दुधारू पशुओं के चयन की विधियाँ - दुधारू पशुओं की पहचान

नई दिल्ली 13-Aug-2024 02:03 PM

दुधारू पशुओं के चयन की विधियाँ - दुधारू पशुओं की पहचान (सभी तस्वीरें- हलधर)

पशुपालन और डेयरी व्यवसाय में दुधारू पशुओं के दूध देने की क्षमता का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसलिए गाय-भैंस की खरीदारी करते समय कुछ विशेष जानकारी होना आवश्यक हो जाता है। दुधारू पशु की खरीद में बहुत बड़ी पूंजी खर्च होती है और इनके अच्छे गुणों के ऊपर ही डेयरी व्यवसाय का भविष्य निर्भर करता है। क्योंकि, अच्छी नस्ल और गुणवत्ता के दुधारू पशुओं से ही अधिक दुध उत्पादन हासिल कर पाना सम्भव हो पाता है। 
पशु चयन
चयन ऐसी प्रक्रिया है जिससे उत्कृष्ठ गुणों और अधिक उत्पादन क्षमता वाले पशुओ को भविष्य निर्माण अर्थात् प्रजनन हेतु रखा जाता है। ऐसे पशु जो आर्थिक दृष्टि से प्रजनन योग्य नही है उन्हे पशु फार्म से हटा दिया जाता है। भैंस पालन निम्न प्रकार से उत्कृष्ठ गुणों हेतु  चयन कर सकता है। चयन प्रजनन कायक्रम के अंतर्गत तीसरा कदम है, जिसमें इस बात का आंकलन किया जाता है कि उपलब्ध जानवरों में से प्रत्येक में किस हद तक वांछित गुणों को उत्पन्न करने और उनके उपयोग करने, त्यागने, की आनुवंशिकता विद्यमान है। उन्नत पशुपालन हेतु अति आवश्यक है कि पशुपालन पशु चयन उपरांत पशु को खरीदे। भैंस पालन व्यवसाय के रूप से शुरू करते समय पशुपालक अपने फार्म का औसत दूध उत्पादन क्षमता बढाने के लिए और आनुवांशिकीय प्रगति हेतु चयन और छटनी जरूर करे।
>     व्यक्तिगतचयन: इस प्रणाली में एकल पशु को उसके शारीरिक गुणों (नस्ल, संरचना, रूप आदि) और उत्पादन के आधार पर किया जाता है। भैंस पालक नए पशु लेते समय इन बातों पर ध्यान रख कर खरीदें।
>     परिवारचयन: इस प्रकार के चयन में पशु को उसके परिवार के गुणों और उत्पादन क्षमता के आधार पर खरीदा जाता है। इस प्रक्रिया में ऐसे पशु साधारणत: खरीदे जाते है जो दूध में नहीं हो।
>     वंशावलीचयन:. इस प्रकार के चयन में पशु को उसके वंश के आधार पर चयन किया जाता है। वशं में पशु के दादी, नानी, चाची, मौसी आदि पशु के उत्पादन और क्षमता के ध्यान में रख कर चुना जाता है। यह बहुत ही विश्वसनीय चयन प्रणाली है। अत: भैंस पालन पशु खरीदने से पहले उसके वंशानुगत वृक्ष की जानकारी जरूर प्राप्त करे।
>     संततिपरिक्षण:. ऐसी चयन प्रणाली जिसमें पशु का चयन उसके संतान के उत्पादन और क्षमता के आधार पर किया जाता है। वंशावली चयन के उपरांत संतति परीक्षण भी चयन की एक अच्छी प्रणाली है। भैंस पालक को चयन प्रणाली के अतिरिक्त निम्न बाह्य लक्षणो का ध्यान देना चाहिए। भैंस में नस्ल के गुण होने चाहिए, जिस नस्ल की भैंस वह खरीद रहा है। भैंस आकर्षक,  मादा गुण स्पष्ट और अच्छा हो। शारीरिक गठन स्पष्ट और अच्छा हो। आँखे चमकदार हो और कान मध्यम दर्जे के और चौकन्ने हो। पु_े लम्बे और चौडे हो। नितम्ब चौड़े हो। पसलियाँ फैलावदार, चौडी और लम्बी हो। चमड़ी रोग मुक्त और चमकदार हो।चारो थन पूर्ण विकसित, एक समान, गोल-बेलनाकार और लम्बे हो।  थनो की दूरी एक दूसरे से समान दूरी पर हो।
दुधारू पशुओं की पहचान
