एक्सपोर्ट के साथ बुवाई में भी मुनाफा (सभी तस्वीरें- हलधर)
पीयूष शर्मा
जयपुर। राजस्थान कृषि अनुसंधान केन्द्र, दुर्गापुरा के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए सोने पे सुहागा जैसा प्लेटफार्म तैयार कर दिया है। अब मूंगफली उत्पादक किसानों को बुवाई से पूर्व ही सीधे-सीधे एक हजार रूपए से अधिक की बचत होगी। बशर्ते, बीज को उपचारित करके बुवाई किया जाएं। वहीं, बिक्री के समय गुणवत्ता और उत्पादन के लिहाज से भी आय मेें बढौत्तरी होना तय है। गौरतलब है कि संस्थान के वैज्ञानिकों के द्वारा मूूंगफली की ऐसी किस्मों का विकास किया गया है जो रोग प्रतिरोधी होने के साथ-साथ ज्यादा उपज और एक्सपोर्ट क्वालिटी देने भी कारगर है। मूंगफली की इन किस्मों में आरजी-638 (राज मूंगफली-4)और आरजी 559-3 (राज मूंगफली-3) शामिल है। पैदावार और तेलीय प्रतिशत के लिहाज से दोनों ही किस्में दमदार है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इन किस्मों के उत्पादन से किसानों को खासा फायदा मिलने की उम्मीद है। क्योंकि, दोनों ही किस्में एक्सपोर्ट के लिए उत्तम है। साथ ही, प्रमुख रोगों के प्रति प्रतिरोधक भी है। गौरतलब है कि वर्तमान में किसान फसल में जडग़लन से होने वाला नुकसान रोकने के लिए प्रति हैक्टयर 10 किलोग्राम ज्यादा बीज का का उपयोग करता है। ताकि, पौधों में रोग लगने के बाद भी पौधों की संख्या अच्छी बनी रहे। वैज्ञानिकों का कहना है कि जडग़लन रोग से मूंगफली उत्पादन में 15-20 प्रतिशत का नुकसान होता है। यदि बीज दर कम रखी जाएं तो नुकसान का आंकड़ा बढ़ जाता है। इस स्थिति से बचने के लिए किसान प्रति हैक्टयर 100 किलोग्राम के स्थान पर 110 किलोग्राम बीज का उपयोग करता है। संस्थान के निदेशक डॉ. अर्जुन सिंह बालोदा ने बताया कि यह दोनों ही किस्में जडग़लन रोग प्रतिरोधी है। बुवाई के समय उपचार के लिए किसान को प्रति किलो बीज पर 2-5 रूपए खर्च करने होंगे। यदि किसान ने इतना कर लिया तो मूंगफली की पैदावार ज्यादा आना तय है। साथ ही, किसान को आर्थिक बचत भी होगी। उन्होंने बताया कि बीजोपचार करने का बड़ा फायदा यह होगा कि उसे प्रति हैक्टयर 10 किलो ज्यादा बीज उपयोग करने की जरूरत नहीं रहेगी। उन्होंने बताया कि यह दोनों ही किस्में सफेद लट के प्रति भी सहनशील है। खड़ी फसल में एक-दो स्प्रे मात्र से ही फसल में सफेद लट से होने वाला नुकसान रोका जा सकता है। गौरतलब है कि इन किस्मों का विकास आईसीएआर की अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना-मूंगफली के तहत संस्थान के वैज्ञानिकों ने किया है। परियोजना के जुड़े वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार मीणा ने बताया कि मूंगफली की इन दोंनो किस्मों में तेल की मात्रा समान है। लेकिन, पैदावार में थोड़ा अंतर है। गौरतलब है कि प्रदेश में 8 लाख हैक्टयर क्षेत्र में मूंगफली की बुवाई होती है। अधिकांश बुवाई क्षेत्र में आरजी-510 किस्म की बुवाई किसान करते है। वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों के लिए नई कि स्म राज मूंगफली-4 अब ज्यादा कारगर रहेगी।
100 किलो में 74 किलो गुली
उन्होंने बताया कि राज मूंगफली-4 से किसानों को 100 किलो मूंगफली से 74 किलोग्राम गुली(दाना) का उत्पादन मिलेगा। इस किस्म में ऑयल 49 प्रतिशत है। वहीं, यह किस्म 120-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। वहीं, इस किस्म से किसानेां को प्रति हैक्टयर 34-36 क्ंिवटल तक उपज मिलती है। उन्होने बताया कि यह किस्म समय पर बुवाई के लिए उपयुक्त है। इस किस्म का प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तरप्रदेश के लिए अधिसूचित किया गया है। इसके 100 दानों का भार 56 ग्राम है। बता दे कि इस किस्म का विकास मंूगफली किस्म आईसीजी-2773 और टीजी-37ए के संकरण से हुआ है। यह किस्म कॉलर रॉट, अर्ली-लेट लीफ स्पॉट, स्टेम रॉट और पीबीएनड़ी के साथ-साथ लीफ हॉपर और थ्रिप्स कीट के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखती है।
राज मूंगफली-3
यह किस्म एक्सपोर्ट के लिए तैयार की गई है। इसका दाना बोल्ड है। वहीं, तेलीय प्रतिशत भी ज्यादा है। इस कारण उपभोक्ताओं को पहली नजर में ही पसंद आती है। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस किस्म में एक फली में दो दाने होते है।
पकाव अविधि-120-129 दिन
दाना-बोल्ड
100 दानों का भार-72 ग्राम
तेल-49 प्रतिशत
100 किग्रा में गुली- 69 किग्रा.
उत्पादन-28-34 क्विंटल प्रति हैक्टयर।
प्रतिरोधी- कॉलर रॉट, अर्ली-लेट लीफ स्पॉट, स्टेम रॉट और पीबीएनड़ी, लीफ हॉपर ,थ्रिप्स।
मूंगफली की राज-3 और राज-4 किस्म एक्सपोर्ट के साथ-साथ किसानों को प्रति हैक्टयर ज्यादा पैदावार के लिए अधिसूचित हुई है। विश्वविद्यालय प्रदेश के मूंगफली उत्पादक किसानों को इन नई किस्मों का बीज उपलब्ध करवा रहा है। ताकि, उत्पादन के साथ-साथ प्रदेश से मूंगफली निर्यात को भी प्रोत्साहित किया जा सके।
डॉ. बलराज सिंह, कुलपति, एसकेएन कृषि विवि. जोबनेर