सवाल फास्टफूड की गुणवत्ता का (सभी तस्वीरें- हलधर)
पिछले दिनों एक परेशान करने वाली खबर अखबारों की सुर्खी बनी। पटियाला में जन्मदिन पर ऑनलाइन केक मंगवाकर खाने से एक बच्ची की मौत हो गई। इसके अलावा बच्ची का पूरा परिवार भी बीमार पड़ गया। विगत में ऑनलाइन मंगवाए गए जहरीला खाना खाने से मरने या बीमार होने के समाचार देश के दूरदराज के इलाकों से सामने आते रहे हैं। यहां सहज-सरल स्वाभाविक सवाल यह है कि देश में जब बाजार से मंगवाकर खाने-पीने की चीजों का कारोबार अंधाधुंध रूप से बढ़ रहा है तो क्या केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से बाजार में बिकने वाले खाने की चीजों की गुणवत्ता की निगरानी के लिये कोई नये कायदे-कानून बने हैं? क्या इस उछाल मारते कारोबार पर नजर रखने के लिये कोई नियामक संस्था बनायी गई है? अथवा फिर मानकर चलें कि सब रामभरोसे चल रहा है? सवाल यह भी है कि पुराने खाद्य वस्तु नियामक कानूनों को भी नागरिकों की स्वास्थ्य सुरक्षा की दृष्टि से अपडेट किया गया है? क्या इसमें ऐसे मामलों में घटिया खाद्य सामग्री सप्लाई करने वालों को दंडित करने के लिये कड़े प्रावधान हैं? आये दिन ऑनलाइन खाने की चीजें सप्लाई करने में गड़बडिय़ों के मामले सामने आते रहे हैं। आम लोगों को पता चलना चाहिए कि उन मामलों में क्या कार्रवाई हुई है। हम आए दिन फेमस कंपनियों की खाने की चीजें सप्लाई करने वाले बाइकरों के पीछे लगे गंदे-फटे बैग देखते हैं, जो शायद वर्षों से नहीं धुले होते हैं। जिन्हें देखकर मन खट्टा होता है। बहुत संभव है कि साफ-सफाई के अभाव में खाना खाने वाले व्यक्ति के घातक कीटाणुओं से संक्रमित होने की संभावना बन जाए। क्या जिन बैगों में खाने की चीजें उपभोक्ताओं तक पहुंचाई जाती हैं, उनकी नियमित साफ-सफाई होती है? क्या फूड कैरियर बैग्स को साफ सुथरा रखने की जिम्मेदारी आपूर्ति करने वाली कंपनियों की नहीं बनती? हम अपने घर में बनने वाले खाने को तैयार करने में साफ-सफाई की एक लंबी प्रक्रिया का ध्यान रखते हैं। हालांकि, वैसी साफ-सफाई की उम्मीद मुनाफे के लिये कारोबार करने वाली कंपनियों से तो नहीं ही की जा सकती, मगर नागरिकों की सेहत के लिये कैरियर बैग और बर्तनों को पहली नजर में तो कम से कम साफ सुथरा तो नजर आना ही चाहिए। यह बात तो तय है कि यदि वैज्ञानिक तरीकों से खाने की चीजें सप्लाई करने वाले इन फूड कैरियर बैग्स की जांच की जाए तो यह पक्का नुकसान पहुंचाने वाले बेक्टेरिया से संक्रमित पाये जा सकते हैं। ऐसे में ऑनलाइन खाने की चीजें मंगवाने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिये जरूरी है कि इन फूड कैरियर बैगों को प्रतिदिन नियमित रूप से कैमिकली वॉश किया जाए। लेकिन, फिलहाल इन गंदे बैगों को देखकर ऐसा होता नजर नहीं आता। दरअसल होना तो यह चाहिए कि खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की जांच करने वाले फूड इंस्पेक्टरों को खाने के सामान की सप्लाई करने वाले आउटलेट, ढाबों और होटलों की नियमित जांच करनी चाहिए। साथ ही, रास्तों में भी इन फूड कैरियरों की औचक जांच करनी चाहिए। ताकि, सप्लाई करने वाली कंपनियां भी साफ-सफाई के प्रति सजग रहें और नागरिकों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ न हो सके। अक्सर सुनने में आता है कि फूड कैरियर ने खाने की वस्तुएं पहुंचाने में ऊंच-नीच की है। ऐसे में कोई ऐसा मैकेनिज्म भी तो होना चाहिए, जिसके जरिये ऑनलाइन खाद्य पदार्थों की सप्लाई के लिये ओटीपी की व्यवस्था हो, जिसके बताने पर ही टिफिन बॉक्स का लॉक खुल सके। साथ ही, खाद्य पदार्थों की सप्लाई करने वाले आउटलेट्स की खाने की चीजें बनाने की प्रक्रिया, पैकिंग और सप्लाई की कैमरे से निगरानी हो, ताकि जरूरत पडऩे पर गुणवत्ता की प्रामाणिक जांच की जा सके। दरअसल, ऑनलाइन खाने के सामान की आपूर्ति को नागरिकों के स्वास्थ्य के नजरिये से सुरक्षित बनाने के लिये देश में सख्त कानूनों की जरूरत है। यदि मिलावट और घटिया सामान कस्टमर को देने पर दंड के कड़े प्रावधान होंगे, तो सामान बेचने वाले आउटलेट, होटल, ढाबों के मालिकों को जिम्मेदार और जवाबदेह बनाया जा सकेगा। जहां मिलावट और लापरवाही से किसी की जान जाने का मामला हो, वहां उम्रकैद और भारी जुर्माने का प्रावधान होना चाहिए। साफ है कि किसी उपभोक्ता के जीवन से खेलने का किसी को भी अधिकार नहीं है। जहरीला केक परोसने की घटना से सबक लेकर इस दिशा में सख्त से सख्त कानून बनाने की जरूरत अब महसूस की जा रही है। वहीं दूसरी ओर देश में तेजी से फास्टफूड का खानपान बढ़ा है। खासकर हमारी युवा पीढ़ी इसकी जुनून की हद तक दीवानी है। अक्सर कहा जाता है कि इन फास्टफूडों को बनाने में घटिया तेल का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं तमाम ऐसे रासायनिक पदार्थ इन्हें चटपटा बनाने के लिये इस्तेमाल किये जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिये गंभीर संकट पैदा कर सकते हैं। ये रासायनिक पदार्थ किस मात्रा में इस्तेमाल किये जाने चाहिए और कौन से उपयोग नहीं किये जाने चाहिए, इस बारे में सरकारें और स्थानीय प्रशासन हमेशा खामोश हैं। लेकिन , विडंबना यह है कि नई पीढ़ी के बच्चे जहां घर में बने सेहत के अनुकूल खाने की वस्तुओं को देखकर नाक-भौं सिकोड़ते हैं, वहीं बाजार के खुले में बिकने वाले चटपटे फास्टफूड को खाना अपनी शान समझते हैं। इसका युवाओं के लीवर और किडनी आदि पर बुरा असर पड़ रहा है। लेकिन, हमारी सरकारें और स्थानीय निकाय के अधिकारी इन फास्टफूड की गुणवत्ता व इनके नकारात्मक प्रभावों को लेकर उदासीन ही नजर आते हैं। यह विडंबना ही है नई पीढ़ी की सेहत से खिलवाड़ करने वाले इन फास्टफूड निर्माताओं की निगरानी करने के लिये कोई कड़े कानून और प्रभावी संस्था अब तक अस्तित्व में नहीं आई है।