तिकोने आकार की गाय अधिक दुधारू होती है। ऐसी गाय की पहचान के लिए उसके सामने खडे हो जाएँ। इससे गाय का अगला हिस्सा पतला और पिछला हिस्सा चौडा दिखाई देगा। शरीर की तुलना में गाय के पैर और मुंह-माथे के बाल छोटे होने चाहिए। दुधारू पशु की चमडी चिकनी, पतली और चमकदार होनी चाहिए। आँखे चमकली, स्पष्ट और दोष रहित होनी चाहिए। अयन पूर्ण विकसित और बडा होना चाहिए। थनों और अयन पर पाई जानी वाली दुग्ध शिराएँ, जितनी उभरी और टेडी-मेडी होंगी पशु उतना ही अधिक दुधारू होगा। दूध दोहन के उपरांत थन को पूरी तरह से सिकुड जाना चाहिए। चारों थनों का आकार और आपसी दूरी समान होनी चाहिए। गाय-भैंस के पेट पर पाई जाने वाली दुगध शिरा जितनी स्पष्ट, मोटी और उभरी हुई होगी पशु उतना ही अधिक दूध देने वाला होगा। दुधारू पशु को खरीदते समय हमेशा दूसरे अथवा तीसरे ब्यांत की गाय-भैंस को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। क्योंकि, इस दौरान दुधारू पशु अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप खुलकर दूध देने लगते हैं और यह क्रम लगभग सातवें ब्यांत तक चलता है। इसके पहले अथवा बाद में दुधारू पशु के दूध देने की क्षमता कम रहती है। दूसरे-तीसरे ब्यांत के पशु को खरीदते समय प्रयास यह होना चाहिए कि गाय-भैंस उस दौरान एक माह की ब्याही हुई हो और उसके नीचे मादा बच्चा हो। ऐसा करने से उक्त पशु के दूध देने की क्षमता का पूरा ज्ञान होने के साथ ही मादा पडिया अथवा बछडी मिलने से भविष्य के लिए एक गाय-भैंस और प्राप्त हो जाती है। जो कि भविष्य की पूंजी है। दुधारू पशु को खरीदते समय लगातार तीन बार दोहन करके देख लें। क्योंकि, व्यापारी चतुराई से काम लेते हैं और आपको पशु खरीदते समय मात्र एक बार सुबह अथवा शाम को ही दोहन करके दिखाएँगे। ऐसा करने से आप को प्रतीत होगा कि यह पशु अधिक दूध देने वाला है। लेकिन, सच्चाई यह नहीं होती है। व्यापारी एक समय का दोहन नहीं करता अथवा कम दुध दोहन करता है जिससे दूध की मात्रा अयन में रह जाती है। इस कारण लगता है कि गाय-भैंस अधिक दूध देने वाली है। इसलिए दुधारू पशु की खरीददारी करते समय तीन बार लगातार दुग्ध दोहन अपने सामने अवश्य करा लेना चाहिए। 
सही आयु का पता लगाना
दुधारू पशु का चयन करते समय उसकी सही आयु का पता लगाना आवश्यक होता है। पशु की सही आयु का पता लगाने के लिये उसके दांतों को देखा जाता है। मुंह की निचली पंक्ति में स्थाई दांतों के चार जोडे होते हैं। ये सभी जोडे एकसाथ नहीं निकलते हैं। दांत का पहला जोडा पौने दो साल की उम्र में, दूसरा जोड़ा ढाई साल की उम्र में, तीसरा जोड़ा तीन साल के अंत में और चौथा जोड़ा चौथे साल के अंत की उम्र में निकलता है। इस प्रकार से दांतों को देखकर नई और पुरानी गाय-भैंस की सटीक पहचान की जा सकती है। औसतन एक गाय-भैंस 20-22 वर्षो तक जीवित रहती है। गाय- भैंस की उत्पादकता उसकी उम्र के साथ-साथ घटती चली जाती है। दुधारू पशु अपने जीवन के यौवन और मध्यकाल में अच्छा दुग्ध उत्पादन करता है। इसलिए दुधारू पशु का चयन करते समय उसकी उम्र की सही जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। 
भैंस के सींग के छल्ले भी आयु का अनुमान लगाने में सहायक होते हैं। प्रथम छल्ला सींग की जड पर प्राय: तीन वर्ष की आयु में बनता है। इसके बाद प्रतिवर्ष एक-एक छल्ला और आता रहता है। सींग पर छल्लों की संख्या में दो जोडकर भैंस की आयु का अनुमान लगाया जा सकता है। परन्तु देखने में आया है कि कुछ लालची लोग अधिक रुपया कमाने के चक्कर में दुधारू पशु खरीददार को धोखा देने के लिए रेती से छल्लों को रगड़ देते हैं। इसलिए यह विधि विश्वसनीय नहीं कही जा सकती है। दूध देने वाले दुधारू गाय-भैंस में सींग पशु की नस्ल की पहचान का मुख्य चिन्ह होते हैं। यद्यपि सींग के होने अथवा नहीं होने का पशु के दुध उत्पादन की क्षमता पर कोई असर नहीं पडता है। भैंस की मुर्रा नस्ल आज भी अपने मुडे सींगों के कारण ही पहचानी जाती है। 
