जानलेवा गर्मी: पारे से तप रहा है थल और जल (सभी तस्वीरें- हलधर)
पशु-पक्षी-जलचर के साथ पौधों का गड़बड़ाया श्वसन तंत्र, उत्पादन में आई कमी
पीयूष शर्मा
जयपुर। ... ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए। इस बार थार ही नहीं, पूरा प्रदेश गर्मी से तप रहा है। हरा- पीला-नीला रहने वाला राजस्थान मौसम विभाग का मानचित्र लाल से गहरे लाल में तब्दील हो चुका है। 45-48 डिग्री तापमान इंसान के साथ-साथ पशु-पक्षी-जलचर और फसल के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। हालात ये है हीटवेव के चलते दिन के समय गांव से शहर तक अघोषित क्फ्र्यू जैसी स्थिति नजर आने लगी है। दिन ब दिन चढ़ते पारे से इंसान हीटस्ट्रोक के शिकार हो रहे है। वहीं, पशु-पक्षी-जलचर और पौधों का श्वसन तंत्र गड़बड़ाने लगा है। इससे फल-सब्जी-दुग्ध उत्पादन में गिरावट देखने को मिल रही है। गर्मी का से ओपन फील्ड सब्जी के साथ-साथ संरक्षित सब्जी फसल भी दम तोडऩे लगी है। हरे-भरे पौधें सूखने लगे है। फल की गुणवत्ता और उत्पादन का स्तर गिरता जा रहा है। ऐसे में किसानों को चारों ओर से आर्थिक नुक सान उठाना पड़ रहा है। गौरतलब है कि मई के दौरान हर साल पारा अपना असर दिखाता है। लेकिन, इस साल पारा और लू अलग ही रिकॉर्ड बना रहा है। इससे थार से लेकर उथली नदियों का पानी भी तपने लगा है। इससे मछली सहित दूसरे जलचरों को अपना जीवन बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। भारतीय मौसम विभाग की माने तो ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि, मुख्य रूप से मानसूनी कमजोर हो रहा है और इसके कारण अल नीनो भी कमजोर हो रहा है। जिसकी वजह से एशिया में गर्म, शुष्क मौसम और अमेरिका के कुछ हिस्सों में भारी बारिश हो रही है। पाकिस्तान में पड़ रही भयंकर गर्मी का असर भारत पर भी पड रहा है। इसके अलावा गर्मी के दिनों में मानसून से पहले बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उष्णकटिंबधीय चक्रवात बनते हैं तो तूफानी हवाओं के साथ बारिश लाते हैं और मौसम बदलते हैं। इस साल एक भी चक्रवात नहीं आया। पिछले साल जून में बिपरजोय आया था जो 21 दिन तक चला था। वर्तमान में मानसून मालदीव, श्रीलंका के बॉर्डर और भारत में निकोबर द्वीप तक पहुंच चुका है। दूसरी तरफ बंगाल की खाड़ी में एक कम दबाव का क्षेत्र भी बन रहा है। लेकिन, इसके कमजोर होने की वजह से चक्रवाती तूफान में बदलने के आसार कम ही है।
मछलियों की बढ़ जाती है मेटाबोलिक दर
तेज गर्मी से थल के साथ-साथ जल भी गर्म हो जाता है। जहां पानी उथला होता है, वहां मछली सहित दूसरे जलीय जीवों के सामने जीवन बचाने की चुनौति खड़ी हो जाती है। मात्स्यकि महाविद्यालय उदयपुर के पूर्व अधिष्ठाता डॉ. सुबोध कुमार शर्मा ने बताया कि अधिक तापमान से मछली की मेटाबोलिक दर बढ़ जाती है। इससे मछली तनाव में आ जाती है। जहां पानी उथला होता है, वहां ऑक्सीजन कम हो जाता है। इस कारण मछलियों को सांस लेने के लिए बार-बार ऊपर आना पड़ता है। मछलियां मुंह खोलकर सांस लेना शुरू कर देती है। वहीं, बढ़वार भी कम होती है। मछलियों की बढ़वार के लिए उचित तापमान 28 से 32 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। इसके अलावा,अधिक तापमान से जल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। पानी में घुलित ऑक्सीजन की कमी, मुक्त कार्बन डाई ऑक्साइड मे बढ़ोत्तरी, और श्वष्ट वेल्यू मे वृद्धि हो ती है। पानी मे उपलब्ध लवणो की घुलनशीलता बढ़ जाती है। इससे उनका हानिकारक प्रभाव भी बढ़ जाता है और टीडीएस भी बढ़ जाता है। पानी मे उपस्थित हानिकारक पदार्थ अमोनियम आयन, नाईट्रेट, नाईट्राईट, क्लोराइड, इत्यादि आयनों, और प्रदूषक तत्वों, कीट नाशकों की प्रभाव ाीलता बढ़ जाती है. पानी में उपस्थित सस्पेंडेड पर्टिकल और टर्बीडीटी भी सूर्य के प्रकाश की गर्मी को अवशोषित कर आस पास के पानी के तापमान को और बढऩे का काम करती है। अधिक तापमान जलीय पौधों के लिए भी हानि कारक होता है, उनकी श्वाशन दर और ऑक्सीजन की डिमांड बढ़ जाती है, फोटो सिंथेसिस की दर कम होती है, और पानी मे उपस्थित शेवल की मात्रा एक सीमा तक तेजी से बढ़ती है।
