कृत्रिम गर्भाधान: लाभ, प्रक्रिया, सही समय व पूरी जानकारी
(सभी तस्वीरें- हलधर)कृषि और पशुपालन, हमारे ग्रामीण प्रधान देश में आय के मुख्य स्त्रोत माने जाते है। इच्छित उत्पादन के लिए पोषण, प्रबंधन, टीकाकरण, उपचार आदि के साथ-साथ नस्ल का भी बहुत अधिक महत्व है। गांवों में आवारा सांडो से/बैलों से पशुओं को ग्याभिन करवाया जाता है। सांड / बैल की वंशागति और नस्ल का ध्यान नहीं रखा जाता है। जिसके कारण उत्पन्न होने वाली संतान की नस्ल भी अच्छी नहीं होती। क्योंकि, हम जानते है कि संतान में आधे लक्षण माता के, और आधे लक्षण पिता से प्राप्त होते है। इसलिए भविष्य में अधिक दुध देने वाली गायें व अच्छे सांड प्राप्त करने के लिए हमें कृत्रिम गर्भाधान विधि को अपनाना चाहिए। कृत्रिम गर्भाधान विधि में उन्नत नस्ल के चयनित नर पशु जिसकी पूर्ण वंशावली, लक्षण, उम्र आदि की जानकारी होती है, का वीर्य वैज्ञानिक तरीके से प्राप्त करके, उसे हिमकृत विधि से संरक्षित रखते है। इस विधि से ग्याभिन करने से अच्छी किस्म की देशी या संकर नस्ले प्राप्त की जा सकती है।
क्या होता है कृत्रिम गर्भाधान
इस विधि में उन्नत किस्मेंा के नर पशुओं का हिमकृत वीर्य (सीमन) को ताव/गर्मी (हीट) में आयी हुई मादा पशु के बच्चेदानी के अन्दर एक विशेष उपकरण (कृत्रिम गर्भाधान गन) की सहायता से उपयुक्त समय और उपयुक्त स्थान पर छोड़ा जाता है। जिससे मादा पशु ग्याभिन हो जाती है एवं गर्भावस्था पूर्ण होने पर बच्चे को जन्म देती है।
कृत्रिम गर्भाधान के लाभ - प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में -
कृत्रिम गर्भाधान का मुख्य लाभ यह है कि इस विधि द्वारा उन्नत नस्ल के नर का वीर्य का उपयोग कई गुणा ज्यादा मादा में, कई दिनों के बाद तक कर सकते है। प्राकृतिक विधि द्वारा एक उन्नत सांड 50-60 मादाओं को एक वर्ष में ग्याभिन कर सकता है। जबकि कृत्रिम गर्भाधान विधि में 10,000 मादाओं को प्रतिवर्ष ग्याभिन कर सकता हैं।
> पशुपालक को प्रति दो या तीन वर्ष में एक बार नर पशुओं को खरीदने एवं ढूढने की परेशानी का सामाना नहीं करना पड़ा।
> पशुओं की नस्ल में अन्त: प्रजनन से होने वाली हानियों से बचा जा सकता है।
> हीमकृत वीर्य को एक स्थान को दूसरे स्थान तक लाना ले जाना आसान है। यहाँ तक कि दूसरे देशों से भी उन्नत नस्ल का वीर्य से संकर नस्ले पैदा की जा सकती है।
> मादा पशु के ताव में आने के समय नर को ढूंढने की परेशानी से भी बचा जा सकता है।
> शारीरिक रूप से अक्षम, कमजोर, अपाहिज एवं छोटे आकार वाली मादा पशुओं को भी इस विधि से ग्याभन किया जा सकता है जिनका प्राकृतिक रूप से नर द्वारा वीर्य सेंचन सम्भव नहीं हो।
> सम्भोग के दौरान फैलाने वाली बीमारियों जैसे ब्रूसेलोसिस ट्राइकोमोनियासिस, विब्रियोसिस, आदि को रोका जा सकता है।
> हीमकृत वीर्य की पूरी वंशावली एवं अवस्था का पता होता है ऐसे वीर्य से नस्ल में सुधार होता है व पैदा होने वाली संतान अधिक उन्नत नस्ल की होती है जिनका उत्पादन अधिक होता है।
> आवारा पशुओं से ग्याभीन करवाने की तुलना में कृत्रिम गर्भाधान का रिकॉर्ड रखना अधिक सुविधाजनक एवं आसान होता है ।
> ऐसे उन्नत नस्ल के सांड जो सम्भोग नहीं कर सकते उनके वीर्य को भी कृत्रिम गर्भाधान में काम लिया जा सकता है ।
> कृत्रिम गर्भाधान करते समय मादा के जनन तंत्र की स्वत: जांच हो जाती है जिससे जननांग संबंधित बीमारियों एवं अनियमिताओं का पता चल जाता है।
> नस्ल सुधार का एक तेज तरीका है प्राकृतिक चयन से नस्ल सुधार में बहुत ज्यादा समय लगता है।
> उपयुक्त कृत्रिम गर्भाधारण की विधि सही साफ सुधरे तरीके से करके ग्याभन ठहरने की दर को भी सुधारा जा सकता है।

कृत्रिम गर्भाधान करवाने का सही समय
> गाय - भैस लगभग 48 घण्टे तक औसतन ताव में रहती है। पशु के ताव के लक्षण दिखाने के 12 से 18 घण्टे बाद कृत्रिम गर्भाधान करवाना अधिक लाभदायक रहता है। याद रखने के लिए पशु यदि सुबह ताव में आये तो शाम को और शाम को ताव में आये तो सुबह कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए। गर्भाधान कराने से पहले पशु की पूरी जांच करा लेनी चाहिए। यदि प्रजनन संबंधित कोई बीमारी है तो इलाज के बाद ही गर्भाधान कराना चाहिए ।
> कृत्रिम गर्भाधान के संदर्भ में भारतीय परिस्थितियों में समस्याए
> हमारे देश में ग्रामीणों में नर का बधियाकरण नहीं करवाने की धारणा है। जो नस्ल सुधार के लिए अतिआवश्यक है।
> कृत्रिम गर्भाधान को पशुओं के लिए हानिकारक और जनन क्षमता कम करने वाला मानते है।
> कृत्रिम गर्भाधान को अपनाने के कारण नर पशुओं की उपयोगिता कम होने के कारण उनका पालना कोई काम का नहीं रह जाता है।
> हमारे यहा वातावरणीय परिवर्तन अधिक होने के कारण वीर्य के संरक्षण एवं स्थानान्तरण में हानिकारक प्रभाव अधिक होते है।
> कृत्रिम गर्भाधान की सफलता के लिए अन्य कारकों के साथ-साथ ताव में आने के लक्ष्ण एवं कृत्रिम गर्भाधान करवाने के समय की जानकारी होना भी अति आवश्यक है
कृत्रिम गर्भाधान की सीमा
> प्रशिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता होती है।
> प्राकृतिक गर्भधारण की तुलना में अधिक समय लगता है।
> इसकी सफलता बहुत से कारकों में निर्भर करती है।
> जैसे: सीमेन (वीर्य) का इकट्ठा करना ।
> वीर्य की जांच करना ।
> वीर्य का द्रवीकरण करना ।
> वीर्य को संरक्षित करना ।
> वीर्य को मादा में स्थानांतरित करना आदि ।
> काम में आने वाले उपकरणों के साथ-साथ कृत्रिम गर्भाधान करने वाले व्यक्ति का भी साफ-सुथरा होना जरूरी है।