रबी फसलों में खरपतवार प्रबंधन से बढ़ाएं उत्पादन और गुणवत्ता

नई दिल्ली 10-Nov-2025 02:32 PM

रबी फसलों में खरपतवार प्रबंधन से बढ़ाएं उत्पादन और गुणवत्ता

(सभी तस्वीरें- हलधर)

आमतौर पर विभिन्न फ सलों की पैदावार में खरपतवारों द्वारा 5 से 85 प्रतिशत तक की कमी खरपतवार, कीट-रोग प्रकोप और परिस्थितियों के आधार पर आंकी गई है। खरपतवार फ सलों के लिए भूमि में निहित पोषक तत्व और नमी का एक बड़ा हिस्सा शोषित कर लेते हैं। साथ ही, फ सल को आवश्यक प्रकाश और स्थान से भी वंचित रखते हैं। फ लस्वरुप पौधे की विकास गति धीमी और गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।  यह भी देखा गया है कि जहां खरपतवारों का प्रकोप ज्यादा होता है । वहां कीट-रोग का आक्रमण भी बढ़ जाता है।  

खरपतवार की रोकथाम

प्राय: देखा गया है कि किसान फसल में कीड-मकोड़ों और रोग-कीट की रोकथाम की ओर तुरन्त ध्यान देते हैं। लेकिन, खरपतवारों के प्रति उदासानी रहते हैं। यहां पर महत्वपूर्ण ध्यान देने योग्य बात यह है कि फ सल को हमेशा न तो खरपतवार मुक्त रखा जा सकता है और न ही ऐसा करना आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है। अत: क्रान्तिक अवस्था पर खरपतवार नियंत्रण के तरीकों को अपनाकर पैदावार में कमी को रोका जा सकता है। साथ ही, किसान इस बात का ध्यान विशेष रुप से रखें कि उखाड़े गए खरपतवार मेंढों पर न छोड़ें । उन्हें एक जगह गङ्ढे में इक_ा करें। अन्यथा उनके बीज गिरकर पुन: वर्षा आदि से खेतों में पहुंचकर हानि पहुंचाते हैं।

देश में विभिन्न कारकों द्वारा फसली नुकसान का विवरण

विभिन्न फसलों में खरपतवार द्वारा पोषक तत्वों का पलायन

रबी फ सलों के प्रमुख खरपतवार

किसी स्थान पर खरपतवारों की उपस्थिति वहां की जलवायु, भूमि, संरचना, भूमि में नमी की मात्रा, खेतों में बुवाई की गई पिछली फसल आदि पर निर्भर करती है। इसलिए एक ही फ सल में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग प्रकार के खरपतवार पाये जाते है। विभिन्न रबी फ सलों में उगने वाले प्रमुख खरपतवारों में मोथा, हिरन खुरी, फेलेरिस माइनर , कृष्ण नील, जंगली जई,  बथुआ, चौलाई, दूब घास आदि शामिल है। 

खरपतवारों की रोकथाम

खरपतवार का नियंत्रण सही समय पर करें।  खरपतवारों की रोकथाम निम्नलिखित तरीकों से की जा सकती है।

निवारण विधि:- इस विधि में वह सभी क्रियाएं शामिल हैं। जिनके द्वारा खेतों में खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है। जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर- कम्पोस्ट खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफ ाइ, खेत की तैयारी और बुवाई में प्रयोग किये जाने वाले यंत्रों की प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह से सफाई इत्यादि। 

सस्य विधि:- गर्मी में खेत की गहरी जुताइ, स्टेल सीड बेड विधि, जीरो टिल सीड ट्रिल अथवा हैप्पी सीडर का प्रयोग, फ सल चक्र विधि, अनर्तवर्ती फ सल विधि इत्यादि का प्रयोग भी खरपतवारों को नियंत्रित करता है। 

यांत्रिक विधि:- फ सल की प्रारंभिक अवस्था में बुवाई के 15-45 दिन के मध्य फ सलों को खरपतवार से मुक्त रखना जरुरी है। सामान्यत: दो निराई-गुड़ाई, पहली 20-25 और दूसरी 45 दिन बाद करने से खरपतवारों का नियंत्रण प्रभावी ढंग से होता है।  इसके लिए परम्परागत कृषि यंत्रों के अतिरिक्त उन्नत नीदानाशक यंत्रों जैसे खींचकर अथवा ढकेलकर चलाये जाने वाले सस्ते हल्के और प्रभावी वीडरों का प्रयोग किया जा सकता है। इन यंत्रों का प्रयोग कतार में बोई गई फ सलों में ही सम्भव है।                            

रासायनिक विधि

शाकनाशी रसायनों का प्रयोग:- वर्तमान समय में मजदूरों की कमी की समस्या को देखते हुए खरपतवारों का नियंत्रण शाकनाशी रसायनों द्वारा करने से जहां एक ओर खरपतवारों का उचित समय पर नियंत्रण हो जाता है । वहीं दूसरी ओर लागत और समय की भी बचत होती है । लेकिन , शाकनाशी नाशकों का उपयोग करते समय यह ध्यान रखना होगा कि उसकी उचित सांद्रता को उचित विधि द्वारा उपयुक्त समय पर प्रयोग करें । ताकि, इनसे समुचित लाभ प्राप्त हो सके । अन्यथा लाभ के बजाय हानि भी हो सकती है।  फ सलों में उपयोग किये जाने वाले रसायनों का प्रयोग मुख्यत: तीन तरीकों से किया जा सकता है । 

बुवाई से पूर्व भूमि में मिलाकर

इस प्रकार के शाकनाशी को फ सल बुवाई के पहले खेत में अंतिम तैयारी करते समय मिला देना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि खेत में पर्याप्त नमी उपलब्ध हो। जैसे फ्लूक्लोशलिन

अंकुरण के बाद छिड़काव

इस प्रकार के शाकनाशी रसायनों का प्रयोग बुवाई के 30-35 दिन बाद किया जाता है। जैसे 2-4 डी, क्लोडिनाफ ॉप, फेनाक्साप्रांप, सल्फ ोसल्फ्यूरॉन इत्यादि । जिससे खरपतवार अंकुरण अवस्था में ही समाप्त हो जाते हैं अथवा बाद में नीदा रसायन के प्रभाव से पूर्णतया नष्ट हो जाते हैं।  

रसायन प्रयोग में सावधानी

रसायन की जिस फ सल के लिए अनुशंसा की गई है उसी में प्रयोग करें। शाकनाशी रसायनों की उचित मात्रा को उचित समय पर छिड़काव करें।  छिड़काव के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है।  पानी की उचित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।  छिड़काव यंत्र को छिड़कने से पहले अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए।  छिड़काव के लिये हमेशा फ्लैट फैन नोजल का ही प्रयोग करें।  शाकनाशी और पानी के घोल को छानकर छिड़काव करना चाहिये।  छिड़काव करते समय विशेष पोषक दस्ताने और चश्मे आदि का प्रयोग करना चाहिये । ताकि, रसायन शरीर पर न पड।  छिड़काव के समय मौसम साफ  होना चाहिये। हवा की गति तेज नहीं होनी चाहिये।  रसायन के खाली डिब्बों को नष्ट करके जमीन में दबा देना चाहिये।  शाकनाशी रसायन को खाने की चीजों से दूर रखना चाहिये। शाकनाशी के छिड़काव के बाद शरीर को अच्छी तरह से धो लेना चाहिय।  छिड़काव करते समय खाने की वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिये।