पशु आहार में खनिज लवणों का महत्व

नई दिल्ली 17-Dec-2024 12:42 PM

पशु आहार में खनिज लवणों का महत्व

(सभी तस्वीरें- हलधर)

डा. राजेश नेहरा, राजुवास ,बीकानेर
खनिज लवण मुख्यत: दांतों और हड्डियों की रचना के मुख्य भाग हैं। यह शरीर के विभिन्न एंजाइम को क्रियाशील बनाने में और विटामिनों के निर्माण में काम आकर शरीर की अनेक महत्वपूर्ण क्रियाओं में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भाग  लेते हैं। इनकी कमी से शरीर में कई प्रकार की बीमारियाँ जैसे प्रसूती काल में कैल्शियम की कमी से दुग्ध ज्वर हो जाती हैं। कैल्शियम, फ ॉस्फोरस, पोटैशियम, सोडियम, क्लोरीन, गंधक, मैग्निशियम, मैंगनीज, लोहा, तांबा, जस्ता, कोबाल्ट, आयोडीन, सेलेनियम इत्यादि शरीर के लिए आवश्यक प्रमुख लवण हैं। दूध उत्पादन की अवस्था मे खनिज लवण दूध में काफी मात्रा में स्रावित होते हैं जिससे गाय अथवा भैंस को कैल्शियम और फ ास्फोरस की अधिक आवश्यकता होती है। इस आवश्य्कता को चारे के द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता। इसलिए, खनिज लवणों को अलग से पशु आहार के साथ खिलाना आवश्य्क  हो जाता है। 
कैल्शियम-  यह  हड्डियों  और  दांतो  की  रचना  करने  के  साथ  साथ  तंत्रिका  आवेगो  के  संचरण , मासपेशियो  के  संकुचन, कई एंजाइम प्रणालियों की गतिविधि के लिए तथा रक्त का थक्का जमाने का काम भी करता है। इसकी कमी से रिकेट्स, दुग्ध ज्वर जैसी बीमारिया हो जाती है ।  हरी पत्तेदार फसलें, विशेषकर फलियां, और चुकंदर का गूदा इसके अच्छे स्रोत हैं।
फ ॉस्फोरस - शरीर में फ ॉस्फोरस उर्जा प्रदान करने वाले कोशिकाओं का महत्वपूर्ण घटक होता है। यह कैल्शियम और विटामिन डी के साथ मिलकर हड्डियों के निर्माण में सहायता करता है। इसकी कमी से पाइका नामक बीमारी हो जाती है और पशुओ में बांझपन भी आ सकता है। पशुओ में कैल्शियम और फ ॉस्फोरस के अनुपात का बहुत महत्व है। इसका अनुपात 1:1 से 2:1 सबसे आदर्श  माना जाता है।  अनाज और मछली से बने उत्पाद फ ॉस्फोरस के अच्छे स्रोत हैं ।  

सोडियम- यह बहुकोशिकीय द्रव का मुख्य  संघटक हैं। यह खनिज साधारण नमक में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाये रखने और तंत्रिका आवेग संवहन में सोडियम की महत्वपूर्ण  भूमिका होती हैं।

मेगनेशियम- गेहूं की भूसी, कपास सीड केक और अलसी का केक, मैग्नीशियम के अच्छे स्रोत हैं । यह हड्डियों की  संरचना और तंत्रिका- पेशियों की क्रियाशीलता के लिए जरुरी है। इसकी कमी से टिटेनी नामक बीमारी हो जाती है।

लौह- यह फलीदार पौधों, बीज कोट ,ं हरी पतेदार सामग्री में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह हीमोग्लोबिन और मायोग्लाबिन में पाया जाता हैं, जो ऊत्तकों में ऑक्सीजन पहुँचाने का कार्य करता है । इसकी कमी से रक्तालपता हो जाती है। 

क्लोराइड- यह बहि- कोशिकीय द्रव का मुख्य आयन होता है। यह भी साधारण नमक का महत्वपूर्ण घटक होता है। शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन, परासरण  दाब बनाये रखने और तंत्रिका आवेग संवहन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं।

पौटेशियम - यह अंत: कोशिकीय द्रव का मुख्य घटक हैं। माँस पेशियों के संकुचन और तंत्रिका आवेशों के संचार के लिए आवश्यक  हैं। इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रोलाइट संतुलन के लिए आवश्यक है।

ताम्बा - बालो और ऊन के रंग के लिए  तांबा आवश्यक अवयव  है। इसकी कमी से  एनीमिया,  वृद्धि में कमी , हड्डियों के विकार, दस्त और बांझपन आदि हो जाते है । बीज और बीज उपोत्पाद आमतौर पर तांबे के अच्छे स्रोत होते हैं  ।

आयोडीन- समुद्री शैवाल में आयोडीन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। यह  थायरोक्सिन  हॉर्मोन  के  संश्लेषण  के लिए जरुरी होता है, जो कोशिकीय श्वसन के  लिए आवश्यक है। इसकी कमी से गलगण्ड नामक रोग हो जाता है। इस रोग के लक्षण ज्यादा गोभी सोयाबीन मटर अथवा मूंगफ ली के सेवन से भी दिखाई दे सकते है।

सेलीनीयम- यह , एंटीऑक्सीडेंट की तरह कार्य करता है और कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली को टूटने से बचाता है।


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