विदेश का पैसा गांव में... (सभी तस्वीरें- हलधर)
पीयूष शर्मा
जयपुर। विदेश का पैसा गांव में। जी हां, सच यही है। इस धारणा को धरातल देने वाले कोई बिजनेस माइंड लोग नहीं है। साधारण किसान है। कोई 10वीं पास है तो कोई 12वीं और कोई स्नातक। जिन्होंने अपने हाथ को हुनरमंद बनाने के बाद दूसरों को भी रोजगार से जोडऩे का काम किया है। या यूं क हे की मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया। इस कारवां को रास्ता दिखाने का काम किया है कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर के वैज्ञानिकों ने। शायद यही कारण है कि विदेशों के साथ-साथ देश के बड़े शहरों का पैसा भी गांव मेें आने लगा है। इससे ग्रामीण युवाओं को घर बैठे रोजगार मिल रहा है। वहीं, आधुनिक कृषि के साथ-साथ खाद्य प्रसंस्करण, बकरीपालन , नर्सरी स्थापना का कार्य बड़े उद्यम का रूप ले रहा है। यदि, इन किसानों के जैसे ही प्रदेश के ग्रामीण युवा कृषि सम्बद्ध क्षेत्र की सहायक गतिविधियों पर फोकस करें तो रोजगार के लिए शहर जाने की जरूरत नहीं रहेगी। गौरतलब है कि हर बार चुनावों में बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बनकर उभरती है। चुनावी सभाओं में रोजगार से जोडऩे के वादे भी किए जाते है। लेकिन, बाद में नतीजा ढ़ाक के तीन पात जैसा ही नजर आता है। लेकिन, कृषि ऐसा क्षेत्र है, जिसमें रोजगार के अवसरों की कोई कमी नहीं है। जरूरत है युवाओं को तकनीकी ज्ञान और कौशल की। गौरतलब है कि कोविड-19 के संक्रमण बाद सरकार के साथ-साथ शहरी युवाओं और गांव छोड़ चुके युवाओं को खेती-बाड़ी का महत्व समझ आया। इसको देखते हुए सरकार ने भी कृषि विज्ञान केन्द्रों सहित दूसरी संस्थाओं के माध्यम से कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों की संख्या में बढौत्तरी की। लेकिन, जिस गति से बेरोजगारी का मर्ज बढ़ रहा है, उस हिसाब से अलग-अलग विषयों में दक्षता आधारित कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों की संख्या को और बढ़ाने की जरूरत है। ताकि, इन प्रशिक्षणों के माध्यम से एक किसान भी उद्यमी बन गया तो औसतन 5-10 ग्रामीण युवाओं अथवा कृषि श्रमिकों को गांव में ही रोजगार मुहैया हो जायेगा। विश्वविद्यालय के कौशल विकास केन्द्र के प्रभारी डॉ. प्रदीप पगारिया ने बताया कि विश्वविद्यालय के अधीन आने वाले जिलों के किसानों का उद्यमी के रूप में तैयार होना कौशल विकाास प्रशिक्षण के दौरान दी जा रही तकनीकी जानकारी की गुणवत्ता का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि किसान को उद्यमी बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों का कार्य प्रशिक्षण देने तक सीमित नहीं होना चाहिए। इससे आगे जाकर किसान को व्यवसाय परिचालन के लिए भी समय-समय पर मार्गदर्शित करने की जरूरत है। यह इसी का प्रमाण और परिणाम है कि 10वीं पास किसान सालाना ढ़ाई से तीन करोड़ रूपए का कारोबार कर रहा है। साथ ही, दो दर्जन के करीब युवाओं को भी रोजगार दें रहा है।
किसान से उद्यमी तक
केस-1
10वीं पास की कमाई ढ़ाई करोड़
