वर्षाकाल में मुर्गियों की देखभाल
(सभी तस्वीरें- हलधर)पशुपालकों को अपनी पशु संपदा का वर्षभर ध्यान रखना पड़ता है। परंतु वर्षाऋ तु अथवा मानसून के दौरान उनकी यह जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। क्योंकि, मौसम के प्रतिकू ल प्रभाव के कारण उत्पादन में कमी हो जाती है। बरसात के मौसम में कुक्कुट पालन का व्यवसाय सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। लेकिन, गृह, खाद्य, पानी इत्यादि का उचित प्रबंधन करके कुक्कुट पालक समस्याओं का उचित समाधान पा सकता है। गौरतलब है कि वर्षा ऋतु में तापमान में गिरावट का मुर्गियों अथवा चूजों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो कि इस प्रकार है...
> तापमान में कमी होने के कारण चूजों की मृत्यु दर लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
> अंडा उत्पादन में कमी आती है।
> मुर्गियां अपने शरीर का तापमान सामान्य बनाए रखने के लिये ज्यादा आहार लेती है। मुर्गियों के बिछावन में सामान्यत नमी 20 से 30 प्रतिशत तक होनी चाहिए। परंतु मानसून के दौरान नमी बढ़ जाती है जिससे कई बैक्टीरिया, फफूंद और प्रोटोजोआ की वृद्धि बढ़ जाती है।
> वर्षाऋतु के दौरान कई खतरनाक बीमारियों जैसे स्वास रोग अस्पर्जिलोस, कॉक्सिडियोसिस, न्यूमोनिया और कई परजीवी रोग होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
गृह प्रबंधन
> मुर्गियों के बाड़े की मरम्मत करें। ताकि, उसमें किसी भी प्रकार का जल स्राव नहीं हो। बाड़े के ऊपर की तरफ वेंटीलेटर लगा देना चाहिए।
> अंडा देने वाली मुर्गी के बारे में इस प्रकार की व्यवस्था हो कि उनका मल बरसाती पानी के प्रवाह में ना आए।
> ड्रेनेज के लिये बना हुए गटर की सफाई नियमित रूप से करनी चाहिए।
> बाड़े के फर्श की नियमित सफाई होनी चाहिए। उस पर चूना छिड़क देना चाहिए। ताकि, किसी भी प्रकार की नमी नही हो।
आहार प्रबंधन
> मुर्गियों के लिये खाद्य पदार्थ उचित मात्रा में संग्रह करके रख लेना चाहिए। खाद्य पदार्थ की बोरियों को जमीन से लगभग 1 फीट ऊपर और दीवार से आधे फीट दूर लकड़ी के पट्टों के ऊपर रखना चाहिए।
> विटामिन्स और मिनरल्स सप्लीमेंट की बोतलों को अच्छे तरीके से बंद करके रखना चाहिए । ताकि , उसमें किसी भी प्रकार की नमी अवशोषित नही हो।
> वर्षाऋ तु के दौरान फिशमील और अंडे की खोल का पाउडर आसानी से उपलब्ध नहीं होता हैं। इन्हें उचित मात्रा में संग्रह करके रखना चाहिए।
जल संबंधी प्रबंधन
> पानी को नियमित समय पर ई-कोलाई और दूसरे सूक्ष्म जीवों की जांच के लिए भेजते रहना चाहिए।
> बैक्टीरिया से होने वाली कई बीमारियां दूषित जल के कारण होती है। दूषित अथवा मृदा युक्त जल को मुर्गियों को पीने के लिये नहीं देना चाहिए। पानी को फिटकरी से उपचारित करके 24 घंटे तक रख देना चाहिए। ताकि, सभी अशुद्धियां तल में बैठ जाएं। इसके बाद इसे मुर्गियों को पिलाना चाहिए।
> इसके अलावा दूषित जल को ब्लीचिंग पाउडर के द्वारा भी शुद्ध किया जा सकता है। 1 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर, जिसमें 35 प्रतिशत क्लोरीन मौजूद है, यह 500 लीटर पानी को शुद्ध करने के लिए उपर्युक्त है।
> पानी संग्रहित किए हुए बर्तन को ढक कर रखना चाहिए । ताकि , उसमें वर्षा का जल प्रवेश नहीं हो। टैंक और पाइप लाइन की नियमित समय अंतराल में सफाई करते रहना चाहिए।
अन्य प्रबंधन
> फार्म में बरसात का पानी कहीं भी एकत्रित नहीं होना चाहिए। क्योंकि, इससे कई कीटाणुओं और कीड़े-मकोड़ों का प्रजनन और वृद्धि बढ़ जाती है। इसके लिए कई कीटाणुनाशक दवाओं का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
> मुर्गियों और चूजों में मुंह से देने वाले टीके के लिये क्लोरीन युक्त जल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
> मानसून के तनाव को कम करने के लिए 200 से 400 पीपीएम विटामिन सी और विटामिन बी मुर्गियो और चूजों के खाने में मिला देना चाहिए।
बिछावन प्रबंधन
> बिछावन में नमी लगभग 20 से 30 प्रतिशत तक होनी चाहिए। बिछावन में नमी का ज्यादा प्रतिशत कई कारणों की वजह से हो सकता है जैसे कि
> बिछावन जिस भी पदार्थ जैसे की चावल की भूसी, कागज आदि का बना है वह खराब होना।
> मुर्गियों में पाचन संबंधी बीमारी होना।
> बाड़े में सामान्य से अधिक संख्या चूजे अथवा मुर्गियों को रखना।
> बिछावन के लिये चावल की भूसी बरसात के मौसम में बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हो पाती है अत: उचित मात्रा में इसे संग्रहित करके रखना चाहिए।
> बिछावन को नियमित अंतराल में पलटते रहना चाहिए। साथ ही, पुराने और गीले बिछावन को हटाकर नया बिछावन बिछा देना चाहिये।
> गीले बिछावन को 1 किलो शुष्क चूना पाउडर प्रति 12 से 16 स्क्वायर फीट की दर से उपचारित कर सकते हैं। इसके अलावा अमोनियम सल्फेट पाउडर का इस्तेमाल किया जा सकता है।
> बाड़े में अमोनिया का स्तर कम से कम 10 पीपीएम नियंत्रित रखना चाहिए।