खेत का पानी खेत में... रोकेगी ट्रेक्टर डॉन बेसिन लिस्टर एमपीयूएटी का नया आविष्क (सभी तस्वीरें- हलधर)
पीयूष शर्मा
जयपुर। खेत का पानी खेत में...। सुनने में यह बात काफी अच्छी लगती है। लेकिन, सवाल यह है कि खेत का पानी खेत में कैसे रूके? हालांकि, बरसाती पानी संचय के लिए जागरूक किसान फार्मपौंड़, खेत तलाई, सामुदायिक फार्मपौंड आदि संरचनाओं का निर्माण करवा रहे है। सरकार भी जल बचत को प्रोत्साहित करने के लिए इन संरचनाओं के निर्माण पर किसानों को अनुदान मुहैया करवा रही है। लेकिन, जलवायु परिवर्तन के इस दौर में खेती में पानी की बचत किसानों और वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौति बनी हुई है। इसी चुनौति को कम करने के लिए महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अभियांत्रिकी वैज्ञानिकों ने एक टू इन वन मशीन का विकास किया है, जो खेत में वाटर हार्वेस्ंिटग के साथ-साथ फसल बुवाई के लिए क्यारी बनाने के काम भी आयेगी। वैज्ञानिकों ने इस मशीन को ट्रेक्टर डॉन बेसिन लिस्टर नाम दिया है। इस मशीन का उपयोग ट्रेक्टर की सहायता से खेत में किया जा सकेगा। इस मशीन को कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी एंड एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग (सीटीएई) के वैज्ञानिकों ने डिजाइन किया है। गौरतलब है कि पानी ही खेती का आधार है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हर साल बड़ी मात्रा बरसाती पानी खेतों से बहकर निकल जाता है। फसल बुवाई के लिए खेत तैयार करने के दौरान कई बार किसानों को खेतों में सिंचाई देनी पड़ती है। इस स्थिति को देखते हुए यह मशीन तैयार की गई है। जो खेत में बेसिन का निर्माण करेगी। इससे बरसाती पानी बहकर खेत से बाहर नहीं जा पायेगा। पानी जमीन में अंदर चला जायेगा। इससे भूजल स्तर बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। साथ ही, समय पर फसल की बुवाई भी संभव हो सकेगी। बता दें कि ज्यादा बरसात के दौरान बरसाती पानी खेत के नीचले हिस्से में एकत्रित हो जाता है। इस कारण किसान उस भूभाग में समय पर फसल की बुवाई नहीं कर पाता। वहीं, मानसूनी बारिश के कम होने की स्थिति में नमी संरक्षण की चुनौति किसानों के सामने रहती है। यह टू इन वन मशीन ऐसी ही चुनौतियों को कम करने में किसानों की मददगार बनेगी। गौरतलब है कि इस मशीन को सीटीएई कॉलेज के सेवानिवृत प्रोफेसर डॉ. शैलन्द्र माथुर और प्रवीण भास्कर ने तैयार किया है।
डिजाइन को मिला पेटेंट
डॉ. माथुर ने बताया कि बरसाती पानी संचयन के लिए वर्ष 2020 में इस मशीन का डिजाइन तैयार किया गया। मशीन परीक्षण करने के बाद डिजाइन को पेटेंट करवाने संबंधी प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया। उन्होने बताया कि हाल ही में इस मशीन का पेटेंट मिला है। अभी कृषि विभाग, अजमेर के फार्म पर इस मशीन का उपयोग हो रहा है।
टू इन वन ऐसे
उन्होने बताया कि इस मशीन की लागत 50 हजार रूपए आएगी। इस मशीन का उपयोग करते हुए किसान खेत की जुताई करते हुए 2 मीटर की दूरी पर क्यारी बना सकेगा। इससे बरसाती पानी खेत में जमा हो सकेगा। बाद में, तैयार क्यारियों में किसान फसल की बुवाई कर सकेगा। सर्दी के मौसम में खेत का समतल करके गेहूं की बुवाई भी संभव होगी।
ट्रेक्टर ऑपरेटेड़ मशीन
ट्रेक्टर डॉन बेसिन लिस्टर नामक यह मशीन ट्रेक्टर के द्वारा संचालित होगी। जो खेत में दो मीटर के अंतराल पर स्वत: 6 मीटर मिट्टी की क्यारियां बनाएगी। इनको बेसिन कहा जाता है। खेत में तैयार होने वाली इन संरचना में बरसाती पानी एकत्र हो सकेगा। इससे जमीन में नमी बनी रहेगी। बड़ी बात यह है कि तैयार क्यारियों में किसान सीधे ही बीज की बुवाई कर सकेगा। गौरतलब है कि बरसात के बाद फसल बुवाई के लिए किसानों को खेत हांक-जोतकर तैयार करना होता है। इस कार्य में लागत ज्यादा आती है।
यह रहेगी ट्रेक्टर की स्पीड़
उन्होने बताया कि मशीन का क्षेत्र मूल्याकंन साइड बंड यूनित की संचालन गहराई (45, 70 और 95 मिमी.), लिस्टर बंड के संचालन की गहराई (20, 30 और 40 मिमी.) और ट्रेक्टर के आगे की गति (2, 3,4,5 और 6 किमी. प्रति घंटा) स्वतंंत्र मापदंडो के रूप मेें किया गया है। बेसिन की लंबाई, बेसिन की चौड़ाई का गठन, साइड बंड की ऊॅचाई का गठन, लिस्टर बंड की ऊंचाई का गठन और ड्राफ्ट की आवश्यकता के रूप में किया गया है। मशीन 3 किमी. प्रति घंटे से संचालित होती है और साइड बंड यूनिट के संचालन की 95 मिमी गहराई होती है।
80 फीसदी पानी का उपयोग खेती में
ऐसा माना जाता है कि 80 फीसदी पानी का उपयोग खेती में होता है। लेकिन, पानी की बर्बादी के चौकाने वाले तथ्य और भी है। ऐसे में अकेले किसानों को दोष देना उचित नहीं है। दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइपलाइनों के वॉल्व की खराबी के कारण 17 से 44 प्रतिशत पानी प्रतिदिन बेकार बह जाता है। यह भी कड़वा सच है कि हमारे देश में महिलाओं को पीने के पानी के जुगाड के लिए हर रोज ही औसतन साढे पांच किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। गौरतलब है कि पूरी पृथ्वी पर एक अरब 40 घन किलोलीटर पानी है। इसमें से 97.5 प्रतिशत पानी समुद्र में है जोकि खारा है, शेष 1.5 प्रतिशत पानी बर्फ के रूप में ध्रवीय क्षेत्रों में है। बचा एक प्रतिशत पानी नदी, सरोवर, कुआं, झरना और झीलों में है जो पीने के लायक है। इस एक प्रतिशत पानी का 60वां हिस्सा खेती और उद्योगों में खपत होता है। बाकी का 40वां हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपडे धोने और साफ-सफाई में खर्च करते हैं।