नवजात पड्डे-पड्डियों को पशुपालक कैसे बचायें
(सभी तस्वीरें- हलधर)किसान के पशुपालन व्यवसाय की सफलता उसके नवजात पड्डे-पड्डियों के स्वास्थ्य और उनके समुचित प्रबन्ध पर निर्भर करती है। क्योंकि, पड्डे-पड्डियां कल के पशु समूह के विस्थापन को संरक्षित करती है। अधिकांशत: नवजात पड्डे-पड्डियों की मृत्यु 1-3 महीने की आयु पर हो जाती है और इससे भी अधिक विशेष तौर पर 0-15 दिन की आयु के पड्डे-पड्डियाँ मृत्यु को ग्रसित हो जाते है जिसके कारण पशुपालक को अधिक क्षति हो जाती है। इसका मुख्य कारण है उनके पालन- पोषण में पोषण स्तर पर लापरवाही बरतना। पड्डे-पड्डियों के उचित प्रबन्ध हेतु अनेकों वैज्ञानिक पद्धतियाँ विकसित की गयी हैं जिनको अपनाकर पड्डे-पड्डियों की मृत्यु दर का नियंत्रित करके एक स्वस्थ्य और अधिक उत्पादन क्षमता का पशु तैयार किया जा सकता है।
चारे-दाने का प्रबंध
एक स्वस्थ्य पड्डे-पड्डियाँ प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि गाभिन भैंस के लिये चारे और दाने का विशेष प्रबन्ध करना चाहिये । ब्याने के तीन महीने पहले राशन की उचित मात्रा और साथ में खनिज मिश्रण देना चाहिये। इसके लिये आवश्यक है कि भैंस को ब्याने के दो माह पूर्व दूध से सुखा देना चाहिये। इसके लिये अन्दर पल रहे भू्रण का विकास अच्छा हो सके । नवजात बच्चों का स्वास्थ्य इस बात पर निर्भर करता है कि गर्भकाल के दौरान उसकी माँ को कैसा आहर दिया गया। ऐसा पाया गया है कि जिन पड्डे-पड्डियों का भार जन्म के समय 20 किग्रा. से कम होता है, उनकी मृत्यु दर भी अधिक होती है। कमजोर पड्डे-पड्डियों की रोगों से लडने की क्षमता कम होती है और भविष्य में उत्पादन और कार्य क्षमता भी कम होती है। इसलिये आवश्यक है कि गाभिन पशु को उचित प्राशंन दिया जाये। हीफ र को एक स्वस्थ्य और उचित शारीरिक भार वाले सांड से ही गाभिन कराया जाये। पोषक स्तर पर असामान्य पालन-पोषण से भैंस के कमजोर पड्डे-पड्डियों का शारीरिक विकास नहीं हो पाता है। इसलिये आवश्यक हो जाता है कि कृषकों हेतु नवजात पड्डे-पड्डियों के पालन-पोषण के क्षेत्र में जागरूकता को बढ़ाया जाये। नवजात पड्डे-पड्डियों के उचित पालन पोषण हेतु निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं जिनकों कृषक अपने संज्ञान में लाकर एक स्वस्थ्य और अधिक उत्पादन के लिए पशु तैयार कर सकता है।

कब करें
>> गर्भाधान कराने से पहले पशुचिकित्सक की सलाह पर अन्त: परजीवी को नष्ट करने हेतु औषधि अवश्य खिलायें।
>> गर्भकाल के अन्तिम दो महीनों में पशु को भरपूर पोषण आहार खिलायें तथा साथ में प्रतिदिन 50 ग्राम खनिज मिश्रण रोजाना अवश्य दें।
>> जन्म के आधा घंटे पश्चात पड्डे-पड्डियों को उसके भार के १०वें भाग के अनुसार खीस की मात्रा खिलायें। इसके पश्चात 3 से 4 लीटर खीस की मात्रा दिन में तीन बार लगातार चार दिन तक खिलायें।