आईए, आपसे रूबरू कराते है जसोल-सिरोही जिले के किसान मोहन राजपुरोहित से। जो महज 10वीं पास है। लेकिन, कमाई के मामले में आईएएस और आईपीएस को भी पीछे छोड़ रखा है। मोहन पहले परम्परागत फसलों के उत्पादन तक सीमित रहे। बाद में सब्जी उत्पादन से जुड़े। लेकिन, सब्जी फसलों के प्रबंधन में आई दिक्कतों ने इन्हें कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर पहुंचा दिया। मोहन ने बताया कि विश्वविद्यालय से सब्जी उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इस दौरान नर्सरी स्थापना के बारे में भी जानकारी मिली। यही से जीवन को नई दिशा मिली। शुरूआत में आस-पास गांव के किसानों के लिए सब्जी पौध तैयार करना शुरू किया। इस व्यवसाय में मुनाफा अच्छा नजर आया। इसके बाद कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में नर्सरी कार्य को विस्तार दिया। इसी का परिणाम है कि 2 हैक्टयर सब्जी नर्सरी है। जो एनएचबी एक्रीडेटेंड है। नर्सरी में सालाना एक करोड़ से ज्यादा सब्जी पौध तैयार कर रहा हॅू। सहयोग के लिए 30 लेबर को काम पर रखा हुआ है। इनको मासिक 10-12 हजार रूपए वेतन दें रहा हॅू। उन्होंने बताया कि पहले परम्परागत फसलों के उत्पादन से 8-10 लाख रूपए की आमदनी होती थी। लेकिन, नर्सरी व्यवसाय के बाद आमदनी का आंकड़ा दो से ढ़ाई करोड़ रूपए तक पहुंच चुका है।
केस-2
गांव ला रहे है विदेशी मुद्रा
जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किनवा पर केवल रिसर्च किया गया। लेकिन, बावतरा-जालौर के किसान रमेश के लिए किनवा विदेशी मुद्रा गांव में लाने का जरिया बन गया। यह संभव हुआ किनवा के वैल्यू एडिट प्रॉडक्ट तैयार करने से। किसान रमेश ने बताया कि सालाना 1000 टन किनवा एक्सपोर्टर को दें रहा हॅू। प्रदेश के किसानों से बाय बैक के आधार पर किनवा की खेती करवा रहा हॅू। करीब 500-600 किसान किनवा उत्पादन से जुड़कर अच्छी आमदनी कमा रहे है। किसानेां से किस्म के आधार पर 50-70 रूपए प्रति किलो की दर से खरीद करता हॅू। इस कार्य से 20-25 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। उनको 15 हजार मासिक न्यूनतम वेतन दें रहा हॅू।
केस-3
छोड़ दिया स्टील का बिजनेस
जमा-जमाया कारोबार छोड़कर खेती को व्यवसाय की शक्ल देने वाले किसान है गांधव- बाड़मेर के संतोष विश्रोई। पहले मुबंई रहते थे और स्टील का बिजनेस देखते थे। उन्होने बताया कि परिवार के पास 11 स्टील निर्माण की इकाई है। लेकिन, अब शुद्ध रूप से किसान बन चुका हूूॅ। गांव में रहकर अपने साथ-साथ दूसरो के लिए भी रोजगार सृजन की दिशा में प्रयास कर रहा हॅू। उन्होंने बताया कि चार-पांच साल पहले हाईटेक खेती को अपनाया। इसके बाद ओपन फील्ड में भी सब्जी फसल का उत्पादन लेने लगा। इससे मेरे साथ-साथ 6 कृषि मजदूरों को रोजगार मिला है। सालाना 20-22 लाख रूपए की आमदनी खेती से मिल रही है। वहीं, खेत पर काम करने वाले मजदूरों को 15 हजार रूपए तनख्वा गांव में रहते हुए मिल रही है।
केस-4
डॉक्टर चरा रहा है बकरियां
आश्चर्य मत करिए। डॉक्टर बकरियां चरा रहा है। सच यही है। मिलाते है बकरी को उद्यम बनाने वाले झाक-बाड़मेर के बकरीपालक डॉ. देवाराम पंवार से। जिन्होंने सरकार की योजना का लाभ उठाते हुए वर्ष 2023 में आईजी एग्रो एंड गोट फार्म खोला। इससे गांव के तीन अन्य को भी रोजगार मिला। उन्होंने बताया कि खेती और सहायक गतिविधियों से सालाना 10 लाख रूपए की शुरूआती आमदनी मिलने लगी है। उन्होने बताया कि यह व्यवसाय की शुरूआत है। जैसे-जैसे उन्नत नस्ल के बकरे-बकरी तैयार होंगे, आमदनी का आंकड़ा स्वत: ही बढ़ता जायेगा।
विश्वविद्यालय के द्वारा सालभर में अलग-अलग विषय आधारित 300 के करीब कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। इन प्रशिक्षणों के जरिए जोधपुर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही, नागौर आदि जिलों के चार दर्जन के करीब किसान उद्यमी के रूप में तैयार हो चुके है। जो अपने साथ-साथ दूसरों को भी रोजगार दें रहे है।
डॉ. बीआर चौधरी, कुलपति, कृषि विवि. जोधपुर