पशुओं में खनिज तत्वों की कमी से संभावित रोग

नई दिल्ली 24-Oct-2024 10:00 AM

पशुओं में खनिज तत्वों की कमी से संभावित रोग

(सभी तस्वीरें- हलधर)

पशु आहार में यदि इन खनिज तत्वों की कमी होने से पशुओं में कमजोरी आ जाती है और कई तरह की बीमारियां भी हो सकती है।
कैल्शियम-फ ास्फोरस की कमी
दोनों खनिज तत्व पशुओं की हड्डियों और दांतों के निर्माण और मजबूती प्रदान करने में सहायक है। वयस्क पशुओं में दूध उत्पादन में कैल्शियम का काफी योगदान रहता है। दुधारू पशुओं के ब्याने के तुरन्त बाद कैल्शियम की कमी के कारण मिल्क फीवर नामक रोग हो जाता है। दूध उत्पादन में कमी और पशु में सुस्ती आ जाती है। कैल्शियम - फ ास्फोरस की कमी से नवजात बछड़े-बछडिय़ों में रिकेटस नामक रोग हो जाता है जिससे हड्डियों का विकास या तो पूर्ण रूप से रुक जाता है अथवा उनका विकास विकृत रूप से होता है। बछड़ों में हड्डियां कमजोर हो जाती है और पैरों की हड्डियां मुड़ जाती है। टेढ़ी-मेंढ़ी हड्डियों के जोड़ बड़े हो जाते है और उनमें प्राय: दर्द रहता है। वयस्क पशुओं में इन तत्वों की कमी से 'अस्थि मृदुता' उत्पन्न हो सकती है, जिसके फलस्वरूप हड्डियों के टूटने का भय रहता है। पशु के शारीरिक विकास में कमी आ जाती है और प्रथम ब्यात की आयु में विलम्ब होता है, आहार में फलीदार चारे होने से कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। खनिज मिश्रण के द्वारा भी इसकी पूर्ति की जा सकती है। फ ास्फोरस की कमी से पशु को भूख कम लगती है और पशु 'पाइका' नामक बीमारी से ग्रसित हो जाते है जिसमें पशु मिट्टी, पत्थर, कपड़ा, लकड़ी आदि अखाद्य पदार्थो को खाने लगते है। दीवारों को भी चाटना शुरू कर देते है। गेहूं के चोकर और हड्डी के चूर्ण में फास्फोरस अधिक मात्रा में पाया जाता है।
आयोडीन की कमी
पशुओं में आयोडीन की कमी से गलगंठ / घेंघा नामक रोग हो जाता है जिसमें थायरयड ग्रन्थि का आकार बढ़ जाता है। ग्याभिन पशुओं में आयोडिन की कमी से गर्भपात हो सकता है अथवा मरे हुए, कमजोर और बिना रोएं के बच्चे पैदा होते हैं। त्वचा कठोर और खुरदरी हो जाती है। ऐसे बच्चों की मृत्युदर अधिक होती है।
मैग्नीशियम की कमी
मुलायम और प्रारम्भ की घास चरने वाले नवजात बछड़ों और मेमनों में मैग्नीशियम की कमी के कारण ग्रास टेटैनी होने का डर रहता है। जिसमें पशु लडख़ड़ाने लगता है और कमजोरी आ जाती है।
लोहे -तांबे की कमी
खून में हीमाग्लोबिन के निर्माण में लोहे और तांबे की आावश्यकता होती है। इन तत्वों की कमी से 'एनीमिया' नामक रोग हो जाता है, पशु कमजोर और पीला पड़ जाता है, जिसका प्रतिकूल असर उसके दुग्ध उत्पादन पर पड़ता है। तांबे की कमी से पशु गर्मी/पाली में नहीं आते और उनकी प्रजनन क्षमता में कमी आ जाती है। फलीदार चारे में लोह व तांबे की प्रचून मात्रा पाई जाती है। 
नमक की कमी
खुराक में नमक की कमी होने से पशु को भूख कम लगती है और पशु कमजोर हो जाता है। शरीर भार में कमी, खुरदरी रोए की परत, आंखों की चमक में कमी, कोर्निया का खुरदरापन, दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन में कमी, हृदय की असामान्य गति, पानी की कमी के कारण शुष्कता, एक दूसरे पशु की खाल चाटना, धूल चाटना, बार-बार और अधिक मात्रा में मूत्र करना और मूत्र पीना, नकम की कमी के प्रमुख लक्षण है। अत: पशु को जीवन पर्यन्त लाभदायक बनाये रखने के लिए ऐसा सन्तुलित पशु आहार दिया जाना चाहिए । जिसमें 2 प्रतिशत की दर से खनिज लवण और 1 प्रतिशत साधारण नमक मिला हुआ हो। 


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सूखे और मोटे चारे की उपयोगिता

डॉ. अनिल कुमार लिम्बा, पशु चिकित्सा अधिकारी, पांचोडी, नागौर देश में उत्तम कोटि की पशुधन सम्पदा है। लेकिन, पौष्टिक पशु आहार का अभाव होने के कारण प्रति पशु दूध, मांस आदि की उत्पादकता अत्यन्त कम है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण पशुओं की आवश्यकता के अनुसार उसी अनुपात में हरे चारे की पैदावर सम्भव नहीं हो पा रही है। विशेषकर राजस्थान जैसे प्रान्त जहां अकाल से प्रभावित क्षेत्र सर्वाधिक है। जिसकी वजह से राज्य का पशुधन और उसकी उत्पादकता प्रभावित होती है। भयंकर सूखे की स्थिति में यहां का पशुधन दूसरे राज्यों में पलायन तक कर जाता है या फिर चारे के अभाव में मृत्यु का शिकार हो जाता है।