पशुपालन से समृद्ध होता पशुपालक

नई दिल्ली 23-Apr-2024 03:44 PM

पशुपालन से समृद्ध होता पशुपालक (सभी तस्वीरें- हलधर)

पशुपालन कृषि विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं के विभिन्न पक्ष जैसे भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि का अध्ययन किया जाता है। सकल घरेलू कृषि उत्पाद में पशुपालन का 28-30 प्रतिशत का सराहनीय योगदान है । जिसमें दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है । जिसका योगदान सर्वाधिक है। सरकार के सार्थक प्रयासों की बदौलत देश के दुग्ध उत्पादन में राजस्थान प्रथम है। लेकिन, दुग्ध की बढ़ती आवश्यकता को देखते हुए अभी इस क्षेत्र में काफी कुछ किया जा सकता है। पशुपालन से जुड़े विभिन्न पहलुओं जैसे मवेशियों की नस्ल, पालन-पोषण, स्वास्थ्य और आवास प्रबंधन पर पशुपालन विशेषज्ञ डॉ अशोक कुमार जांगिड़ से हलधर टाइम्स की हुई वार्ता के मुख्याशं..
जीवन परिचय
डॉ अशोक कुमार जांगिड़ मूलत: भिवानी से ताल्लुक रखते है। वर्तमान में प्रथम श्रेणी पशुचिकित्सालय- गौरीर (झुंझुनूं) में वरिष्ठ पशुचिकित्सा अधिकारी के पद पर पदस्थापित हैं। डॉ अशोक कुमार ने पशुचिकित्सा स्नातक हिसार कृषि विश्वविद्यालय के संघटक पशु चिकित्सा महाविद्यालय- हिसार से किया है। पशुपालन विभाग में अक्टूबर 1992 से अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे है। पशुपालन के क्षेत्र में इनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए इनको विभाग द्वारा जिला स्तर पर दो बार सम्मानित किया जा चुका हैं।
>     गायऔर भैसों की गर्भावस्था में देखभाल कैसे करें?
गाय, भैंस के ग्याभिन होने के बाद उसे दूसरे जानवरों से अलग रखकर चारे-पानी की व्यवस्था अलग करें। प्यार से थपथपाये और आराम से रखें। अगर पशु को कब्ज की शिकायत है तो उसे 600 मिली, अलसी का तेल पिलाये। गायों और पहली बार ब्याने वाली मादाओं को ब्याने से दो माह पहले 1400 ग्राम खुराक रोज खिलाये। धीरे-धीरे यह मात्रा बढ़ाकर ब्याने से 2-3 दिन पहले तक 4-5 किलो तक बढ़ाये। ऐसे आहार से गर्भाशय में पलने वाले गर्भ का विकास होता है और आगामी दुग्धकाल में दुग्ध उत्पादन में भारी बढ़ोतरी होती है। ब्याने से एक दिन पहले गाय को 450 ग्राम इप्सम नामक और एक चम्मच पिसी हुई अदरक करीब 1.5 लीटर पानी में मिलाके पिलावे।
>     गाय-भैंसमें प्रसव के बाद कौनसी सावधानियां बरतनी चाहिए?
किसी भी हालत में पशु जेर नहीं खाना चाहिये। पशु के पिछले भाग को डिटॉल के पानी से साफ करें। बच्चे की नाल को नये ब्लेड द्वारा नाभि से 6-8 सेमी. की दूरी से काटकर टिंचर आयोडिन का प्रयोग करना चाहिये। गाय को ब्याने के कुछ समय बाद दुहे और उस समय उसे चोकर, गुड़, मेथी और जौ की अच्छी खुराक दें। ब्याने के बाद पहला दूध बहुत ध्यान से निकालना चाहिये । ताकि,  बंद थनों को खोला जा सके। एक समय में सारा कीला (खीस) न निकाले । क्योंकि , इससे पशु को दुग्ध बुखार (मिल्क फीवर) हो जाता है, जिससे पशु का स्वास्थय बिगड़ सकता है । पशु को बहुत ज्यादा गर्मी-सर्दी से बचाये और 3-4 दिन तक बच्चे के वजन का दसवां भाग खीस पिलायें।
