थार की काया बदल रही है काचरी (सभी तस्वीरें- हलधर)
पीयूष शर्मा
जयपुर। मारू थारे देश में मोटी चीज मतीरा...। लेकिन, अब मतीरे के साथ-साथ कई शुष्क -अद्र्धशुष्क फल-सब्जी है, जो थार की काया को बदल रहे है। इससे ना केवल किसानों की आमदनी में बढौत्तरी दर्ज हो रही है। वही, सर्दी-गर्मी-बरसात रेतीले धोरें हरियाली की चादर ओढ़े नजर आने लगे है। कृषि वैज्ञानिको का कहना है कि यदि प्रदेश के सिचिंत-अद्र्धसिंचित क्षेत्र और थार के किसानों को मिल रही कृषि आमदनी का आर्थिक सर्वे किया जाएं तो कमत्तर की स्थिति देखने को नहीं मिलेगी। गौरतलब है कि बीकानेर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू सहित दूसरे जिलें के किसान एक ही खेत में तीन से चार फसलों का उत्पादन ले रहे है। इससे किसानों की आय में बढौत्तरी हुई है। वैज्ञानिकों ने बताया कि पहले शुष्क क्षेत्र के किसान मतीरा-तरबूज, ग्वार की खेती तक सीमित थे। लेकिन, अब काचरी, काकडिय़ा, लोया आदि का सालभर उत्पादन ले रहे है। इनमें जायद और खरीफ का सीजन किसानों के लिए सोने पे सुहागा जैसा साबित होता है। क्योंकि, किसान जायद मूंगफली के साथ-साथ काचरी, काकडिय़ा, लोया, ग्वार आदि शुष्क फल-सब्जी की भी बुवाई कर देते है। इसके चलते किसानों को अतरिक्त आमदनी होती है। गौरतलब है कि काचरी खेतों में खरपतवार के रूप में स्वत: ही उग जाती थी। लेकिन, स्वत: उगने वाली बेल पर लगने वाले फल कड़वे भी निकलते है। इस स्थिति को देखते हुए आईसीएआर- केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने अपने रिसर्च से किसानों को मीठे फलों की गांरटी दी है। संस्थान ने काचरी की व्यवसायिक खेती के लिए आधा दर्जन से ज्यादा किस्में तैयार की है। इनमें एएचके-119 और एएचके-200 किस्म के मैदानी परिणाम किसानों की आशानुकूल रहे है। इन दोनों किस्मों ने थार में काचरी उत्पादन के साथ किसानों की आय बढ़ाने का काम किया है। शायद यही कारण है कि मंूगफली के बाद बीकानेर जिला काचरी हब के रूप में विकसित हो रहा है। कई नामी मसाला निर्माता कम्पनियां किसानों से काचरी की खरीद कर रही है। इससे किसानों एक बीघा क्षेत्र से ही लाखों में आय मिलने लगी है। संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. दिलीप कुमार समादिया ने बताया कि काचरी की नई किस्मों की बदौलत किसान इसका एकल और इंटरक्रॉपिंग के रूप में वर्षभर उत्पादन लेने लगे है। एक अध्ययन के मुताबिक किसानों को प्रति हैक्टयर लाख से डेढ लाख रूपए तक की आमदनी काचरी उत्पादन से मिल रही है। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों में काचरी की व्यवसायिक मांग में तेजी आई है। इस कारण किसानों को भाव भी बढ़कर मिल रहे है।
सौगात में सूखे फल
उन्होने बताया कि थार अंचल में खान-पान, तीज-त्यौहार, लोकगीत और धार्मिक कार्यक्रमों में काजरी का विशेष महत्व है। यहां प्रवासी रिश्तेदारोंं को उपहार स्वरूप सूखें फलों की सौगात देते है। जिसे स्थानीय भाषा में दिबड़ी कहा जाता है। गौरतलब है कि सालों से काचरी का उपयोग सब्जी, चटनी, आचार, मसालें के रूप में किया जा रहा है।
इन किस्मों से बढ़ाया उत्पादन
उन्होंने बताया कि संस्थान द्वारा विकसित काचरी किस्म एएचके-119 और एएचके-200 किस्म किसानों की उम्मीदों पर खरा उतर रही है। काचरी की एएचके-119 किस्म सब्जी, चटनी, आचार और सुखाने के लिए उपयुक्त है। इसका फल छोटा, अंड़ाकार, गहरी और खंडित धारियां लिए 50-60 ग्राम का होता है। फल का स्वाद खट्टा-मीठा, रसीला, बीजयुक्त और छिलका कठोर होता है। जिससे इसे अधिक समय के भंड़ारित करके रख सकते है। किसान को बुवाई के 68-70 दिन बाद पहली तुड़ाई मिल जाती है। जो 110-120 दिन तक चलती है। जबकि, काचरी की दूसरी किस्म एएचके-200 का उपयोग सब्जी और सलाद के रूप में किया जा सकता है। क्योंकि, इसका एक फल 100-120 ग्राम का होता है। दोनों की किस्मों से किसानों को प्रति हैक्टयर 100 क्ंिवटल के करीब औसत पैदावार मिलती है।
कई राज्यों में पहुंचा बीज
उन्होंने बताया कि संस्थान के द्वारा किसानों को शुष्क सब्जी फसलों का बीज तैयार करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसी परिणाम है कि किसान अपने साथ-साथ दूसरे किसानों के लिए भी बीज तैयार करने लगे है। एक अनुमान के तहत संस्थान द्वारा विकसित इन किस्मों का दायरा प्रदेश सहित हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों फै ल चुका है। क्योंकि, इसकी बुवाई के लिए 100-150 ग्राम बीज की जरूरत किसान को होती है। उन्होंने बताया कि संस्थान हर साल कि सानों को बीज उपलब्ध करवा रहा है।
पाएं जाते औषधीय गुण
काचरी में अनेक औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेदीय शास्त्रों ने इसे कर्कटी वर्ग की वनौषधि माना है। कुकुर बिटेसी कुल का पौधा है। इसे आयुर्वेद में मृगाक्षी कहा जाता है। यह बिगडे हुए जुकाम, पित्त, कफ, कब्ज, मधुमेह सहित कई रोगों में बेहतरीन दवा मानी गई है। यह गर्म और खुश्क होती है। यह मीठी, हल्की तथा आमाशय को मृदु बनाने वाली, भूख बढाने वाली, कामोद्दीपक, बवासीर, लकवा, वात-कफ रोगों में आराम देती है। इसमें सुगंध होती है, इसलिए यह दिल और दिमाग को ताकत देती है। वायु रोगों में इसका सेवन सोंठ के साथ कराया जाता हैं।