>> गर्भकाल के अन्तिम दो महीनों में पशु को अलग और साफ स्वच्छ स्थान पर रखना चाहिये।
>> कटी नाभि को तुरन्त ही टिंचर आयोडीन, सेवलोन, डिटोल अथवा पोटेशियम परमैग्नेट (लाल दवा) आदि के घोल से साफ और उपचारित करना चाहिये।
>> पड्डे-पड्डियों को न्यूमोनिया, पेचिश और अन्य बिमारियों से बचाने के लिये पशु चिकित्सक की सलाह पर औषधि देनी चाहिये।
अन्त: परजीवी से बचाने के लिये मिनाषक औषधि जैसे एल्बेंडाजोल, मेबेन्डाजोल, फेबेन्डोजोल, थाइवेन्डाजोल आदि दवायें 5-10 मिग्रा. प्रति किग्रा. शरीर भार के हिसाब से मुँह द्वारा देना चाहिये। दूसरी खुराक 21 दिन बाद उपरोक्त खुराक के हिसाब से फिर दें। उसके बाद पहली साल हर दो माह पर देते रहें। परन्तु हर दूसरी अथवा तीसरी खुराक पर औषधि का बदलाव करते रहें। उसके बाद वर्ष में तीन बार दवा देते रहना चाहिए।
बाह्य- परजीवी से बचाने के लिये पशु चिकित्सक की सलाह पर कीटनाशी दवाई का पड्डे-पड्डियों पर और बाड़े में छिड़काव करें। बाह्य परजीवियों से बचाने के लिये किलेक्स कार्बोरिल (50 प्रतिशत) का 1 प्रतिषत घोल का पशु पर छिड़काव करें। डेल्टामथ्रोन (16 प्रतिषत) का 0.2 प्रतिशत पशु के शरीर पर छिड़काव करें। इसका छिड़काव वर्ष में 3 बार करना चाहिये। ध्यान रहे कि पशु दवा को चाट न पायें।
>> चार से छ: माह की आयु पर गलघोंटू का टीका लगाये उसके पश्चात प्रत्येक वर्ष (मई-जून में) टीका लगायें।
>> खुरपका-मुँहपका बीमारी से बचने के लिये पहला टीका एक माह की आयु पर, दूसरा 4-6 माह पर उसके बाद हर साल 2 बार (मार्च-अप्रैल और सितम्बर-अक्टूबर में) लगायें।
>> गर्भपात से बचने का टीका 4 से 6 माह की आयु पर पहला टीका लगायें। इसके पश्चात प्रत्येक दो वर्ष बाद टीका लगवायें। परन्तु प्रजनन हेतु सोड़ों को यह वैक्सीन नहीं लगायें।
>> भैंस के बच्चों को जन्म से तीन माह की आयु तक निम्नलिखित प्रांरम्भिक आहार खिलाना चाहिये। मक्के का दलिया 40 किग्रा., गेहूँ का चोकर 30 किग्रा. अलसी का खली 10 किग्रा., दाल की चूनी 14 किग्रा., मछली का चूरा 3 किग्रा., खनिज मिश्रण 2 किग्रा., नमक 1 किग्रा., और पशु चिकित्सक की सलाह पर आवश्यकतानुसार एन्टीबायोटिक मिलाकर दाना उचित मात्रा में देना चाहिये।
>> पड्डे-पड्डियों को एक से दो सप्ताह की आयु पर सींग रोधन कर देना चाहिये।
क्यों करें:
> गाभिन भैंस को ब्याने से दो माह पूर्व दूध सुखाने से, उसके पेट में पल रहे भू्रण का विकास अच्छा और बच्चा स्वस्थ पैदा होता है। ऐसा करने से भैंस के अगले ब्याँत पर धनात्मक प्रभाव पडता है।
>> पशु को कीड़े मारने की दवाई खिलाने से माँ द्वारा पड्डे-पड्डियों के पेट में कीडों का आगमन रूक जाता है।
