लदने लगे बीटी कपास के दिन
(सभी तस्वीरें- हलधर)हालांकि, इसके लिए कई कारकों विशेष तौर पर नए कीटों और रोगों के उभार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। लेकिन, ऐेसा प्रतीत होता है कि इसका मुख्य कारण अनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों के संबंध में सरकार की अविवेक भरी नीति है, जिसकी वजह से पुराने बीजों की जगह लेने वाले नए और उन्नत बीजों की नियमित आवक में बाधाएं बनी हैं। शुरुआत में आए अधिकतर जीएम हाइब्रिड कपास में कीट मारक जीन होता है, जो मिट्टी में रहने वाले बैक्टीरिया बैसिलस थुरिंजिएंसिस से निकला होता है। लेकिन, अब यह किस्में लगातार रूप बदलते कीटों और रोगाणुओं के खतरों और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने की क्षमता खो चुकी हैं। ऐसे में अब उनके प्रभावी और बेहतर विकल्प तलाशने का वक्त आ गया है। बहुराष्ट्रीय बायोसाइंसेज कंपनी मॉन्सैंटो ने बीटी कपास हाइब्रिड के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई थी। लेकिन, व्यावसायिक कार्यों के प्रति सरकार के दुर्भावनापूर्ण नजरिये के कारण कंपनी बहुत पहले ही भारत से बाहर चली गई। उसके बाद से ही मॉन्सैंटो अस्तित्व में नहीं है । क्योंकि, वर्ष 2018 में बेयर ने इसे खरीद लिया। निजी क्षेत्र में बीज तैयार करने वाली अधिकांश कंपनियां भी ज्यादा लागत वाली इस जीन संवद्र्धित तकनीक में निवेश करने से हिचकिचा रही हैं । क्योंकि, उन्हें ऐसा लगता है कि उनके उत्पादों को व्यवसायीकरण के लिए मंजूरी मिलने में हमेशा अनिश्चितता रहेगी। हालांकि जीन में बदलाव वाली कपास की कुछ किस्मों ने खरपतवारों और कीटों दोनों को नियंत्रित करने का खर्च कम करने में मदद की है। इनमें खरपतवार नष्ट करने वाली बीटी कपास हाइब्रिड शामिल हैं और यह हाल में उपलब्ध हुई हैं। सरकार ने इसके लिए औपचारिक मंजूरी नहीं दी है। जिसके कारण अवैध माध्यमों से बड़े पैमाने पर ये उपबल्ध हो रही हैं। इस तरह भारत उन्नत जीएम कपास बीजों के इस्तेमाल के लिहाज से अन्य देशों की तुलना में पांच से छह पीढ़ी पीछे है। इसलिए हैरत नहीं होनी चाहिए कि 2001 में भारत में जिस कपास की औसत पैदावार 278 किलोग्राम प्रति हैक्टयर थी और 2013-14 में बढ़कर 566 किलो हो गई थी। उसकी पैदावार हाल में घटकर 440-445 किलो ही रह गई है। यह 800 किलो प्रति हैक्टयर की वैश्विक औसत उत्पादकता से काफ ी कम है। ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और चीन जैसे देशों के किसान आम तौर पर 1,800 से 2,000 किलोग्राम तक की पैदावार कर लेते हैं। औसत उत्पादकता से लिहाज से भारत कपास उगाने वाले 30 दूसरे देशों से नीचे है। हालांकि भारत का वार्षिक कपास उत्पादन चीन के बराबर है जो कपास उत्पादन में मान्यता प्राप्त प्रमुख देश है। लेकिन, भारत के संदर्भ में ऐसा इसलिए है। क्योंकि ,इस फसल की बुवाई यहां बहुत बड़े क्षेत्र में होती है। वास्तव में भारत में कपास का रकबा लगभग 1.3 करोड़ हैक्टयर है, जो दुनिया में सबसे बड़ा है और चीन के लगभग चार गुना है। लेकिन, प्रति हैक्टयर औसत उपज चीन की तुलना में एक चौथाई से भी कम है। भारत इकलौता देश ह, जहां कपास की सभी चार किस्में गॉसिपियम अर्बोरियम, जी हर्बेसियम (दोनों को एशियाई कपास अथवा देसी कपास माना जाता है) , जी बारबेडेंस (मिस्र कपास) और जी हिरसुटम (अमेरिकी कपास) उगाता है। लेकिन, भारत में ज्यादातर कपास यानी करीब 90 फ ीसदी अमेरिकी किस्म की कपास है। देसी कपास की नरमी और अवशोषण गुण के कारण इसे सर्जरी आदि से जुड़ी प्रक्रिया के लिए अच्छा माना जाता है। इसके अलावा देसी कपास स्थानीय कृषि व्यवस्था के लिए बेहतर अनुकूल है और कीटों, रोगों तथा मौसम की अनियमितताओं के लिहाज से भी मजबूत है, जिसकी खेती सदियों से होती आ रही है। कपास उत्पादन को बरकरार रखना कपड़ा क्षेत्र की आर्थिक स्थिति के लिए भी बहुत जरूरी है। कपड़ा उद्योग देश के सकल घरेलू उत्पाद में 5 प्रतिशत, औद्योगिक उत्पादन में 14 प्रतिशत और निर्यात में 11 प्रतिशत का योगदान देता है। करीब 60 लाख कपास किसानों के अलावा कई लाख लोग प्राकृतिक धागे और इससे जुड़े उत्पादों जैसे धागा, कपड़ा, परिधान और दूसरे कपड़ों के उत्पादन, प्रसंस्करण और कारोबार में जुड़े हुए हैं। कपड़ा उद्योग से करीब 4.5 करोड़ लोगों की आजीविका चलती है। भारत का कपड़ा बाजार करीब 240 अरब डॉलर का है और 6.8 प्रतिशत सालाना चक्रवृद्धि दर से यह वर्ष 2033 तक 475 अरब डॉलर का आंकड़ा छू सकता है। अच्छे बीजों का इस्तेमाल कर इस वृद्धि को और तेज किया जा सकता है। कपास वास्तव में एक बहु-उपयोगी फसल है, जो प्रमुख रेशे के अलावा भोजन और चारा भी मुहैया करा सकती है। कपास का उपयोग धागे और विभिन्न प्रकार के कपड़े के उत्पादन के लिए किया जाता है। इसके अलावा चिकित्सा और घरेलू क्षेत्रों में विभिन्न प्रयोगों के लिए इसका इस्तेमाल होता है। इसके बीज खाद्य तेल तैयार करने और पशुओं और मुर्गियों के लिए पौष्टिक चारा तैयार करने के काम भी आते हैं। कपास की खेती के लिए नए आधुनिक तरीके और बीजों का इस्तेमाल करना ही कपास क्रांति फि र से लाने के तत्काल उपाय हैं। नई अधिक उपज वाली और कीट-प्रतिरोधी कपास किस्मों के विकास की सुविधा के लिए जीएम बीज नीति की समीक्षा के साथ-साथ फसल उत्पादकता को बढ़ाने के लिए बेहतर कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने की जरूरत है। इससे न केवल देश में कपास की उपलब्धता बढ़ेगी । बल्कि, किसानों की आय में वृद्धि होगी। निर्यात संभावनाओं में सुधार होगा और कपास आधारित उद्योग को लाभ होगा।
सुरिंदर सूद, वरिष्ठ पत्रकार