थार तृप्ति की महिमा अब एमपी से गोवा तक - वैज्ञानिकों ने तैयार की नई किस्म (सभी तस्वीरें- हलधर)
केन्द्रीय शुष्क बागवानी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने तैयार की तरबूज-खरबूज की नई किस्म
पीयूष शर्मा
जयपुर। अब मध्यप्रदेश, गोवा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी थार की महिमा का बखान होगा। जी हां, सच यही है। कुछ ऐसा ही करिश्मा कर दिखाया है इन राज्यों के किसानों के लिए बीकानेर स्थित केन्द्रीय शुष्क बागवानी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने। संस्थान के वैज्ञानिको ने विभिन्न शुष्क फलों से थार को रसीला करने के बाद वैज्ञानिको ने अब मरू देश की मोटी चीज यानी तरबूज को गोवा तक पहुंचा दिया है। जल्द ही थार की यह थाती इन तीन राज्यों के किसानों की समृद्धि बढ़ाने का काम करेगी। क्योंकि, उत्पादन के मामले में संस्थान द्वारा विकसित तरबूज और खरबूज की नवीन कि स्मों ने प्रचलित किस्मों को भी पीछे छोड़ दिया है। गौरतलब है कि संस्थान के वैज्ञानिकों ने तरबूज और खरबूज की नई किस्म तैयार की है। वैज्ञानिकों ने तरबूज किस्म को थार तृप्ति और खरबूज किस्म को थार महिमा नाम दिया है। कृषि वैज्ञानिको का कहना है कि तरबूज और खरबूज को मरू प्रदेश की फसल माना जाता है और प्रदेश में पैदा होने वाले तरबूज-खरबूज अपने रंग रूप और स्वाद के कारण देश के कई हिस्सों में पसंद किए जाते है। इस कारण यहां पैदा होने वाले तरबूज और खरबूज की खपत दूसरे राज्यों में भी कम नहीं है। इसी को ध्यान में रखते हुए इन नवीन किस्मों का विकास संस्थान के द्वारा किया गया है। गौरतलब है कि वर्तमान में तरबूज से भी ज्यादा खरबूज की फसल किसानो की आर्थिक समृद्धि बढ़ाने काम कर रही है। क्योंकि, इस फल का हर एक भाग उपयोगी है। किसानो की माने तो खरबूज की फसल से प्रति हैक्टयर खर्च निकालने के बाद दो से ढाई लाख रूपए की बचत मिल जाती है। तरबूज और खरबूज किस्मों के प्रजनक वैज्ञानिक डॉ. बीआर चौधरी ने बताया कि खरबूज किस्म की पहचान राजस्थान के लिए हुई है। जबकि, तरबूज किस्म की पहचान जोन-7 यानी मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा सहित जोन के अन्तर्गत आने वाले राज्यों के लिए हुई है। उन्होने बताया कि इन किस्मों के विकास में 7-8 साल का समय लगा है। इन किस्मों के विभिन्न स्थानों पर परीक्षण हुए है। गौरतलब है कि संस्थान के प्रयासों से पश्चिमी राजस्थान के किसान बेर, लसोड़ा, सांगरी, बेलपत्र सहित दूसरी शुष्क-अद्र्धशुष्क फल-सब्जी फसलों का उत्पादन लेकर अपनी आमदनी बढ़ा रहे है।
पीएम ने किया विमोचन
संस्थान के द्वारा विकसित तरबूज और खरबूज की यह किस्में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा विमोचित किस्मों में शामिल रही है। गौतरलब है कि पीएम मोदी ने आईसीएआर संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित उच्च उत्पादन क्षमता वाली 109 और 32 जलवायु अनुकूल किस्मों का राष्ट्र को समर्पित किया था।
12 प्रतिशत टीएसएस
बात करें खरबूजा किस्म थार महिमा की तो इसके एक फल का वजन 600-700 ग्राम होता है। वही इसका आकार गोल है। छिलका जालीदार और धारीदार है। नजर डाले मिठास पर तो इसमें 12 प्रतिशत टीएसएस होता है। जो मुहं में चीनी घोलने का काम करता है। डॉ. चौधरी ने बताया कि इस किस्म की बुवाई फरवरी में होती है। फसल की प्रथम तुड़ाई 70-80 दिन पर मिल जाती है। इस किस्म की पहचान राजस्थान के शुष्क-अद्र्धश्ुाष्क क्षेत्रों के लिए हुई है। उन्होने बताया कि इसके गूदे का रंग नारंगी और प्रचलित किस्मों से मोटाई लिए हुए है। इस किस्म से प्रति हैक्टयर 200 क्विंटल तक औसत उत्पादन मिलता है। उन्होने बताया कि यह परीक्षण के दौरान इसका उत्पादन चैक किस्म पूसा मधुरस से 20 प्रतिशत ज्यादा मिला है।
अर्का मणिक को छोड़ा पीछे
उन्होने बताया कि संस्थान द्वारा विकसित तरबूज किस्म थार तृप्ति ने उत्पादन के मामले में चैक वैरायटी अर्का मणिक को पीछे छोड दिया है। चैक कि स्म से इसका उत्पादन 25 फीसदी तक ज्यादा मिला है। गौरतलब है कि इस किस्म से प्रति हैक्टयर 450 क्विंटल तक उत्पादन मिलता है। इस किस्म का परीक्षण राहुरी, जबलपुर, लुधियाना, दिल्ली, राजस्थान, बंगलुरू सहित देश के दूसरे परीक्षण केन्द्रो पर हुआ है। उन्होंने बताया कि थार तृप्ति के फल में 12 प्रतिशत टीएसएस और एक फल का वजन ढ़ाई से तीन किलोग्राम होता है। इसका फल गोल, धारीदार और मोटे छिलके वाला होता है। इससे यह कि स्म लंबी दूरी के परिवहन के लिए भी उपयुक्त है। इस किस्म की पहचान मध्यप्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र सहित जोन-7 के लिए हुई है।
ढ़ाई लाख तक मुनाफा
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक खरबूजे की खेती तरबूज से ज्यादा फायदेमंद साबित होती है। क्योंकि, इसकी मांग बाजार में बनी रहती है। गौरतलब है कि इस साल तरबूज के थोक भाव 3-5 रूपए प्रति किलो बोले जा रहे है। जबकि, खरबूजा रिटेल में 30 रूपए प्रतिकिलो की दर से बिक्री हो रहा है। उन्होंने बताया कि दुर्गापुरा मधु किस्म 85-90 दिन में तुड़ाई अवस्था में आ जाती है। खरबूजे की खेती में किसान की प्रति हैक्टयर लागत दो लाख रूपए तक आती है। जबकि, मुनाफा ढ़ाई लाख रूपए तक मिल जाता है। गौरतलब है कि प्रदेश में तीन से चार हजार हैक्टयर क्षेत्र में खरबूजे की खेती होती है।
किसानों को तरबूज-खरबूज की नई किस्मों का बीज उपलब्ध कराने के लिए तैयारियां शुरू की गई है। संस्थान में अलग-अलग जननद्रव्यों का परीक्षण किया जा रहा है। साथ ही, नई किस्म विकास पर भी शोध कार्य चल रहा है। यह दोनों कि स्में किसानों की आय बढाने में मददगार होगी।
डॉ. जगदीश राणे, निदेशक, सीआईएएच, बीकानेर