>     जन्मसे 3 माह की आयु तक, गाय-भैंस के बच्चों को क्या, कितना और कैसे खिलाए?
गाय-भैंस के बच्चों को प्रारम्भिक जीवन में (जन्म से 3 माह की आयु तक) कुपोषण का प्रभाव उनके जीवन काल की सम्पूर्ण उत्पादन क्षमता पर पड़ता है, शायद अधिकांश पशुपालक इस तथ्य को नहीं जानते हैं। इसलिए पशुपालकों को 3 माह के बच्चे को आहार में 40 प्रतिशत मक्के का दलिया, 40 प्रतिशत अलसी की खली, 8 प्रतिशत चोकर, 10 प्रतिशत मछली का चूरा, 1-5 प्रतिशत खनिज मिश्रण, 0.5 प्रतिशत नमक और 0.5 प्रतिशत एन्टीबायोटिक शामिल करना चाहिए, यह एक संतुलित आहार है।
>     संक्रामकरोग प्रकोप होने पर कौन से उपाय करें?
संक्रामक रोग के प्रारम्भिक लक्षण देखते ही रोगी पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग स्थान पर रखें, रोगी पशु की चारा-दाना-पानी की व्यवस्था अलग बर्तनों में करें। चिकित्सक से तुरन्त सम्पर्क कर आसपास के स्वस्थ पशुओं में टीकाकरण करवायेंं। रोगग्रस्त क्षेत्रों में पशुओं का आवागमन। परिवहन नहीं करें, पहले आप स्वस्थ पशु का दुग्ध निकालें। तत्पश्चात रोगी पशु का दुग्ध निकालें और हाथ,  बर्तन आदि को एन्टीसेप्टीक घोल जैसे लाल दवा, डिटॉल आदि से साफ करें। संक्रामक रोग से मृत पशु के शव को गांव से बाहर गडढ़़ा खोदकर (1.5 मीटर गहरा) चूने अथवा नमक के साथ दबा देना चाहिये। साथ ही, नियमित रूप से बाह्य और अन्त परजीवी नाशक औषधी का प्रयोग पशु चिकित्सक की सलाह करना चाहिए।
>     पशुआहार में खनिज मिश्रण क्यों आवश्यक है?
पशु शरीर के कंकाल (हड्डियों) एवं दांतों की संरचना और मजबूती इन्हीं तत्वों पर निर्भर है। शरीर की विभिन्न शारीरिक क्रियाओं जैसे पाचन, रक्त बनना और संचार, मानसिक नाड़ी  तंत्र और कार्यों का संतुलन मदकाल, गर्भाधान, प्रजनन शक्ति, दुग्ध उत्पादन आदि के संचालन में खनिज तत्वों की अहम भूमिका है। न्यूक्लियो प्रोटीन जिसके द्वारा पैतृक गुण एक पीढी से दूसरी पीढी में जाते हैं कि संरचना का आधार फॉस्फोरस है। पशु शरीर में बीमारियों से बचाव करने की शक्ति में विकास होता है।


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सूखे और मोटे चारे की उपयोगिता

डॉ. अनिल कुमार लिम्बा, पशु चिकित्सा अधिकारी, पांचोडी, नागौर देश में उत्तम कोटि की पशुधन सम्पदा है। लेकिन, पौष्टिक पशु आहार का अभाव होने के कारण प्रति पशु दूध, मांस आदि की उत्पादकता अत्यन्त कम है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण पशुओं की आवश्यकता के अनुसार उसी अनुपात में हरे चारे की पैदावर सम्भव नहीं हो पा रही है। विशेषकर राजस्थान जैसे प्रान्त जहां अकाल से प्रभावित क्षेत्र सर्वाधिक है। जिसकी वजह से राज्य का पशुधन और उसकी उत्पादकता प्रभावित होती है। भयंकर सूखे की स्थिति में यहां का पशुधन दूसरे राज्यों में पलायन तक कर जाता है या फिर चारे के अभाव में मृत्यु का शिकार हो जाता है।