शहरों के हाल बेहाल - हर साल मानसून में नालें जाम (सभी तस्वीरें- हलधर)
हर साल मानसून के दौरान हमारे शहरी ढांचे के हाल बेहाल दिखने लगते हैं। छोटे शहरों की बात छोडि़ए, थोड़ी देर की बारिश में ही जयपुर, मुंबई, चेन्नई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहरों में हाहाकार जैसी स्थिति हो जाती है। सड़कों पर पानी का सैलाब आ जाता है। खुले नालों और मेनहोल में डूबने से लेकर करंट लगने से लोगों की जान चली जाती है। बस्तियां पानी में डूब जाती हैं। परिवहन व्यवस्था अवरुद्ध हो जाती है। कुल मिलाकर, जान-माल की भारी क्षति के साथ ही लोगों को भारी असुविधा की स्थिति से दो-चार होना पड़ता है। इसके पीछे के कारणों की पड़ताल करें तो अपर्याप्त ड्रेनेज यानी नाकाफी निकासी तंत्र, अनियोजित शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के चलते वर्षा के प्रारूप में परिवर्तन जैसे पहलू सामने आते हैं। जहां देश के अधिकांश हिस्सों में ड्रेनेज व्यवस्था इतनी लुंजपुंज है कि वह पानी की समुचित निकासी नहीं कर पाती, वहीं जल राशियों पर अतिक्रमण ने स्थितियों को और खराब कर दिया है। यह किसी से छिपा नहीं है कि हमारे शहरों का ड्रेनेज सिस्टम कालबाह्य हो चुका है और वह भारी बारिश की स्थिति से निपटने में सक्षम नहीं। ऊपर से शहरों में बढ़ता कचरा, निर्माण के बाद बचा हुआ मलबा, नालों में जमा गाद बारिश में स्थितियों को और बिगाड़ देती है। सेंट्रल पब्लिक हेल्थ एंड एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग आर्गेनाइजेशन (सीपीएचईईओ) का मानक ढांचा भी बाढ़ नियंत्रण के पुराने मापदंडों पर आधारित है। इससे समस्या और विकराल हो जा रही है। अनियोजित शहरीकरण के चलते ड्रेनेज चैनलों और प्राकृतिक जल राशियों पर अतिक्रमण बढ़ा है। इससे अतिरेक पानी की निकासी के मोर्चे पर शहर असहाय होते जा रहे हैं। डूब क्षेत्र में निर्माण जारी हैं। मिसाल के तौर पर जयपुर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट जो इन दिनों बरसाती पानी से लबालब नजर आ रहा है। रालधानी में ऐसे निर्माण के बहुतेरे उदाहरण मिल जाएंगे जिन्हें जल राशियों को पाटकर बनाया गया। सिकुड़ता हरित आवरण भी पानी को सोखने की क्षमता घटा रहा है। मौसम के बदले मिजाज ने वर्षा के तेवर भी बदल दिए हैं। ऐसे में इन स्थितियों पर नियंत्रण के प्रभावी उपाय तलाशना आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य हो गया है। इस दिशा में सबसे पहला उपाय तो ड्रेनेज सिस्टम को उन्नत बनाने के रूप में करना होगा। इसके लिए आधुनिक हाइड्रोलाजिकल डाटा के आधार पर मौसम के पैटर्न और वर्षा के हालिया रुझान का आकलन करते हुए ड्रेनेज सिस्टम को नए सिरे से तैयार करना चाहिए। नियमित तौर पर उनका बेहतर रखरखाव सुनिश्चित करना चाहिए। समय-समय पर उसकी साफ-सफाई की जाए। इन गतिविधियों के लिए विशेष वित्तीय कोष की व्यवस्था की जाए। ड्रेनेज सिस्टम को सुचारु ढंग से चलाए रखने के लिए जीआइएस मैपिंग और रिमोट सेंसिंग जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाए ताकि कहीं भी उसके अवरुद्ध होने पर तुरंत कार्रवाई की जा सके। इसके साथ ही ड्रेनेज सिस्टम को नई परिस्थितियों के अनुरूप समय-समय पर उन्नत बनाते रहना चाहिए। अभी सीपीएचईईओ के जो मानक हैं वह बाढ़ नियंत्रण के दशकों पुराने और अप्रासंगिक प्रारूप पर आधारित हैं, जो जलवायु परिवर्तन के चलते मौसमी परिदृश्य पर आ रहे परिवर्तनों के अनुकूल नहीं हैं। यही कारण है कि एकाएक हुई तेज वर्षा के समय हमारा समूचा तंत्र चरमरा जाता है।
इस समस्या के समाधान में उस स्पांज सिटी संकल्पना को अपनाना भी उपयोगी साबित हो सकता है, जो शहरों को वर्षा के पानी को संभालने, स्टोर करने और उसके शोधन में सक्षम बनाता है। इस दिशा में पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए फुटपाथ के नीचे जल संरक्षण, ग्रीन रूफ, रेन गार्डन और शहरी आर्द्रभूमियों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। इससे भूजल रीचार्ज की मुहिम को भी मजबूती मिलेगी। नई शहरी परियोजनाओं में ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर के समावेश को अनिवार्य किया जाए और पुराने ढांचे को नई तकनीक से उन्नत करने पर प्रोत्साहन की व्यवस्था भी की जाए। ऐसे ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर का दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित करने के लिए उसके प्रभावी रखरखाव की दिशा में स्पष्ट नियमावली तैयार की जाए। प्राकृतिक जल राशियों और ड्रेनेज चैनलों का प्रभावी प्रबंधन भी शहरी बाढ़ के जोखिमों को कम करने में सहायक होगा। इन पर अतिक्रमण की स्थिति में शासन-प्रशासन को शिकंजा कसना होगा और डूब क्षेत्र में निर्माण को लेकर समग्र प्रभावों का संज्ञान लेने वाली किसी व्यापक योजना पर काम करना होगा। इसमें अवैध ढांचों से मुक्ति का भी कोई मार्ग निकालना होगा। हमें एक ऐसा तंत्र बनाना होगा जो एकाएक तेज बारिश से होने वाले जलभराव से राहत दिला पाए। इन नीतियों में अपेक्षाकृत ऊंची इमारतों से लेकर सक्षम ड्रेनेज प्रणाली जैसे पहलू निश्चित रूप से शामिल होने चाहिए। इसके साथ ही मौजूदा ढांचे को भी नए समय की चुनौतियों के अनुरूप प्रभावी बनाना भी उतना ही आवश्यक है।