>> जन्म के आधा घंटे पश्चात खीस पिलाने से, पड्डे-पड्डियों के में रोगरोधिता क्षमता का विकास होता है। पेट की सारी गंदगी साफ हो जाती है।
>> गर्भित पशु को चोट लगने से, उसके अन्दर पल रहे भू्रण को चोट पहुँच सकती है। ऐसा होने पर मृत भू्रण पैदा हो सकता है। इसीलिये यह आवश्यक है कि गर्भित पशु को अलग और सुरक्षित जगह पर बाँधकर रखना चाहिये।
>> बच्चे को योनि से बाहर निकलते समय, टोकरी/बास्केट इत्यादि में लेने से, पड्डे-पड्डियों को चोट से बचाया जा सकता है।
>> नाल काटने से और उसको टिंचर आयोडीन से उपचारित करने से, नाभि में किसी प्रकार का संक्रमण नहीं फैलता है।
>> भैंस के बच्चों को जन्म के तीन माह की आयु तक प्रारम्भिक आहार खिलाने से 200 से 300 ग्राम दैनिक शारीरिक वृद्धि हो जाती है।
>> पड्डे-पड्डियों के सींग रोधन से उनका आपस में लडऩे का खतरा नहीं रहता है। सींग वाले पशु आपस में लड़कर एक दूसरे को काफी चोट पहुँचाते है जिससे किसान को काफ ी क्षति पहुँचती है।
कैसे करे
>> नवजात पड्डे-पड्डियों की नाभि के शरीर से 1 इंच की उँचाई पर काटना चाहिये। भैंस के प्रसव काल से पहले सभी आवष्यक वस्तुएँ जैसे ब्लेड अथवा कैंची, आवश्यक एन्टीबायोटिक औषधि, टोकरी आदि का समय से पहले प्रबन्ध करके रखना चाहिये।
>> अगर ब्लेड उपलब्ध न हो तो, घर में उपलब्ध कैंची को पानी में उबालकर नाल को काटने के उपयोग में लाना चाहिये। यदि पड्डे-पड्डियों स्वयं खड़ा होने में असमर्थ है तो उसको खड़ा होने के लिये मदद करनी चाहिये। यदि पड्डे-पड्डियां स्वयं दूध पीने में सक्षम नहीं है तो बोतल आदि की सहायता से दूध पिलाना चाहिये।
>> भैंस के बच्चों को दैनिक अल्प मात्रा में दूध पिलाने के बाद, प्रारम्भिक आहार की निम्नलिखित मात्रा खिलानी चाहिये।

कास्टिक पोटश की छड से सीेंग रोधित करने का एक सुगम तरीका है। सींग रोधित करने के लिये पड्डे-पड्डियों के सींग के उभारों पर करीब एक इंच तक चारों तरफ के बाल साफ कर दें और उभारों के चारों तरफ वैसलीन का लेप लगा दें। उभारों के ऊपर कास्टिक पोटाश की छड को सावधानी से रगडना चाहिये। यह छड तब तक रगडनी चाहिये जब तक सींग के उभारों से खून न निकलने लगे। किसान को यह ध्यान रखना चाहिये कि कास्टिक पोटाष लगे सीेंग के उभारों पर पानी न गिरे।
क्या न करें
भैस के प्रसव काल के समय देखभाल हेतु अनुपस्थित न रहें। पुराना ब्लेड अथवा कैंची का नाभि काटने में प्रयोग बगैर पानी में उबालकर न करें। आवश्यकता महसूस होने पर, पशु चिकित्सक की सलाह लेने से न हिचकिचाएं। सर्दियों में नवजात पड्डे-पड्डियों के रखरखाव में लापरवाही न बरतें । अन्यथा निमोनिया आदि बीमारी हो सकती है। नवजात पड्डे-पड्डियों को बगैर नाभि काटे नहीं छोडना चाहिये। जन्म के पश्चात नवजात पड्डे-पड्डियों को खीस पिलाने में देर न करें। नवजात पड्डे-पड्डियों को कृमिनाषक औषधि खिलाना न भूलें।