ग्रामीण भारत में डिजिटल क्रांति: कब जुड़ेगे गांव डिजिटल हाइवे से?

नई दिल्ली 10-Nov-2025 11:57 AM

ग्रामीण भारत में डिजिटल क्रांति: कब जुड़ेगे गांव डिजिटल हाइवे से?

(सभी तस्वीरें- हलधर)

भारतनेट के तहत 6.5 लाख ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फ़ाइबर से जोडऩे का लक्ष्य रखा गया है। अभी तक 60 प्रतिशत से कम गांवों में ही कार्यशील हाई-स्पीड नेटवर्क पहुंच पाया है। यह भी कि भारत अब कनेक्टिविटी बढ़ाने की दौड़ में विदेशी कंपनियों पर निर्भर नहीं रहा। बीएसएनएल की स्वदेशी 4जी स्टैक पहल ऐतिहासिक उपलब्धि है। सी-डॉट, तेजस नेटवर्क और टीसीएस के सहयोग से विकसित यह तकनीक महज 22 महीनों में तैयार हुई। भारत अब उन पांच देशों में शामिल हो गया है जो यह क्षमता रखते हैं।

भारत की विकास गाथा तब तक अधूरी है। जब तक इसकी असली ताक़त ग्रामीण भारत डिजिटल हाइवे से पूरी तरह नहीं जुड़ती। देश की लगभग 65 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। लेकिन, सुलभ इंटरनेट की पहुंच से अब भी दूर है। शहरी भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और शासन में डिजिटल क्रांति स्पष्ट दिखती है। जबकि, गांव अब भी कमज़ोर नेटवर्क और सीमित डिजिटल साक्षरता से जूझ रहे हैं। इस खाई को पाटना ही आने वाले दशक में समावेशी विकास और असमानता दूर करने का निर्णायक कारक बनेगा। यह सच है कि मौजूदा सरकार ने डिजिटल भारत अभियान को केवल शहरों तक सीमित न रखकर उसे गांवों-कस्बों तक पहुंचाने की दिशा में कई कदम उठाए। डिजिटल इंडिया दृष्टि ने तकनीक को विलासिता से सशक्तीकरण के औजार में बदल दिया है। अब किसान ऑनलाइन मंडी भाव देख रहे हैं, महिलाएं सीधे लाभ हस्तांतरण योजनाओं से जुड़ रही हैं, विद्यार्थी ई-लर्निंग तक पहुंच रहे हैं और रेहड़ी वाले तक क्यूआर कोड से नकद रहित भुगतान स्वीकार कर रहे हैं। यह केवल तकनीकी नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक क्रांति का प्रतीक है, जो गांवों में अवसरों का विस्तार कर रही है। गांवों की जिंदगी में डिजिटल क्रांति से ऑनलाइन पढ़ाई और रोजग़ार के कारण शहरों की ओर पलायन में कमी आ रही है। वहीं, इंटरनेट से महिलाएं स्वयं सहायता समूहों, सूक्ष्म ऋ ण और ऑनलाइन प्रशिक्षण के जरिये आर्थिक आत्मनिर्भर बन रही हैं। विश्व बैंक के अनुसार, इंटरनेट तक पहुंच रखने वाली ग्रामीण महिलाओं को 15 प्रतिशत अधिक रोजग़ार अवसर मिलते हैं। साथ ही, नेटवर्क के ज़रिए गांव अब राष्ट्रीय विमर्श में भाग ले रहे हैं। अपनी सांस्कृतिक विरासत का डिजिटल संरक्षण भी कर पा रहे हैं। गौरतलब है कि भारतनेट परियोजना के तीसरे चरण पर 1.39 लाख करोड़ रुपये (2023-25) खर्च किए जा रहे हैं। जियो और एयरटेल जैसी कंपनियां 2026 तक 90 प्रतिशत आबादी को 5जी से जोडऩे का दावा कर रही हैं।

