प्यास बुझाने वाले कुएं सूखें, बस्तियां प्यासी (सभी तस्वीरें- हलधर)
जयपुर। बात हर घर को नल पहुंचाने, यमुना जल, ईआरपीसी के साथ-साथ किसानोंं की आय बढ़ाने की हो रही है। वहीं, भूगर्भ में छिपे तेल, गैस, लिथीयम, सोना, तांबा, पोटाश सहित दूसरे महत्वपूर्ण खनिजों के भंड़ारों को पता लगाने के साथ सर्वे भी करवाया जा रहा है। लेकिन, रीतते सहती और भू-जल भंड़ारों को रिचार्ज करने की दिशा में सरकार के पास कोई योजना नहीं है। हालात यह है कि कभी इंसानी बस्तियों मेें जीवन का आधार रहे कुएं अब अपनी दुदर्शा पर आंसू बहा रहे है। वहीं, पेयजल की आवश्यकता पूर्ति के लिए पाताल तोड़ कोशिशें हो रही है। शायद यही कारण है कि कुुं ओं से समृद्ध रही मरूधरा में अब सर्दी खत्म होने के साथ ही पानी के लिए त्राहि-त्राहि का दौर शुरू हो जाता है। जबकि, पहले प्यास का सिलसिला पश्चिमी जिलों तक ही सीमित रहता था। लेकिन, अब कमाण्ड़ क्षेत्र के लोगों की भी प्यास नहीं बूझ पा रही है। गौरतलब है कि देखरेख के अभाव में प्रदेश में साढे पांच लाख से ज्यादा कुएं बेकार हो चुके है। इस बात का खुलासा हुआ है कृषि विभाग के द्वारा जारी सांख्यिकी रिपोर्ट 2022-23 में। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि खेतों के साथ-साथ मानव आबादी मेें बने कुएं नकारा हो चुके है। कु ओं में पानी रीत जाने से फसल उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। शायद, यही कारण है कि कि सान खेती को जिंदा रखने के लिए पाताल तोड़ ट्यूबवैल खुदवा रहा है। वहीं, बस्तियों के हालात भी कमोबेश ऐसे ही बने हुए है। भूजल स्तर नीचे चले जाने के कारण हैंडपंप और ट्यूबवैल हवा फांक रहे है। लाखों की संख्या मेें कुओं का नकारा हो जाने की स्थिति एक दो जिलों की नहीं बल्कि, प्रदेश भर की है। पुराने कुओं की सार सम्भाल नहीं होने से या तो वे कचरा पात्र बने हुए है या उनकी दीवारे गिर चुकी है । इसके अलावा तालाबों का भी अतिक्रमण के चलते अस्तित्व मिट रहा है। जबकि, कुएं और तालाब ग्रामीण और कृषि संस्कृति का शुरू से ही अभिन्न अंग रहे है। कई मांगलिक परम्पराएं इन जलस्त्रोतों से जुड़ी हुई है। गौरतलब है कि भूमिगत जल के अतिदोहन से राजस्थान सहित समूचे देश में कई राज्यों में भूमिगत जल के स्तर में काफी गिरावट दर्ज की गई है, जो भविष्य के लिये बड़ा संकट है। भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन से सदावाहिनी नदियां भी सूख रही हैं। जल संरक्षण के लिए सरकार कई प्रयास कर रही है। लेकिन, इसका लाभ नहीं मिल रहा है। सरकार ने तालाबों को मनरेगा के तहत गहरा करने का कार्य जरूर किया। लेकिन, कुएं की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। जल विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सरकार कुआं रिचार्ज पर कार्ययोजना तैयार करें तो मरूधरा में पानी की त्राहि-त्राहि को कम किया जा सकता है।
50 फीसदी से ज्यादा कु एं बेकार
सांख्यिकी रिपोर्ट में जारी आंकड़ो पर गौर करें तो प्रदेश में साढ़े नौ लाख से ज्यादा कुएं है। लेकिन, इनमें से साढे पांच लाख से ज्यादा कुएं बेकार हो चुके है। सिंचाई और पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए गांव-शहर ट्यूबवैल खुदवाएं जा रहे है। इससे भूजल भंड़ार पर भी संकट गहरा चुका है। गौरतलब है कि प्रदेश का 2/3 भाग बारिश पर निर्भर है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 6.83 लाख ट्यूबवैल खुदवाएं जा चुके है।
अब ना घी और पानी
एक समय था जब पानी को घी से भी अनमोल माना जाता था। लेकिन, आधुनिक चकाचौंध में जल बचत की परम्पराएं और जल स्त्रोतों के संरक्षण के नियम-कायदें विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके है। हालांकि, पश्चिमी जिलों में अभी भी कई गांवों में कुआं और तालाबों का संरक्षण ग्रामीण अपने स्तर पर कर रहे है। क्योंकि, वहां की समाजिक परम्पराएं ही जल संरक्षण पर आधारित है। बालोतरा जिले के किसान कल्लाराम चौधरी ने बताया कि जागसा गांव में अब भी नवविवाहित जोड़े से तालाब से मिट्टी निकालने की परम्परा का निर्वहन किया जा रहा है। गौरतलब है कि जल बचत को लेकर एक समय कहा जाता था कि घी ढुले म्हारों की नी जासी, पानी ढुले म्हारो जी बले। लेकिन, समय के साथ यह लोकोक्ति भी अपना अर्थ खोती जा रही है। अब हालात ऐसे ही कि ना पीने को शुद्ध पानी उपलब्ध हो रहा है और ना खाने को शुद्ध घी।
