उत्पादन और आमदनी में आयेगा ज्वार
(सभी तस्वीरें- हलधर)
जयपुर। महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को दीवाली पूर्व बड़ी सौगात दी है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ज्वार की नई किस्म तैयार की है। ज्वार की नई किस्म उत्पादन और उत्पादकता गिराने वाली फंफूदी रोग और तने में लगने वाले कीटों के प्रति सामान्य प्रतिरोधी है। वैज्ञानिकों ने इस किस्म को प्रताप ज्वार-2510 नाम दिया है। गौरतलब है कि ज्वार की इस किस्म को भारत सरकार ने हाल ही में अधिसूचित किया है। वैसे तो ज्वार के कई उपयोग है। लेकिन, लक्ष्मी पूजन के दौरान ज्वार के सिट्टे को रखने की परम्परा रही है। विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि इस किस्म का कई अनुसंधान केन्द्रों पर परीक्षण हुआ है। सभी जगह परिणाम सकारात्मक रहे है। विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. अरविंद वर्मा ने बताया कि ज्यादा बारिश की स्थिति में ज्वार की फसल में कई फंफूदीजनित रोग लग जाते है। उनमें ज्वार का भूरा फफूँद (ग्रे मोल्ड) प्रमुख है। इस रोग के चलते फसल में दाने की गुणवत्ता बिगड़ जाती है। दाना भद्दा, रंग हल्का गुलाबी भूरा अथवा काला हो जाता है। रोग ग्रसित दाने हल्के अथवा भुरभुरे हो जाते है ऐसे दानों का उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यह बीमारी ज्वार की संकर प्रजाति अथवा शीघ्र पकने वाली प्रजातियों में प्राय: अधिक पाई जाती है। उन्होने बताया कि यह किस्म खुले परागण वाली किस्म है। इस कारण किसान इसका बीज अगली फसल के लिए भी सहेज कर रख सकते है। गौरतलब है कि विश्वविद्यालय अब तक ज्वार की 11 किस्मों का विकास कर चुका है। जिनमें एसपीवी-96, एसपीवी -245, राजचरी-1, राजचरी-2, सीएसवी-10, एसपीएच-837, सीएसवी-17, प्रताप ज्वार-1430, सीएसवी-23, प्रताप चरी-1080 और प्रताप राज ज्वार-1 अनुमोदित हो चुकी है। उन्होंने बताया कि इस किस्म का विकास अखिल भारतीय ज्वार अनुसंधान परियोजना के तहत विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किया है। गौरतलब है कि विश्वविद्यालय में वर्ष 1970 से यह परियोजना चल रही है। इस किस्म को प्रदेश के लिए अधिसूचित किया गया है।
यहां होती है खेती
कृषि विभाग के आंकडों पर नजर डाले तो प्रदेश में ज्वार की खेती 6 लाख 40 हजार हैक्टयर क्षेत्र में होती है। मुख्यतया ज्वार की खेती अजमेर, नागौर, पाली, टोक, उदयपुर, चित्तौडगढ, राजसमन्द और भीलवाडा जिलें में होती है। वैज्ञानिकों ने बताया कि मोटा अनाज फसलों में शामिल ज्वार से कई खाद्य उत्पाद तैयार किए जाते है। इस कारण किसानों को अच्छे भाव मिलते है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2023 को अन्तर्राष्ट्रीय मोटा अनाज घोषित करने के बाद बाजरा और ज्वार की पूछ परख और बढ़ गई है।
यह है खासियत
परियोजना प्रभारी डॉ हेमलता शर्मा ने बताया कि यह मध्यम अवधि किस्म है। यह 105-110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इससे प्रति हैक्टयर 40-45 क्विंटल तक उपज मिलती है। साथ ही, 130-135 क्विंटल प्रति हैक्टयर सूखा चारा मिल जाता है। इस कारण यह किसानों के लिए सोने पे सुहागा जैसे काम करेगी। इस किस्म को लगाने वाले किसानों को दाने के साथ-साथ पशुधन के लिए पर्याप्त चारा भी उपलब्ध होगा। उन्होंने बताया कि यह किस्म एन्थ्रेकनोज, जोनेट, मोल्ड रोग और तना मक्खी, तना छेदक कीटों के लिए सामान्य प्रतिरोधी है।
ग्लुटेन फ्री अनाज
ज्वार एक ग्लुटेन मुक्त अनाज होता है। ऐसे में इसका उपयोग दलिया, ब्रेड और केक आदि बनाने में किया जाता है। ज्वार के दाने का उपयोग खाद्य तेल, स्टार्च, डेक्सट्रोज आदि के लिए भी किया जाता है। गौरतलब है कि राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र में ज्वार एक प्रमुख मिलेट फसल है जो कि वर्षा आधारित क्षेत्रों में अनाज और पशु चारे के लिए उगाई जाती है। पशु चारे के लिए ज्वार का प्रदेश में प्रमुख योगदान है।
राजस्थान में ज्वार मुख्य रूप से चारे के लिए उगाई जाती है। लेकिन, अन्तर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष के दौरान ज्वार दानों के पोषक गुणों के बारे में आमजन जानकारी मिली। इस कारण किसानों को अच्छे भाव मिलने लगे है। वहीं, राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से भी ज्वार की मांग निकल रही है। अधिसूचित किस्म प्रताप ज्वार-2510 का आगामी खरीफ से किसानों को बीज उपलब्ध कराया जायेगा।
डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, एमपीयूएटी