कृषि शिक्षा की गिरावट पर केन्द्र सरकार गंभीर

नई दिल्ली 11-Sep-2024 04:24 PM

कृषि शिक्षा की गिरावट पर केन्द्र सरकार गंभीर

(सभी तस्वीरें- हलधर)

आईसीएआर डीजी ने राज्य के मुख्य सचिव को लिखा पत्र
जयपुर।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने एक बार फिर राज्य सरकार के कृषि शिक्षा प्रोत्साहन के मनमाने तरीके की कलई खोल दी है। परिषद ने कहा है कि राज्य सरकारों द्वारा आईसीएआर से बिना मशविरा किए स्थापित किए जा रहे नए कृषि विश्वविद्यालयों से कृषि शिक्षा के साथ कृषि वैज्ञानिकों पर नकारात्मक प्रभाव सामने आ रहे है। जिसका सीधा असर कृ षि अनुसंधान, शिक्षा और प्रसार से जुड़ी परियोजना पर देखने को मिल रहा है। ऐसे में राज्य सरकारें नए कृषि विश्वविद्यालयों के ऐलान से पूर्व आईसीएआर से परामर्श जरूर करें। गौरतलब है कि आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने राज्यों के मुख्य सचिवों को इस संबंध में पत्र लिखा है। आईसीएआर डीजी का यह पत्र उस समय आया है जब राज्य सरकार नए महाविद्यालयों के लिए भूमि की तलाश कर रही है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने कृषि को उच्च शिक्षा के हवाले करके शिक्षा की गुणवत्ता के साथ-साथ गांव-गरीब-किसान के नौ-निहालों का भविष्य रसातल में धकेल दिया है। भले ही सरकार कृषि कॉलेज के नाम पर लोगों की भरपूर वाहवाही लूटी रही हो। लेकिन, धरातल पर बात करें तो काजल की कोठरी ही नजर आती। कॉलेजों में पर्याप्त स्टाफ और सुविधाओं की दरकिनारी उच्च शिक्षा की पोल खोल रही है। सभी प्रशासनिक अधिकार उच्च शिक्षा विभाग के पास सुरक्षित रखें है। इसके चलते कॉलेेजों में शिक्षकों की नियुक्ति, शिक्षण से जुड़ी मूलभूत सुविधाएं और भवन की व्यवस्था का जिम्मा उच्च शिक्षा विभाग के पास है।  जबकि, विद्यार्थियों की परीक्षा और प्रायोगिक कार्य के साथ-साथ परीक्षा परिणाम घोषित करने का कार्य कृषि विश्वविद्यालय देख रहे है। लेकिन,  उच्च शिक्षा विभाग के अधीन खोले गए कॉलेज और कृषि महाविद्यालयों से सम्बद्ध महाविद्यालयों के परीक्षा परिणाम में बड़ा अंतर देखने को मिला है।  शिक्षाविदों का कहना है कि सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाएं तो अध्ययरत विद्यार्थियों का आगामी भविष्य चौपट हो जायेगा। क्योंकि, पास आउट होने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा की गुणवत्ता और अनुभव दूसरे विद्यार्थियों की तुलना में कम रहना स्वभाविक है। ऐसे में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार के दरवाजे बंद रहने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि हलधर टाइम्स लगातार इस मामले को उठाता आ रहा है। 
बिना संसाधन चल रहे है कॉलेज
सूत्रों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में बिना प्लानिंग के खोले गए कृषि महाविद्यालय बगैर संसाधनों के चल रहे हैं। शहरी क्षेत्र के कॉलेजों को छोड़ दें तो विद्यार्थियों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही है। शायद यही कारण है कि विद्यार्थी इन कॉलेजों में प्रवेश को लेकर अब कतराने लगे है। क्योंकि, दो साल बीत जाने के बावजूद भी शिक्षण-प्रशिक्षण संबंधी व्यवस्थाएं पटरी पर नहीं आ पाई है। 
केन्द्र सरकार गंभीर 
आईसीएआर ने इस बात पर जोर दिया है कि कृषि शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबी ज्ञान देना नहीं है। बल्कि , इसमें प्रैक्टिकल अनुभव और आधुनिक तकनीकों की जानकारी भी शामिल है। इसके बिना छात्रों का विकास अधूरा रहेगा, जो कि देश की कृषि क्षेत्र की प्रगति के लिए घातक साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि कृषि शिक्षा को पारंपरिक और विशेषज्ञता वाले कॉलेजों तक सीमित रखना ही देश हित में सही दिशा में कदम होगा। केंद्र सरकार ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया है, जिससे राज्यों को अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।


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