जो धनतेरस से शुरू होता है और नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली), लक्ष्मी पूजन (बड़ी दिवाली), गोवर्धन पूजा और भाई दूज तक जारी रहता है। दिवाली को बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय से जोड़कर देखते हैं। दीपावली यानि दीपों की अवली अथवा कह सकते है दीपों की पंक्ति। दीपावली को मनाने का अलग-अलग घर्मों में अलग-अलग मान्यताएँ और धार्मिक कारण हैं। लेकिन, बहुत सी घार्मिक मान्यताएं और त्यौहार वैज्ञानिक कारणों से भी जुड़ी होती हैं। हिन्दु धर्म में माना जाता है कि दीपावली के दिन यानि कार्तिक मास कि अमावस्या को अयोध्या के राजा भगवान श्री राम चन्द्र जी अपने चैदह वर्ष के वनवास के बाद लौटे थे। इसी खुशी में अयोध्या वासियों नेे दीया जला कर उनका स्वागत किया। तब से आज तक इस परम्परा को पुरे भारत में धूम-धाम से मानाया जा रहा हैं। यह हिन्दुओं का सबसे प्राचीन और बड़ा मनाया जाने वाला त्यौहार है। जैन घर्म के अनुसार चैबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी जी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसलिए जैन घर्म के लोग इसे महावीर स्वामी के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं और इसी दिन उनके प्रथम शिष्य गौतम गणघर को ज्ञान प्राप्त हुआ था। सिख धर्म के अनुसार इसी दिन अमृतसर में 577 में स्वर्ण मन्दिर की नींव रखी और 69 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरू हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। इसलिए सिख धर्म को मानने वाले लोग इसे बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते है। दीवाली को हम बेहत्तर स्वास्थ्य का जीवन उत्सव भी कह सकते है। क्योंकि, मानसून के बाद दिवाली आती है। मानसून के दौरान, हवा नम होती है और बैक्टीरिया से भरी होती है। बरसात के मौसम में पानी जगह-जगह जमा हो जाता, नमी के साथ-साथ तापमान में गिरावट के कारण हमारे आसपास खतरनाक कीड़े-मकोड़े पैदा हो जाते हैं और कुछ जहरीले कीड़े-मकोड़े जमीन से बाहर निकल आते हैं। ये कीडे हमारे वातावरण और घरों में कहीं भी पनप सकते हैं जो भयानक बीमारियों का कारण बनते हैं जैसे डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया आदि। इसलिए दिवाली के पहले हम अपना घर साफ करते है फिर दीपावली के दिन दिया जलाते है, जिससे वातावरण के जहरीले कीड़े-मकोड़े आग में जल के खत्म हो जाते है और हम खुद को और अपने आस-पास के फसलों को भी खराब होने से बचाते है। दिया जलाने से कोई ऐसा तत्व अथवा केमिकल नहीं निकलता, जिससे वातावरण को नुकसान पहुंचे। दीपक से निकलने वाली गर्मी हवा को साफ करने में मदद करती है। तेल में मौजूद मैग्नीशियम हवा में मौजूद सल्फर और कार्बन ऑक्साइड के साथ प्रतिक्रिया करके सल्फेट और कार्बोनेट बनाता है। यह भारी तत्व जमीन पर गिरते हैं, जिससे हवा हल्की हो जाती है। साथ ही, जहरीले कीड़े-मकोड़े दियों की रौशनी से आकर्षित हो कर दिए के पास इकठ्ठा होने लगते है और दिये की गर्मी और आग से मारे जाते हैं। दिवाली के बाद ठंड बढऩे लगती है, जिससे सर्दी-जुकाम का खतरा भी बढ़ जाता है, इसलिए दिवाली में हम घी से बने व्यंजन खाते हैं, घी हमारे शरीर को गर्म रखने में मदद करता है और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जिससे हमारा पाचन तंत्र साफ रहता है। गाय का घी 96 प्रतिशत पचने योग्य माना जाता है जो कि दूसरे सभी वनस्पति अथवा पशु आपूर्ति वसा की तुलना में बहुत अच्छा है। यह कब्ज और पेट की कई अन्य समस्याओं को ठीक करने में भी काफी कारगर माना जाता है।