सरकार ने मारी बाजी या चूक गए चौहान

नई दिल्ली 09-Sep-2024 01:35 PM

सरकार ने मारी बाजी या चूक गए चौहान

(सभी तस्वीरें- हलधर)

सरकारों के आठ दशकों के तमाम बड़े-बड़े वादों के बावजूद किसान अपनी खेती और खेतों को बचाने के लिए लगभग हारी हुई अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। लगातार बढ़ती लागत, फसलों के उचित मूल्य का अभाव, और प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहे किसानों को इस साल का बजट कितनी राहत पहुंचा पाएगा, यह अभी भी एक बड़ा सवाल है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और किसान पेंशन योजनाओं का सरकार दिन-रात ढोल पीट रही है । जबकि, इन योजनाओं का दायरा और राशि समय के साथ घटती जा रही है। निजी-बीमा कंपनियां कृषि-बीमा का मोटा प्रीमियम वसूल कर चांदी काट रही हैं। जबकि, किसानों की बढ़ती हुई आत्महत्या की घटनाएं स्पष्ट करती हैं कि कृषि क्षेत्र के लिए जरूरी कायाकल्प के प्रति सरकार बिल्कुल गंभीर नहीं है।
कागजी क्रांति, धरातल पर दिखावा
डिजिटल कृषि मिशन सुनने में भले ही प्रौद्योगिकी के नये युग की दस्तक लगे। लेकिन, यह दस्तक खेतों तक पहुंचने में नाकाम साबित हो सकती है। भले ही इसका मकसद एआई, बिग डेटा और सेटेलाइट जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके किसानों को सशक्त बनाना है। लेकिन, सवाल उठता है कि क्या इस तकनीक का लाभ असल में उन किसानों तक पहुंचेगा, जो अब भी सिंचाई के लिए बारिश का इंतजार करते हैं और जिनके पास न तो स्मार्टफोन है और न ही इंटरनेट की पर्याप्त सुविधा ? यह सच है कि कृषि में तकनीकी सुधार की आवश्यकता है। लेकिन, इन सुधारों का जमीनी स्तर पर सही तरीके से लागू होना अनिवार्य है। डिजिटल एग्रीकल्चर की यह कल्पना तभी साकार हो सकती है, जब देश के हर कोने में इंटरनेट और डिजिटल साक्षरता का प्रसार हो। वरना यह योजना महज एक शहरी दिखावे से अधिक कुछ नहीं रह जाएगी, जिससे देश के करोड़ों किसानों की मुश्किलें कम होने की बजाय बढ़ेंगी। डाटा बेचने वाली तीन प्रमुख दूरसंचार कंपनियों ने गोलबंद होकर जिस तरह से हाल में ही अपनी सेवा-दरों में एकमुश्त 18 से 22 प्रतिशत तक वृद्धि की है । इससे स्पष्ट है कि इस डिजिटल-क्रांति का असल फायदा किसको होने वाला है।
खाद्य और पोषण 
जलवायु-अनुकूल खेती और फसल विज्ञान के जरिए साल 2027 तक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। यह योजना, जो अनुसंधान और शिक्षा को आधुनिक बनाने का दावा करती है, वास्तव में इस देश के किसानों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में कितनी सफल होगी? अनुसंधान और विकास तब तक निरर्थक हैं, जब तक कि उसका लाभ सीधा किसान को न मिले।
सतत पशुधन स्वास्थ्य और उत्पादन
पशुधन और डेयरी उद्योग को बढ़ावा देना आवश्यक है। लेकिन , इसमें भी वही समस्या है जो कृषि में है—जमीनी स्तर पर पहुंचने वाली योजनाओं की कमी। पशुधन का स्वास्थ्य, पशु चिकित्सा शिक्षा, डेयरी उत्पादन तकनीक, और पशु आनुवंशिक संसाधन प्रबंधन पर सरकार द्वारा ध्यान दिया जाना सराहनीय है। लेकिन, इस दिशा में सरकार का प्रयास अभी अधूरा है। जब तक यह योजना पशुपालकों तक प्रभावी तरीके से नहीं पहुंचेगी, तब तक यह एक और खोखली घोषणा बनकर रह जाएगी।