सेहत से आयु का अनुमान 
पशु की सेहत देखकर पशु की आयु का अनुमान लगाया जा सकता है। बूढे पशु की अस्थि सन्धियाँ कमजोर हो जाती है और पशु धीमी गति से चलता है। उसकी त्वचा ढीली हो जाती है और मुंह से दांत गिर जाते हैं। बूढे पशु की आँख के पीछे और कान के बीच के टेम्पोरल क्षेत्रों में गड्ढा बन जाता है। इसके विपरीत युवा अवस्था की भैंसों और गायों का शरीर सुंदरए सुडौलए चुस्त, चमकदार त्वचा तथा चर्बी कम होती है। अच्छी खुराक होने पर भी बूढे पशु और स्वस्थ पशु में अंतर कर पाना संभव नहीं हो पाता है। कई बार व्यापारी ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाकर दूध दोहन कराते हैं। इससे बचने के लिए जब भी दुध दोहन कराए तो अपने सामने कम से कम आधा घंटा व्यापारी से बात करने में गुजार दें। फिर इसके बाद ही दोहन कराएं। खुले बाजार, मेलों, हाट पेंठ आदि से पशुओं को खरीदने में कभी-कभी पशु की पहचान करने में धोखा हो जाता है। अत: खरीदते समय उक्त स्थान पर यदि गर्भ जांच करने वाला कोई जानकार अथवा पशु चिकित्सक हो तो उससे गर्भ जाँच करा लेना चाहिए। भैंस के सींगों का बारीकी से निरिक्षण कर लें कि कहीं दरातीं से घिसे हुए तो नहीं हैं। त्वचा की चमक पर धोखा खाने से पहले देख लेना चाहिए कि भैंस पर चमक पैदा करने के काला तेल तो नहीं चुपड दिया गया है। कई बार चालाक किस्म के लोग बकरीए गाय-भैंस के नीचे किसी दूसरी अनुपनुयोगी गाय-भैंस का नवजात लवारा बाँध देते हैं और उसे ताजी ब्याही बताकर अधिक कीमत में बेचकर धोखा दे देते है। इससे बचने के लिए बच्चे को उसकी माँ के नीचे लगाकर देखना चाहिए। दूध बढाने के लिए चीनी, गुलकंद,जलेबी की चासनी, ओवर फीडिंग करके भी व्यापारी दूध की मात्रा में वृद्धि करके दिखा देते हैं। अत: इसकी पहचान अनुभवी पशुपालकों के माध्यम से अथवा संभव हो तो तीन-चार दिन नजर रखकर की जा सकती है। भैंस के रंग, खुर और काजल लगी आँखों को सफेद कपडे से पोछकर पता किया जा सकता है। 
अयन और थनों की बारीकी से जांच
दुधारू गाय-भैस की खरीद करते समय अयन और थनों की बारीकी से जांच कर लेनी चाहिए। जिससे थनैला बीमारी के बारे में भली प्रकार से पता चल सके। यदि थन में गाँठ, सूजन आदि के लक्षण हैं तो थनैला  हो सकता है। ऐसे पशु को भूलकर भी नही खरीदना चाहिए। फूल देने वाली गाय-भैंस की जांच हेतु उसे ढलान वाले स्थान पर पीछे का हिस्सा करके बिठाकर देखने से पता लगाया जा सकता है। कई बार व्यापारी कमजोर पशु में और उसके अयन में हवा भरवा देते हैं।  जिससे वह हष्ट-पुष्ट, गर्भवर्ती अथवा अधिक दूध देने वाली प्रतीत हो सके। ऐसे पशु के पेट, अयन आदि फूले लग रहे अंगों पर दबाव देकर देख लेना चाहिए। हमेशा ऐसे पशुओं को खरीदने का प्रयास करना चाहिए जिनका जन्म, प्रजनन आदि से लेकर उत्पादन आदि का रिकार्ड रखा गया हो। लेकिन, ऐसा रिकार्ड केवल सरकारी फार्मों, कामर्शियल डेरी  फार्मो और  प्रजनन संबंधी शोध केन्द्रों पर ही रखा जाता है। अत: अम्ल में लाकर दुधारू पशुओं का चयन करेंगे तो अधिक लाभ कमाने के साथ ही धोखा खाने से बच सकते हैं।


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