पहाड़ी क्षेत्रों के लिए सैटेलाइट इंटरनेट एक विकल्प है। लेकिन, इसकी लागत 1,200-1,500 रुपये प्रति परिवार प्रतिमाह तक पहुंच सकती है। हालांकि, तथ्य यह भी कि भारत हर साल 6.4 लाख करोड़ रु. ग्रामीण विकास पर खर्च करता है। यदि इसका 10 फीसदी भी डिजिटल नेटवर्क विस्तार पर लगाया जाए, तो इससे हर गांव जुड़ सकता है। सवाल उठता है कि गांवों तक नेटवर्क पहुंचना क्यों जरूरी है? इसके उत्तर कई हैं। एक तो ऑनलाइन कक्षाएं, डिजिटल लाइब्रेरी और ई-लर्निंग एप्स ग्रामीण छात्रों के लिए वरदान हैं। यूनिसेफ  के अनुसार, इससे गांवों में बच्चों की सीखने की क्षमता 20-25 प्रतिशत बेहतर रही है। इस समय ग्रामीण भारत की 65 फीसदी आबादी 35 वर्ष से कम की है। डिजिटल नेटवर्क से उन्हें स्किल ट्रेनिंग, ऑनलाइन कोर्स और रिमोट जॉब्स के अवसर मिल सकते हैं। वहीं इंटरनेट सुविधा के चलते कृषि और अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिला है। नीति आयोग के अनुसार, किसान मौसम, फसल मूल्य और सरकारी योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर 8-10 प्रतिशत अधिक आय अर्जित कर रहे हैं। यही नहीं, स्वास्थ्य क्षेत्र में जहां ग्रामीण इलाकों में प्रति 10,000 लोगों पर केवल एक डॉक्टर है, ऐसे में ई-संजीवनी जैसे टेलीमेडिसिन प्लेटफ़ॉर्म ने अब तक दो करोड़ से अधिक परामर्श प्रदान किए हैं। इंटरनेट के माध्यम से सीधे लाभ अंतरण (डीबीटी) से पेंशन, मज़दूरी और सब्सिडी सीधे लाभार्थियों के खातों में पहुंच रही हैं, जिससे भ्रष्टाचार में कमी आई है और शासन में पारदर्शिता बढ़ी है। पिछले दशक में उल्लेखनीय सुधार के बावजूद ट्राई के 2025 के आंकड़ों के अनुसार, केवल 52 प्रतिशत ग्रामीण घरों में इंटरनेट की पहुंच है, जबकि, शहरी क्षेत्रों में यह 95 प्रतिशत है। वहीं, बीएसएनएल अब तक 92,000 साइटें स्थापित कर चुका है, जिससे 2.2 करोड़ से अधिक लोग—जिनमें बड़ी संख्या ग्रामीण उपभोक्ताओं की है—इंटरनेट से जुड़े हैं। यह न केवल तकनीकी उपलब्धि है। बल्कि, आत्मनिर्भर भारत की जीवंत मिसाल भी है। यही नहीं, स्वदेशी स्टैक से स्थानीय रोजगार, सप्लाई चेन और तकनीकी कौशल का विकास हुआ है। यह तकनीक निर्यात योग्य भी है, जिससे भारत केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि टेलीकॉम उत्पादक राष्ट्र के रूप में उभर रहा है। इस सबके बावजूद अब भी चुनौतियां शेष हैं। सस्ता डेटा होने पर भी स्मार्टफ ोन और मासिक खर्च गरीब परिवारों पर बोझ हैं। दूसरी ओर, 60 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण वयस्क अब भी डिजिटल ज्ञान से वंचित हैं। वहीं, बिजली कटौती और मरम्मत सुविधाओं की कमी नेटवर्क प्रभावित करती है। इसके साथ ही, साइबर ठगी और अफ वाहों का खतरा भी बढ़ रहा है।

केएस तोमर, राजनीति के विश्लेषक


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प्रकाश संश्लेषण सूर्य के प्रकाश को जीवन-ऊर्जा में रूपांतरित करने की नैसर्गिक घटना है और शाकाहार प्राकृतिक दोहन को नियंत्रित करने की मानव की मौलिक प्रकृति-प्रदत्त जीवन शैली। इन्हें प्रोत्साहित किए बिना हमारे जीवित ग्रह को बचा पाना संभव नहीं होगा। प्रकाश संश्लेषण पृथ्वी पर जीवन का आधार है, जिसके माध्यम से हरे पौधे, शैवाल और कुछ जीवाणु सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को ग्लूकोज में परिवर्तित कर ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं। यह नैसर्गिक क्रिया न केवल वनस्पति के साम्राज्य को बनाए रखती है, वरन हमारे सांस लेने के लिए ऑक्सीजन भी प्रदान करती है।