295 ब्लॉक डार्क जोन में
प्रदेश में सतही और भूजल दोहन का अंदाजा सरकार के आंकड़ो से स्वत: ही लगाया जा सकता है जिसमें 301 ब्लॉक में से 295 ब्लॉक डार्क जोन में पहुंच चुके है। सात शहरी क्षेत्र में 219 ब्लॉक अतिदोहित है। वहीं, 1838 ब्लॉक जल उपलब्धता के लिहाज से सुरक्षित है।
रिचार्ज से ज्यादा भूजल निकासी
प्राचीन जलस्त्रोतों के साथ-साथ बरसाती पानी का संरक्षण नहीं होने से राजस्थान जल दोहन के मामले में देश में दूसरे नम्बर पर पहुंच चुका है। यहां रिचार्ज से ज्यादा भूजल का दोहन हो रहा है। आंकड़ो के मुताबिक जल दोहन के मामले में 360 ब्लॉक के साथ तमिलनाडु पहले, 219 ब्लॉक के साथ राजस्थान दूसरे, 117 ब्लॉक के साथ पंजाब तीसरे, 88 ब्लॉक के साथ हरियाणा चौथे और 63 ब्लॉक के साथ उत्तरप्रदेश देश में पांचवे स्थान पर है। गौरतलब है कि प्रदेश के श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ सिंचाई में पानी खर्चने में मामले में नम्बर वन है। जबकि, राजसमंद जिला सिंचाई में कम पानी खर्चता है। बात करें प्रदेश में सिंचाई व्यवस्था की तो एक अनुमान के तहत 66 प्रतिशत सिंचाई नलकूप और कुएं से मानी जाती है। जबकि, 32 फीसदी सिंचाई नहरी, 0.6 फीसदी तालाब पर निर्भर है।
भूमिगत जलस्रोत पर भी दबाव
बढ़ते औद्योगिकीकरण और गाँवों से शहरों की ओर तेजी से पलायन और फैलते शहरीकरण ने भी अन्य जलस्रोतों के साथ भूमिगत जलस्रोत पर भी दबाव उत्पन्न किया है। भूमिगत जल-स्तर के तेजी से गिरने के पीछे ये सभी कारक भी जिम्मेदार रहे हैं। बढ़ती आबादी के कारण जहाँ जल की आवश्यकता बढ़ी है वहीं प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता भी समय के साथ कम होती जा रही है। कुल आकलनों के अनुसार सन 2000 में जल की आवश्यकता 750 अरब घन मीटर (घन किलोमीटर) यानी 750 जीसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) थी। सन 2025 तक जल की यह आवश्यकता 1050 जीसीएस और सन 2050 तक 1180 बीसीएम तक बढ़ जाएगी। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में प्रति व्यक्ति जल की औसत उपलब्धता 5000 घन मीटर प्रति वर्ष थी। बुंदेलखंड के इस ज़िले में बैलगाडयि़ों पर लादकर कई किमी. दूर से लाना पड़ता है पानी सन 2000 में यह घटकर 2000 घन मीटर प्रतिवर्ष रह गई। सन 2050 तक प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1000 घन मीटर प्रतिवर्ष से भी कम हो जाने की सम्भावना है।
यह कैसी तरक्की
तरक्की के नाम पर जमकर जल दोहन हो रहा है। हरित क्रांति के बाद से खेती में पानी की ज्यादा जरुरत नजर आने लगी। इसके लिए टयूबवेल और बोरवेल से लोगों से जल दोहन करना शुरू कर दिया। जब कुएं से सिंचाई होती थी तो लोग बाल्टी अथवा चड़स से पानी निकालते थे। इस प्रक्रिया में ताकत बहुत लगती थी, लोग कम पानी निकालते थे। लेकिन, जब टयूबवेल आ गया तो एक बटन दबा दिया और खूब पानी निकालने लगे। तरक्की के नाम पर हमने जल का दुरुपयोग किया। इसका परिणाम यह रहा कि छिछले कुओं का जल स्तर गिर गया। जब पानी नहीं है तो लोग कुओं से दूरी बनाना शुरू कर दिया। इस तरह कुएं उपेक्षित होने लगे। कुछ लोगों इन बेकार कुओं का जिंदा करने की जगह उन्हें पाटकर उनपर कब्जा कर लिया।
जिलेवार नकारा
अजमेर | 35935 |
जयपुर | 64011 |
दौसा | 21872 |
टोंक | 10268 |
सीकर | 24751 |
झुंंझुनूं | 8135 |
नागौर | 24595 |
अलवर | 74639 |
भरतपुर | 15728 |
धौलपुर | 4416 |
सवाईमाधोपुर | 4250 |
करौली | 19485 |
बीकानेर | 228 |
चुरू | 626 |
जैसलमेर | 50 |
जोधपुर | 14224 |
बाड़मेर | 9237 |
जालौर | 31820 |
पाली | 24036 |
सिरोही | 2277 |
कोटा | 6951 |
बारां | 6787 |
बूंदी | 6902 |
झालावाड़ | 8919 |
बांसवाड़ा | 12752 |
डूंगरपुर | 14631 |
उदयपुर | 22775 |
प्रतापगढ़ | 2269 |
भीलवाड़ा | 40146 |
चितौडग़ढ़ | 16192 |
राजसमंद | 25162 |
कुलयोग | 554566 |
पीयूष शर्मा