बिना ऋतु खाएं रसायन मुक्त सब्जियां

नई दिल्ली 18-Apr-2023 04:14 PM

बिना ऋतु खाएं रसायन मुक्त सब्जियां (सभी तस्वीरें- हलधर)

जयपुर। बिना मिट्टी के सब्जी उत्पादन वैसे तो कोई नई तकनीक नहीं रही है। लेकिन, प्रदेश के अधिकांश किसानों को अब भी यह नहीं पता है कि महज 10 फीसदी जल मांग पर स्वस्थ और कीट-रसायन मुक्त सब्जी फसल उत्पादन के लिए शहरी क्षेत्र में कौनसा मॉडल उपयुक्त रहेगा। यही कारण है कि आईटी बेस्ड़ सब्जी उत्पादन का कार्य अब भी एक दायरे में सिमटा हुआ है। क्योंकि, वैज्ञानिक जानकारी प्रदेश में उपलब्ध नही है। रिसर्च को जानने समझने के लिए किसानों को दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। लेकिन, अब किसानों को अपनी आम भाषा में आईटी बेस्ड़ सब्जी फसल उत्पादन की जानकारी भी मुहैया होगी। वहीं, लागत से लेकर उत्पादन तक का गणित भी किसान अपनी आंखो देखी करके कृषि वैज्ञानिकों से समझ सकेगा। जी हां, केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) जोधपुर के वैज्ञानिकों ने परिनगरीय क्षेत्र के किसानों के लिए एक दो नहीं, कुल आठ मॉडल तैयार किए है। संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि आईटी बेस्ट तकनीक संरक्षित संरचना से थोड़ी खर्चीली जरूर है। लेकिन, एक बार के निवेश पर सालों साल सलाद और सब्जी के काम आने वाली फसलों का उत्पादन लिया जा सकता है। गौरतलब है कि इससे पूर्व काजरी के वैज्ञानिकों ने लॉ कॉस्ट पाली हाउस मॉडल तैयार करने में सफलता हासिल की है। दरअसल, यह सभी मॉडल का विकास विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार की एक परियोजना के तहत विकसित किए है। गौरतलब है कि हाइड्रोपॉनिक तकनीक से सब्जी उत्पादन का कार्य प्रदेश में अभी शैशवकाल में है। लेकिन, काजरी के रिसर्च से सब्जी फसलों का व्यवसायिक उत्पादन शुरू होने की उम्मीद बध चुकी है।

बरसाती पानी का उपयोग

गौरतलब है कि यह भारत का इकलौता प्रोजेक्ट है, जिसमें बरसाती पानी और सोलर एनर्जी का उपयोग किया जा रहा है। देश में हाइड्रोपॉनिक्स के अधिकांश मॉडलों में आरओं के पानी का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन, काजरी के वैज्ञानिक आरओं का खर्च और जल अपव्यय रोकने के लिए पॉली हाउस की छत से बरसाती पानी को एकत्र कर उपयोग ले रहे है। वहीं, पम्प और फैन चलाने के लिए ग्रीन एनर्जी का उपयोग कर रहे है। उन्होंने बताया कि आरओं का पानी उपयोग करने से 60-70 फीसदी जल वेस्ट के रूप में निकल जाता है। इससे जल बचत नहीं कहा जा सकता है। बरसाती पानी उपयोग लेने के बावजूद भी आधा दर्जन से ज्यादा सब्जी फसलों से आशातीत परिणाम वैज्ञानिकों को प्राप्त हुए है। उन्होंने बताया कि अलग-अलग सब्जी फसलो की जल मांग में भिन्नता है। लेकिन, यह कहा जा सकता है कि इन मॉडल से 10 फीसदी जल व्यय पर सब्जी फसलों का भरपूर उत्पादन लिया जा सकता है।

लागत थोड़ी ज्यादा

उन्होंने बताया कि हमारा विजन किसान की लागत को कम करना है। इस तकनीक में पॉलीहाउस से थोड़ी ज्यादा लागत आती है। लेकिन, किसान बिना मिट्टी को जहरीली बनाएं जब तक चाहे, फसल का उत्पादन ले सकता है। बड़ी बात यह है कि इसमें लेबर की ज्यादा जरूरत नहीं रहती है। साथ ही, कृषि आदान की लागत भी काफी घट जाती है।