घट जाता है दुग्ध उत्पादन
गर्मी से पशुधन भी प्रभावित हो रहा है। कृषि विज्ञान केन्द्र भीलवाड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सीएम यादव ने बताया कि तेज पारे की स्थिति में पशुओं में बैचेनी बढ़ जाती है। पशु की श्वसन दर बढऩे से उपाचय क्रिया प्रभावित होती है। इससे पशु का पाचन तंत्र गड़बड़ा जाता है। इस कारण दुग्ध उत्पादन में 8-10 फीसदी की गिरावट आती है। उन्होने बताया कि पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए पशुओं को छाया में और हवादार स्थान पर बांधे। पशुशाला का फर्श ठंड़ा रखें। पशुशााला का तापमान कम रखने के लिए कूलर अथवा पंखा लगाएं।
बॉर्डर झुलसा, फूल काले
तेज गर्मी से राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के साथ-साथ संरक्षित संरचना जैसे पॉली हाउस, शैडनेट में खीरे की फसल झुलस कर दम तोडऩे लगी है। इससे उत्पादन घटकर आधा रहने की संभावना है। काजरी जोधपुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप कुमार ने बताया कि पारा 40 से ऊपर जाने की स्थिति में संरक्षित और मैदानी सब्जी फसलों में नुकसान शुरू हो जाता है। गर्मी के प्रभाव से फूल सूखने लगते है। कैप्सूल कम बनते है अथवा झड़कर नष्ट हो जाते है। फल टेढे-मेढे बनते है। फल की चमक कम हो जाती है। वाष्पोसर्जन दर बढ़ जाने के पत्तियों के छिद्र सिकुडऩा शुरू हो जाते है। इससे पत्तियां मुरझाकर लटक जाती है। पौधें का जड़ तंत्र प्रभावित होता है। नई जड़ों का विकास नहीं हो पाता है। पॉली हाउस में बॉर्डर के साथ-साथ बीच-बीच में हॉटस्पॉट बन जाते है। ऐसे कई कारणो से गर्मी की फसल का उत्पादन बरसात और सर्दी की फसल की तुलना में आधा ही रह जाता है। पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। विशेषकर कैल्शियम और बोरॉन की। जड़ भूरी पडऩे लगती है। तना सिकुडने से फंगस का आक्रमण बढ़ जाता है। उन्होने बताया कि फसल को बचाव के लिए वायु संचार के साथ-साथ ह्यूमिडिटी को बढ़ाना चाहिए। आर्द्रता नापने के लिए सूखा बल्ब और गीला बल्ब थर्मामीटर का उपयोग करना चाहिए। साथ ही, सूक्ष्म पोषक तत्व और हार्मोन का छिड़काव फसल पर करना चाहिए। बेहत्तर वायु संचार के लिए साइड़ को वेटिलेंशन साढे तीन से चार मीटर चौड़ा और ऊपर का वेटिलेंशन डेढ़ मीटर चौड़ा होना चाहिए। 35-40 सैकण्ड़ के 4-5 बार फोगर चलाने चाहिए।
सूख जायेगा आम
ज्यादा पारे से फलदार फसल भी प्रभावित होने का डर है। एमपीयूएटी उदयपुर के उद्यानिकी वैज्ञानिक डॉ. एसएल लखावत ने बताया कि ज्यादा पारे से आम और जायद सब्जी फसल बुरी तरह से प्रभावित होती है। बात करें आम की तो फल-फूल झडऩे की समस्या खड़ी हो जाती है। साथ ही, फल का आकार छोटा रह जाता है। फल समय से पूर्व पककर तैयार हो जाता है। पौधा झुलसने से फल पर चकते बनना शुरू हो जाते है। इसके अलावा केले की फसल में फल फट जाता है। वहीं, पपीता के फल पर दागी हो जाते है।
हीट स्ट्रोक से बचाव
धूप और प्यास से बचें। पानी, छाछ, ओआरएस का घोल, लस्सी, नींबू पानी, आम का पना पिएं। दोपहर 12 से 3 के बीच न निकलें बाहर। धूप में जाएं तो सिर ढका रहे, टोपी, गमछा, छतरी और दुपट्टे का करें प्रयोग। तला हुआ और गरिष्ठ भोजन न करे, मादक पदार्थ, शराब, चाय और कॉफी का भी करें परहेज। ज्यादा गर्मी होने पर ठंडे पानी से शरीर पोंछे अथवा बार-बार स्नान करें । टाइट और सिंथेटिक के बजाय ढीले-ढाले सूती कपड़ों का प्रयोग करें ।