अश्व में कृत्रिम गर्भाधान (सभी तस्वीरें- हलधर)
डॉ. सज्जन कुमार, डॉ. तिरुमला राव तल्लुरी, अश्व उत्पादन केंद्र, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर
कृत्रिम गर्भाधान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें नर और मादा पशुओं के प्राकृतिक मिलन न करवा कर, नर अश्व के शुक्राणु को ताज़ा, ठंडे किये हुये अथवा हिमीकृत वीर्य को मादा के गर्भाशय में पहुँचा कर मादा को गर्भित किया जाता है। वर्तमान में यह विधि गाय और भैंस में काफ ी लोकप्रिय है। लेकिन, अब कृत्रिम गर्भाधान का उपयोग घोडिय़ों को गर्भित करने में किया जा रहा है। जिसके सार्थक परिणाम सामने आ रहे है।
घोड़ों में कृत्रिम गर्भाधान के लाभ
इस विधि के उपयोग से उच्च गुणवत्ता वाले घोड़े के वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान आसानी से किया जा सकत्ता है। नर अश्व के एक बार स्खलित वीर्य को कई घोडियो को गर्भित करने में काम ले सकते है।
नर अश्व का मादा अश्व तक और मादा अश्व का नर अश्व तक पहुँचना संभव नहीं हो। जिनमे पैर की विकृति और लंगड़ापन हो, अश्वपालक उन घोडिय़ों को भी इस विधि से गर्भित करवा सकते है।
कुछ घोडिय़ा नर घोड़ो के साथ प्राकृतिक मिलन करवाते समय सहयोग नहीं अथवा डर जाती है उन घोडि़य़ों को भी इस विधि के उपयोग से गर्भित करवा सकते है।
प्राकृतिक सहवास के दौरान यौन संक्रामक रोग फैल सकते हैं ओर कृत्रिम गर्भाधान से यौन संक्रामक रोग फैलने का खतरा नहीं रहता है
अच्छे गुणवत्ता वाले घोड़ों में प्राकृतिक गर्भाधान की लागत बहुत अधिक है और कृत्रिम गर्भाधान से उच्च गुणवत्ता वाले बच्चे बहुत कम लागत प्राप्त कर सकते है।
अश्व में कृत्रिम गर्भाधान कैसे किया जाए
घोडिय़ों में कृत्रिम गर्भाधान पूर्ण रूप से योनि मार्ग द्वारा किया जाता है। घोडिय़ों में कृत्रिम गर्भाधान पर ताज़ा, ठंडे किये हुए अथवा हिमीकृत वीर्य से किया जा सकता है।
मद के लक्षण की पहचान
नर अश्व के प्रति लगाव, बार-बार कम मात्रा में पेशाब करना्र भग-शिश्न प्रदर्शन, साफ योनि स्त्राव, अंडाशय में बढ़ते आकार की अंड-पुटिका (अल्ट्रासोनोग्राफ ी तकनीक या गुदामार्ग से जाँच द्वारा) और गर्भाशय के भीतरी परत का गाड़ी का पहिया आकार् में (अल्ट्रासोनोग्राफ ी तकनीक सेद्ध) दिखना आदि।
कृत्रिम गर्भाधान पूर्व की जाने वाली तैयारीयां
घोड़ी को अरगड़े अथवा पैरों में रस्सी डालकर नियंत्रित करना, लीद बाहर निकाल कर पिछले हिस्से को साबुन, पानी और जीवाणुनाशक घोल से अच्छी तरह धोना चाहिए । पूंछ पर जीवाणुहीन साफ कपडा लपेट कर बायें अथवा दाहिने ओर हटाकर बाँध अथवा पकड़ लेना चाहिए ।
गर्भाधान कब करना चाहिए
जब अश्व में 40-50 मिमी की अंड-पुटिका हो, जो मुलायम हो, जिसका आकार अनियमित हो और जिसमें डिम्बक्षरण बिंदु स्पष्ट हो। ताजा, ठंडे वीर्य से घोडियों में कृत्रिम गर्भाधान करने का उचित समय डिम्बक्षरण के 24 घंटे पहले से डिम्बक्षरण के 6 घंटे तक और हिमीकृत वीर्य से डिम्बक्षरण के 12 से डिवारण के 6 घंटे के अन्दर करना चाहिए।
वीर्य की मात्रा
हिमीकृत वीर्य के 0.5 मिली वाले आठ स्ट्रा (कुल मात्रा लगभग 4 मिली.) जिसमें शुक्राणुओं की संख्या लगभग 200 गुना 106 प्रति मिली और शुक्राणु गतिशीलता न्यूनतम 30 प्रतिशत हो।
वीर्य मादा के किस हिस्से में पहुँचाएं
आमतौर पर गर्भाशय के अविभाजित हिस्से में अथवा अंङ-पुटिका बनने के तरफ विभाजित गर्भाशय के अग्र हिस्से में।
मद चक्र में कृत्रिम गर्भाधान कितनी बार करें
हिमीकृत वीर्य द्वारा 24 घंटे के अन्तराल पर 2-3 बार अथवा डिम्बवरण के 5 घंटे के अन्दर सिर्फ एक बार ठंडे किये हुये वीर्य से डिम्बक्षरण की पुष्टि तक प्रत्येक दूसरे दिन करना चाहिए ।