स्वदेशी किस्मों से किसानों को मिलेगी आर्थिक आजादी

नई दिल्ली 13-Aug-2024 02:38 PM

स्वदेशी किस्मों से किसानों को मिलेगी आर्थिक आजादी (सभी तस्वीरें- हलधर)

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली का शोध
संरक्षित खेती के लिए टमाटर की दो और पाक चोई की एक किस्म का विकास 
पीयूष शर्मा

जयपुर। हर घर तिरंगा अभियान के साथ ही देश में आजादी के जश्र की तैयारियां शुरू हो चुकी है। तीन दिन बाद पूरा देश आजादी की 77वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनायेगा। शौर्य, त्याग, बलिदान की गाथाओं को अपने में समेटे इस पर्व से पूर्व ही कृ षि वैज्ञानिकों ने ग्रीन हाउस, पॉली हाउस में खेती करने वाले किसानों को टमाटर और पकचोई की स्वदेसी किस्मों की सौगात दी है। यह खुशखबर आई है भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली से। इस संस्थान के वैज्ञानिकों ने टमाटर की एक, चैरी टमाटर की एक और सलाद में उपयोग होने वाली पकचोई की एक किस्म का विकास किया है। संस्थान ने नव विकसित किस्मों को टमाटर पूसा संरक्षित-1, पूसा गोल्डन चेरी टमाटर-2 और पूसा पाकचोई -1 नाम दिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रदेश के साथ-साथ देशभर के किसान इन स्वदेसी किस्मों की बुवाई करके विदेशी किस्मों से ज्यादा उपज प्राप्त कर सकते है। गौरतलब है कि कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां किसानों को लाखों रूपए प्रति किलो की दर से किसानों को सब्जी फसलों का बीज उपलब्ध करवा रही है। लेकिन, नामी कम्पनियां किसानों से बीज का पूरा पैसा वसूलने के बाद 60-65 फीसदी अंकुरण की गारंटी दे रही है। इससे बीज खराब निकलने की दशा में किसानों को अपने साथ हुई ठगी का अहसास होता है। संस्थान के सेंटर फॉर प्रोटक्शन कल्टीवेशन टेक्नोलॉजी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पीके सिंह ने बताया कि टमाटर और पकचोई की इन किस्मों का उपयोग करके किसान आर्थिक आजादी प्राप्त कर सकता है। क्योंकि, सभी कि स्में गहन अनुसंधान के बाद किसानों तक पहुंचाई गई है। गौरतलब है कि टमाटर के उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है। भारत सरकार के दूसरे उत्पादन अनुमान के मुताबिक इस साल देश में सब्जियों का उत्पादन लगभग 204.96 मिलियन टन होने का अनुमान है। लौकी, करेला, पत्ता गोभी, फूलगोभी, कद्दू, टेपिओका, गाजर और टमाटर के उत्पादन में वृद्धि की उम्मीद है। जबकि, प्याज, आलू, बैंगन सहित सब्जियों के उत्पादन में कमी की संभावना है। सरकारी आंकडों के मुताबिक इस साल टमाटर का उत्पादन 212.38 लाख टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल के 204.25 लाख टन से 3.98 प्रतिशत अधिक है।
300 दिन तक उत्पादन
टमाटर पूसा संरक्षित-1
इस किस्म का विकास आईएआरआई के द्वारा विशेष रूप से ग्रीन हाउस, पॉली हाउस, शैडनेट में टमाटर की खेती करने वाले किसानों के लिए किया गया है। इसके  चलते संस्थान इस टमाटर की इस किस्म को टमाटर पूसा प्रोटेक्टेड़-1 नाम दिया है। डॉ. सिंह ने बताया कि संस्थान द्वारा विकसित यह पहली स्वदेशी खुली-परागित किस्म है। यह प्राकृतिक रूप से हवादार और कम लागत वाली संरक्षित संरचना के लिए उपयुक्त है। इसकी बेल की औसत लंबाई 8-10 मीटर है। इसमें प्रति पौधे औसतन 9-10 फूल लगते हैं। फल गोल, गहरे लाल रंग के होते हैं और फलों का औसत वजन 80-85 ग्राम होता है। पके हुए लाल फलों में टीएसएस 5.60 ब्रिक्स और लाइकोपीन की मात्रा 8.0 मिली प्रति 100 ग्राम होती है। गौर करने वाली बात यह है कि तुड़ाई तक फलों में दरारें नहीं पड़तीं। पहली कटाई सामान्यत: रोपाई के 80-85 दिन बाद शुरू होती है और जलवायु की स्थिति के आधार पर 270-300 दिनों तक जारी रहती है। इसके पौधें का तना गहरे हरे रंग,  डंठल के साथ और हर तीसरे नोड पर फूल वाला है। पत्तियाँ मध्यम लोब और दाँतेदार के साथ गहरे हरे रंग की होती हैं। फल गोल, आकर्षक लाल, मोटे पेरिकारप वाले, चिकनी सतह वाले और एक समान पकने वाले होते हैं। यह किस्म परिवहन के लिए भी उपयुक्त है। उन्होंने बताया कि 9-10 महीने के दौरान टमाटर की यह कि स्म से प्रति वर्ग मीटर 12-14 किलोग्राम तक औसत उत्पादन देती है। वहीं, प्रति एक हजार मीटर पर कुल उत्पादन 120-140 टन आंका गया है। इस किस्म की पहचान दिल्ली सहित उत्तर भारतीय मैदानी इलाकों में (मध्य अगस्त से मध्य मई ) तक के लिए की गई है। 

