पश्चिम में पारे का तोड़ है लोइयां

नई दिल्ली 23-May-2024 01:28 PM

पश्चिम में पारे का तोड़ है लोइयां (सभी तस्वीरें- हलधर)

पीयूष शर्मा

जयपुर। वैशाख तप रहा है और ज्येष्ठ बाकी है। यानी पारे का सितम फिलहाल कम होने वाला नहीं है। पश्चिम में रेत के धोरे भट्टी बन चुके है। ऐसे में कभी आपने सोचा है कि पश्चिमी राजस्थान में तेज गर्मी जनजीवन पर क्या प्रभाव डालती होगी ? क्योंकि, यहां पानी भी कम है और रसीले फलों के भाव गर्मी के दिनों में आसमान छू जाते है। ऐसे में लोग गर्मी से बचाव के लिए क्या जतन करते होगे। लेकिन,  आपको बता दें कि थार अभिशाप भी है और वरदान भी। प्रकृति ने यहां गर्मी से बचाव के लिए ऐसी मरू वनस्पतियों की सौगात दी है, जो शरीर को कूल-कूल (ठंड़ा) रखने में मददगार है। ऐसी ही एक सब्जी फसल है लोइयां। जो शरीर को ठंड़ा रखने में मदद करती है। इसका उत्पादन फिलहाल पश्चिमी जिलों तक ही सीमित है। कृषि वैज्ञानिकों की माने तो गर्मी के दिनों में इस सब्जी की मांग बढ़ जाती है। क्योंकि, यह फसल किसानों के लिए आम के आम गुठलियों के दाम जैसी है। यही कारण है कि कम लागत और कम पानी में पैदा होने वाली यह सब्जी फसल किसानों की आर्थिक समृद्धि का प्रतीक बनती जा रही है। बाजार में लोइयां के भाव रिटेल भाव 100-120 रूपए प्रति किलो तक पहुंच जाते है। गौरतलब है कि लोइयां कुष्माण्ड कुल की सब्जी फसल है। इसकी बेल दिखने में तरबूज के जैसी ही नजर आती है। लेकिन, पत्तियों, फलों की बनावट के साथ-साथ पोषण स्तर में काफी अंतर है। कृषि वैज्ञानिको का कहना है कि बाजार में लोइयां की मांग होने के चलते चुरू, बाड़मेर, बीकानेर, झुंझुनूं, जैसलमेर आदि जिलों में इस फसल का बुवाई क्षेत्र में बढौत्तरी दर्ज होने लगी है। वैज्ञानिक बताते है कि इसकी बेलें 45 डिग्री पारे में तरबूज-खरबूज की बेलों की तरह सूखती नहीं है। यह उच्च ताप सहनशील होने के कारण गर्मी में सब्जी का अच्छा विकल्प बन जाती है। गौरतलब है कि लोइयां शब्द को अर्थ होता है कच्चा। इस शब्द का प्रयोग पश्चिमी जिलों में आम बोल में किया जाता है। इसी आधार पर इस सब्जी का नाम लोइयां रखा गया है।

बनती है स्वादिष्ट सब्जी

कृषि विज्ञान केन्द्र, चुरू के कृषि वैज्ञानिक डॉ. हरिश रछोया ने बताया कि लोइयां का उत्पादन पश्चिमी जिलों तक ही सीमित है। प्रदेश के दूसरे जिलों में लोग लोइया शब्द से भी अनभिज्ञ है। क्योंकि, वहां ना तो लोइयां का उत्पादन होता है और ना ही इसकी सब्जी का प्रचलन है। जबकि, पश्चिमी राजस्थान में लोइयां के उत्पादन से किसान अच्छा पैसा कमाते है। उन्होने बताया कि लोइयां को ग्वारफली, काचरी, काकडिय़ा के साथ मिलाकर सब्जी बनाते है। जो शरीर को ठंड़ा रखने में मददगार है।

मार्च में करते है बुवाई

उन्होने बताया कि किसान मार्च-अप्रैल के महीने में इसकी बुवाई करते है। बुवाई के 45-50 दिन के बाद फूल और फल बनने की प्रकिया शुरू हो जाती है। बाजार में अगेती फसल के अच्छे दाम मिलते है। उन्होने बताया कि एक बेल से 15-20 किलो उत्पादन मिल जाता है। यह शुष्क फसल है। इस कारण कम सिंचाई में तैयार हो जाती है। इस फसल की कृषि लागत काफी कम है। किसान को बीज का पैसा भी एक बार खर्चना होता है। इसके बाद किसान अपनी जरूरत के हिसाब से बीज तैयार करके उपयोग  लेता रहता है।

मतीरे का ही दूसरा रूप

लोइयां को लेकर केन्द्रीय शुष्क बागवानी अनुसंधान संस्थान बीकानेर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. डीके समादिया ने बताया कि लोइयां मतीरे का ही एक रूप है। मतीरे के कच्चे फल को लोइयां कहा जाता है। इसका उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। इससे किसानों को तिहरा फायदा होता है। कच्चे फल को सब्जी के रूप में बिक्री कर देता है। वहीं, फल पकने के बाद इसकी बिक्री मतीरे के रूप में हो जाती है। वहीं, बाजार में भाव कम होने की स्थिति में किसान फल की तुड़ाई करने के बाद उसके बीज को सूखाकर मगज के रूप में बिक्री कर देता है। इस कारण लोइयां किसानों के लिए सामाजिक और आर्थिक महत्व की फसल कही जा सकती है। उन्होने बताया कि प्रति हैक्टयर 300-400 क्विंटल तक लोइयां का उत्पादन मिल जाता है। बाजार में भाव अच्छे मिलने के चलते किसानों को लाखों रूपए की कमाई इस फसल से हो जाती है।

8-10 जनों के लिए दो फल ही काफी

उन्होने बताया कि 8-10 सदस्यीय परिवार के लिए लोइयां के दो फल की सब्जी ही काफी होती है। इसका एक फल 75-100 ग्राम का होता है। सब्जी के अलावा गर्मी से बचाव के लिए यहां के लोग लोइयां का रायता भी बनाते है। फल को छिलका हटाकर कद्दूकस करके उबाला जाता है। फिर, ठंडा होने पर गूदें को छाछ में मिला दिया जाता है। उन्होने बताया कि लोइयां की प्रकूति ठंड़ी होती है। इस कारण गर्मी के दिनों में इसका उपयोग बढ़ जाता है।

मिलते है कई पोषक तत्व

डॉ. समादिया ने बताया कि लोइयां के 100 ग्राम फल में 3.5 से 7.4 प्रतिशतकार्बोहाइड्रेट, 0.18-0.25 प्रतिशत प्रोटीन, 0.25-0.35 फीसदी तक रेशा, 0.10 से 0.20 फीसदी तक वसा, 0.20 से 0.30 प्रतिशत खनिज पाएं जाते है। इसके अलावा कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, पोटेशियम, जैसे पोषक तत्व भी इसमें अधिक मात्रा मेें विद्यमान है। उन्होंने बताया कि इसके 100 ग्राम गूदे से 20-30 कैलोरी तक उर्जा मिलती है। ेउन्होने बताया कि लोइयां पूरी तरह से ऑर्गेनिक है। किसान केवल बीज की बुवाई करता है। इस कारण इसका स्वाद अब भी बरकरार है।


ट्रेंडिंग ख़बरें