यह मॉडल तैयार

प्रोजेक्ट के तहत हाइड्रोपॉनिक्स के साथ-साथ एयरोपॉनिक्स, वर्टिकल टॉवर, डच बकेट, एरो बकेट, कोकोपीट आधारित सहित आठ मॉडल संस्थान के वैज्ञानिकों ने तैयार किए है। उन्होंने बताया कि उत्पादित सब्जी फसल पूरी तरह से केमिकल फ्री है। साथ ही, सॉयल लैस भी। सिंचाई के लिए बरसाती पानी का उपयोग हो रहा है।

इन सब्जियों का उत्पादन

हाइड्रोपोनिक्स कृषि की उपयोगिता को देखते हुए परिनगरीय क्षेत्र के किसानों और शहरी लोगों का रूझान इसकी ओर बढ रहा है । इस पद्धति से कम क्षेत्र में बिना मिट्टी के भी वर्ष भर अच्छी फसल ले सकते है। इसमें ज्यादातर सलाद और सब्जी के रूप में काम आने वाली फसल जैसे  खीरा ककड़ी, शिमला, मिर्च, चैरी टमाटर, पुदीना, स्ट्राबेरी,  सलाद पत्ता, ब्रोकली, गोभी वर्गीय सब्जियां, तुलसी आदि के साथ साथ माइक्रोग्रीन की पैदावार की जा सकती है ।

पौधों को पोषण ऐसे

पौधें को पोषण देने के लिए सभी आवश्यक 17 पोषक तत्वों को एक उचित मात्रा में मिलाकर मिश्रित कर लिया जाता है । मिश्रण के घोल को फसल और फसल अवस्था के अनुरूप निर्धारित अन्तराल पर दिन में कई बार स्वचालित पम्प से दिया जाता है । जिससे पौधों को सभी पोषक तत्व लगातार प्राप्त होते रहे और उनकी अच्छी वृद्धि और उनसे उत्पादन प्राप्त होता रहता है।

फसल है तकनीक

इस तकनीक में फूड ग्रेड प्लास्टिक पाईप (4-6 इंच व्यास) अथवा आयताकार चैनल (100 सेन्टीमीटर & 6-8 सेन्टीमीटर ) का इस्तेमाल किया जाता है । जिसमें 9-10 इंच के अन्तराल पर 2 इंच व्यास के कई छेद होते है। छोटे पौधें को 2 इंच के नेट पॉट में क्लेबॉल को भर कर उसमें लगाते है । हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल करने में शुरूआत में अधिक लागत आती है। किन्तु एक बार यह प्रणाली स्थापित हो जाती है तो दीर्घ अवधि तक खेती कर लाभ कमा सकते है। डा. प्रदीप कुमार ने बताया कि अर्बन फार्मिंग के लिए यह उपयुकत  मॉडल है ।  घर की छत अथवा  बॉलकोनी पर भी यह इकाई स्थापित की जा सकती है।

ऐसे समझे लागत का गणित

हाइड्रोपोनिक्स की इकाई का आकार स्थान की उपलब्धता पर निर्भर करता है । जबकि, खर्च उसके आकार और मॉडल में लगने वाले उपकरणों आदि पर निर्भर करता है । इसे बहुखंण्डीय ( मल्टीपल लेयर) में भी लगाया जा सकता है । प्राकृतिक प्रकाश  (सूर्य की रोशनी)  में  ए (्र)क्व  फ्रेम में और रैक सिस्टम में  भी लगाया जा सकता है। रैक सिस्टम में आर्टीफिशियल प्रकाश की आवश्यकता होी है,  जिसके लिए एलईडी की ग्रो-लाईट लगानी पड़ती है ।

यह है खासियत

  • कीट-रोग मुक्त सब्जी उत्पादन।
  •  कम जगह में ज्यादा उत्पादन।
  • पानी और कृषि आदान की कम जरूरत।
  • पोषकता युक्त उत्पादन।
  • कम्प्युटराइज्ड सिस्टम से मॉनीटरिंग

काजरी में इसके विभिन्न तरह के मॉडल विकसित किये है । काजरी  पौष्टिक सलाद के पैकेट बनाकर शहरवासियों के लिए उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाने की दिशा में काम कर रहा है।  हाइड्रोपोनिक्स प्रणाली में आम खेती की अपेक्षा पानी की जरूरत 90  फीसदी तक  कम होती है। फसल ताजी, स्वच्छ, शुद्ध, अच्छी गुणवत्ता वाली और रसायन रहित होती है। कम जगह में अधिक पौधों को उगाया जा सकता है।                

- डॉ. ओपी. यादव, निदेशक,  काजरी 


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