मवेशियों का लीवर कमजोर रही है सत्यानाशी
(सभी तस्वीरें- हलधर)साथ ही, त्वचा में संक्रमण के मामले भी सामने आ रहे है। ऐसे में पशुपालकों को सतर्क रहने की जरूरत है। गौरतलब है कि यह दोनों खरपतवार फसल उत्पादन की दृष्टि से इसके बीज विषाक्तता पैदा करने की क्षमता रखते है। वहीं, झरमरी (लैन्टाना कामरा) जहां भी उगता है, वहां जमीन का उपजाऊपन खत्म कर देता है। पशु चिकित्सक डॉ. योगेश कुमार का कहना है कि झरमरी के सुंदर दिखने वाले फूल असल में पशुओं के लिए बेहद ही खतरनाक होते है। इसे पंचफूली के नाम से भी पहचाना जाता है। गाय, भैंस, भेड़, बकरी, घोड़ा, हिरण, हाथी आदि में इस पादप को खाने से विषाक्तता हो जाती है। कुछ पशुओं में खाने के एक-दो दिन बाद जहर के लक्षण शरीर पर दिखना शुरू हो जाते है। जिन पशुओं में बाह्य लक्षण देर से नजर आते है, तब तक उनका लीवर कमजोर हो चुका होता है। उपचार के अभाव में पशु की मृत्यु हो जाती है अथवा फिर अंधेपन का शिकार हो जाता है। इस मामले को लेकर कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि झरमरी के पौधों से लैंटाना ए नामक रसायन की गंध उड़ती है, जो मवेशियों को नहीं भाती। इसके पत्ते विषैले होते हैं, जिन्हें खाकर मवेशी गंभीर रूप से बीमार पड़ सकते हैं। यह पौधा जमीन में अपनी जड़ों को गहरा करता है और बिना खाद-पानी के कहीं भी पनप जाता है। इस पौधे के संपर्क में आने पर लोगों को खुजली और मितली की शिकायत होने की संभावना रहती है। वहीं, पशुओं में त्वचा संक्रमण के कारण चमड़ी उडऩा शुरू हो जाती है। गौरतलब है कि यह खरपतवार खेती योग्य जमीन के साथ-साथ जंगलों के लिए भी खतरा पैदा कर रहे है।
पशु को दें लीवर टॉनिक
झरमरी- विषाक्तता के लिए कोई विशेष दवा (एंटीडॉट) तो नहीं है। विषाक्तता के प्रभाव को कम करने के लिए पशु को एक्टिवेटेड चारकोल पिलाना चाहिए। दस्तावर के लिए तरल पैराफिन पिलाना चाहिए। बीमार पशु को अन्य पशुओं से अलग रखें और बीमार पशुओं को लिवर-टॉनिक पिलाएं। साथ ही, चराई के समय पशुओं को पौधें के सम्पर्क में नहीं आने दें।
यह करें किसान
उन्होंने बताया कि खेत से सत्यानाशी सहित दूसरी खरपतवारों की रोकथाम के लिए किसान सरसों बुवाई के 72 घंटे के भीतर पेन्डामेथीलिन नामक खरपतवारनाशक का छिड़काव करें। रसायन छिड़काव के समय जमीन में नमी होना जरूरी है। उन्होंने बताया कि इससे सत्यानाशी के साथ-साथ दूसरे खरपतवार से भी फसल को सुरक्षा मिल सकेगी।
सत्यानाशी गिराती है सरसों का उत्पादन
खेतों में यहां वहां उगने वाला सत्यानाशी का पौधा सरसों का उत्पादन गिराने का काम करता है। वहीं, कटाई के समय इसके बीज सरसों के साथ मिल जाने पर मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते है। क्योंकि, सरसों से सत्यानाशी के बीजों को अलग करना काफी मुश्किल होता है। हालांकि, सरसों की बुवाई के 72 घंटे के भीतर खरपतवारनाशी का छिड़काव करके इस खरपतवार को खेत से समाप्त किया जा सकता है। सरसों अनुसंधान निदेशालय के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार शर्मा ने बताया कि सत्यानाशी के बीज काफी हल्के होते है। साथ ही, बीज का रंग भी सरसों के जैसा ही होता है। इस कारण कटाई के समय विशेष सावधानी रखने की जरूरत किसान को होती है। उन्होंने बताया कि यह खरपतवार फसली पौधों से पोषक तत्व, पानी ग्रहण करके पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है। इस कारण उत्पादन में नुकसान होता है।
मानव में ड्रॉप्सी रोग की जनक
सरसों बीज में सत्यानाशी के बीज घुलमिल जाने और उसका तेल निकालने की दशा में ड्रॉप्सी रोग की संभावना बढ़ जाती है। गौतरलब है कि यह रोग मनुष्य के जिगर, पित्ताशय, गुर्दे, हृदय आदि अंग को कमजोर करता हैं। मनुष्य को साधारण पानी भी नहीं पचता। उसके शरीर में दूषित पानी जमा हो जाता है और पेट फूलने लगता है। मनुष्य के हाथ पैर और मुंह में सूजन आ जाती है। मनुष्य को बुखार भी आ सकता है। गौरतलब है कि आयुर्वेद में सत्यानाशी के बीजों को औषधी माना गया है। लेकिन, बीजो का उपयोग शोधन के बाद विशेषज्ञों के द्वारा किया जाता है। वहीं, लेदर इण्डस्ट्रीज में भी इसके बीजों का उपयोग होता है। उन्होंने बताया कि सीधें तौर पर बीजों का उपयोग विषाक्तता का कारण बनते है।