलब है कि बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, श्रीगंगानगर, बीकानेर, हनुमानगढ़, नागौर सहित दूसरे जिलों में खजूर की खेती हो रही है। 
क्या है रेड पाम वीविल
विश्वविद्यालय के खजूर अनुसंधान केन्द्र के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने बताया कि प्रदेश में इस कीट का प्रकोप खजूर की फसल में पहली बार सामने आया है। यह कीट घातक प्रकृति का है। इस कीट की चार अवस्थाएं होती है। इसमें अंड़ा, ग्रब, प्यूपा और व्यस्क शामिल है। इस कीट का अंड़ा क्रीमी सफेद रंग के अंड़कारण आकार के होते है। अंडे तने के जख्मों, घाव आदि में मादा नर द्वारा दिए जाते है। इसके ग्रब हल्के पीले रंग का होता है। इसके पैर नहीं होता। इसका प्यूपा तने के अंदर रहता है। जबकि, व्यस्क लाल भूरे रंग ाक होता है। इसके थोरेक्स पर 6 गहरे धब्बे होते है। 

हवा से गिर जाता है पौधा
उन्होंने बताया कि इस वीविल की व्यस्क मादा पौधें में सुरंग बनाकर प्रवेश करती है और पौधें के भीतर अंड़े देती है। जिससे 2-6 दिन में ग्रब निकलता है। यह ग्रब पौधें के मुलायम ऊत्तक को खाता है और पौधें के तने को खोखला कर देता है। यह अवस्था 35-100 दिन तक की होती है। इसके बाद ग्रब प्यूपा में बदल जाता है। जो 13-17 दिन की होती है। इसके बाद यह व्यस्क में बदल जाती है। व्यस्क अवस्था 100-120 दिन की होती है। उन्होने बताया कि ग्रब द्वारा पौधें के तने को खोखला करने से पौधा थोड़ी सी हवा के वेग में भी टूटकर गिर जाता है। 

यह है लक्षण
उन्होने बताया कि पौधे में मादा कीट के प्रवेश के बाद पौधें के तने में छेद दिखाई देते है। जबकि, क्षति जमीन से कुछ फीट की ऊंचाई तक सीमित रहती है। कीट संक्रमण से रेशा भाग चबाया हुआ और क्षतिग्रस्त हिस्से पर भूरा चिपचिपा द्रव रिसता हुआ नजर आता है। द्रव के रिसने के निशान भी पौधें पर नजर आते है। उन्होने बताया कि संक्रमित क्षेत्र के पास तने की जुउ़ी खजूर के बच्चे(ओफ्सुट) और पत्तियां मुरझाकर सुखने लगतती है। 

संक्रमण से नुकसान ऐसे
संक्रमण की गभीर अवस्था पर पौधें का तना खोखला हो जाता है। इससे पूरा पेड़ मुरझाकर सूखने लगता है। संक्रमित भाग को बाहर निकालने पर नरम और सड़ा हुआ नजर आता है। जिसमें कीट के अडे और ईल्ली की उपस्थिति देखी जा सकती है। उन्होंने बताया कि जो पौधो खोखला हो चुका है, उसे े हटाकर खेत से बाहर जलाने के अलावा किसान के पास कोई विकल्प शेष नहीं रहता है। 

सतर्कता ही बचाव
उन्होंने बताया कि खेत में रेड पाम वीविल का प्रकोप ना हो इसके लिए किसानों को सतर्कता से काम लेने की जरूरत है। कीट की निगरानी के लिए किसान प्रति हैक्टयर एक फेरोमोन ट्रैप लगाएं। फेरोमोन ट्रैप के बाल्टी को पानी से भरें। इसमें कुछ गन्ने के टुकड़े डाले। फेरोमोन ल्यूर लगाएं और बाल्टी को बगीचे में स्थापित करें। प्रतिदिन इस ट्रैप की निगरानी करें। हर सप्ताह पानी और गन्ने के टुकड़े को बदलें। गौरतलब है कि बारिश के बाद रेड पाम वीविल का प्रकोप बगीचे में ज्यादा दिखाई देता है। 

यह करें प्रभावित किसान
तने में छेद नजर आने पर इन छेदों में 0.2 प्रतिशत ट्राईक्लोरफेन 1 लीटर प्रति पेड़ की दर से डाले। फिर गीली मिट्टी से छेद को बंद कर दें। पौधें पर कॉपर सल्फेट 60 ग्राम + क्लोरोपॉयरीफॉस 100 मिली को प्रति 200 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करें।