पूसा गोल्डन चेरी टमाटर-2
इसी तरह संस्थान ने चेरी टमाटर की भी नई किस्म तैयार की है। इस किस्म को संस्थान ने पूसा गोल्डन चेरी टमाटर-2 नाम दिया है। यह भी संस्थान की पहली स्वदेशी सुनहरे पीली आभा वाली चेरी टमाटर किस्म है। इस किस्म का विकास भी संरक्षित खेती करने वाले किसानों के लिए किया गया है। उन्होंने बताया कि इस किस्म के एक फल का औसत वजन 7-8 ग्राम होता है और फल की औसत उपज लगभग 3-4.5 किलोग्राम प्रति पौधा है और उपज क्षमता 9-11 टन प्रति एक हजार वर्ग मीटर है। रोपाई के 75-80 दिन बाद इस किस्म से पहली तुड़ाई मिल जाती है। इसके फलों में 13.02 मिली प्रति 100 ग्राम कैरोटीन, 18.3 मिली प्रति 100 एस्कॉर्बिक एसिड, 0.33 प्रतिशत अम्लता और टीएसएस 90 ब्रिक्स पाया गया है। इसकी फसल अवधि भी टमाटर पूसा प्रोटेक्टेड़-1 के समान है। 

पूसा पाकचोई -1
यह उत्तरी भारतीय मैदानी इलाकों के लिए विकसित पहली स्वदेशी पाक चोई किस्म है। इसका पौधा रोपाई के 45-50 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाता है। उन्होंने बताया कि अब तक पाक चोई के उत्पादन के लिए बीज का आयात करना पड़ता था। लेकिन, इस किस्म के विकास के बाद देश के किसानों को आसानी से बीज उपलब्ध हो पाएगा। गौरतलब है कि पाक चोई सर्दी के मौसम की फसल है। इसका उपयोग रूपटॉफ फार्मिंग में भी किया जाता है। इस किस्म की औसत उपज उपज 500-550 क्विंटल प्रति हैक्टयर है। बड़ी बात यह है कि इस उत्तर भारतीय मैदानी इलाकों में इस किस्म का बीज भी तैयार किया जा सकता है। इस किस्म को दिल्ली, उत्तर और मध्य भारत में सामान्य मिट्टी में सिंचित परिस्थितियों के लिए अनुशंसित किया गया है।
सब्जियों का बड़ा बाजार
मनुष्य के पोषण के लिए सब्जी बेहद जरूरी अंग माना जाता है। देश में 10.35 मिलियन हैक्टयर में सब्जी की खेती की जाती है। डायटिशियन के मुताबिक एक व्यक्ति को प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जी की आवश्यकता होती है। पर अभी तक हम उस लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाये हैं।  इसलिए, सब्जियों की खपत में कोई दिक्कत नहीं होने से सरकार सब्जी उत्पादन को प्रोत्साहित कर रही है। गौरतलब है कि भारतीय सब्जियो की वैश्चिक मांग के बावजूद निर्यात में हिस्सेदारी एक फीसदी के करीब है। 

संरक्षित संरचना के लिए विकसित टमाटर, चेरी टमाटर और पाक चोई की इन किस्मों से किसानों को आर्थिक लाभ होगा। साथ ही, बहुराष्ट्रीय बीज कम्पनियों की तुलना में इन किस्मों का बीज भी किसानों को उचित दर पर आसानी से उपलब्ध होगा। 
डॉ. पीके सिंह, प्रधान वैज्ञानिक, सीपीसीटी, पूसा, नई दिल्ली


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