क्लाइमेट-चेंज की चुनौति
जलवायु परिवर्तन एक ऐसा वास्तविक संकट है, जो आने वाले समय में समूचे कृषि क्षेत्र के अस्तित्व को संकट में डाल सकता है। हीट वेव, अचानक अतिवृष्टि और मानसून के समय में परिवर्तन और अनिश्चितता जैसी चुनौतियों के सामने सरकार की यह योजना ओर तैयारी अपर्याप्त नजर आती है। वास्तविकता यह है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें तुरंत और दूरगामी ठोस उपाय करने होंगे। केवल योजनाओं की घोषणा से कुछ नहीं होगा। जब तक कि उन्हें सम्पूर्ण ईमानदारी के साथ ठोस रूप से कार्यान्वित नहीं किया जाता। सरकार को संसाधनों का सही और समुचित इस्तेमाल करना होगा। ताकि, देश के किसानों को जलवायु परिवर्तन के बढ़ते संकट का सामना करने में मदद मिल सके।
ना कोई रोडमैप, ना ठोस योजना 
सरकार परंपरागत फसलों के साथ जड़, कंद, सब्जी, फूलों और औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने का दावा कर रही है। लेकिन यह भी बाकी योजनाओं की तरह आधी-अधूरी है। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि कोरोना काल के महा-पैकेज में औषधीय पौधों की खेती के लिए 4000 करोड़ रुपए की घोषणा की गई थी। उस योजना और उक्त राशि का क्या हुआ ? योजना के मुख्य भागीदार देश के औषधीय नों को ही पता नहीं।
सरकारें सतत विकास की बस बातें करती हैं? यह तो समय ही बताएगा कि यह सतत बागवानी विकास योजना किसानों की आय में किस तरह कितनी सतत बढ़ोतरी कर पाएगी। अथवा फिर इस राशि को भी सत्ता के दलाल नेता ,व्यापारी, अधिकारी मिलकर जीम जाएंगे और यह भी सरकार की योजनाओं की सतत बढ़ रही नित नूतन योजनाओं अंतहीन सूची में शामिल होकर रह जाएगी ?
कृषि विज्ञान केंद्र
कृषि विज्ञान केंद्रो के वर्तमान स्वरूप और हवाई कार्य-योजनाओं के कारण अधिकांश केवीके अनुत्पादक इकाई के साथ सफेद हाथी बनकर रह गए हैं। सरकारी योजनाओं के भोंपू मात्र बनने से काम नहीं बनन वाला, कृषि नवाचारों को बढ़ावा देना तथा योजनाओं में किसानों की सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित करना भी जरूरी है।
फिर चूक गए चौहान...
एमएसपी गारंटी कानून के बिना किसानों की आय में वृद्धि और स्थिरता लाना मुश्किल है। यह कानून किसानों को उनके उत्पादन के लिए एक न्यूनतम मूल्य की सुरक्षा देगा, जिससे वह बाजार के उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होंगे। किसानों की इस मांग को सरकार द्वारा तुरंत प्राथमिकता दी जानी चाहिए। ताकि, उन्हें उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके और वह घाटे से बच सकें। बिना एमएसपी गारंटी के किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार की कोई भी योजना अधूरी मानी जाएगी।
वास्तविकता यह है कि किसानों को बड़े कृषि सुधारों और दीर्घकालिक ठोस योजनाओं और कृषि क्षेत्र की अधोसंरचना के विकास हेतु भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता है। देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि और कृषि संबंधी उद्योगों से जुड़ी है, लेकिन, बजट का केवल 3 से 4 प्रतिशत ही कृषि के लिए आवंटित किया जाता है।
डॉ. राजाराम त्रिपाठी


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