स्वस्थ पौध के लिए स्वस्थ नर्सरी जरूरी
(सभी तस्वीरें- हलधर)सब्जियों में कुछ फ सलें ऐसी हैं, जिनके बीज को सीधे खेतों में बोया जाता है। वहीं, कुछ सब्जी फसलों का उत्पादन लेने के लिए नर्सरी में पौध तैयार करनी होती है। जिन सब्जी फसलों की नर्सरी तैयार की जाती है, उनमें अधिकांश उच्च मूल्य वर्ग वाली फसल शामिल होती है। जैसे शिमला मिर्च, टमाटर, खीरा, लौकी, करेला, तुरई, फूलगोभी आदि। इन फसलों के बीज काफी महंगे आते है। एक बीज की कीमत किसान को 8-10 रूपये के मध्य आती है। इसको देखते हुये सरकार भी राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत उच्च मूल्य वाली सब्जी फसलों की पौधरोपण सामग्री पर किसानों को अनुदान मुहैया करवा रही है। ऐसे में जरूरी है कि किसान सब्जी उत्पादन से आय दोगुना करने के लिए वैज्ञानिक तकनीक के साथ खेती करे। सब्जियों की खेती को लेकर हलधर टाइम्स की डॉ. हंसराज सैन से हुई वार्ता के मुख्यांश...
हंसराज सैन, मूलत: जोबनेर -जयपुर के जगमालपुरा गांव के निवासी हैं। वर्तमान में कृषि प्रसार विशेषज्ञ के रूप में कृषि विज्ञान केन्द्र दांता, बाड़मेर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इन्होंने स्नातकोत्तर की शिक्षा स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर से हुई । अब तक इनके 8 शोध पत्र, 6 कृषि लेख और विभिन्न विषयों पर 7 फोल्डर प्रकाशित हो चुके हैं । सैन, वर्तमान में कृषि प्रदर्शनी, किसान सारथी पोर्टल, सीखना प्रबंधन प्रणाली पोर्टल, प्रबंधन सूचना प्रणाली पोर्टल, ग्रामीण कृषि कार्यानुभव आदि के नोडल अधिकारी के रूप में और किसान उत्पादक संगठन व इंक्यूबेशन सेंटर परियोजना के सह नोडल अधिकारी के रूप में कार्य कर रहे हैं ।
पौध को पौधशाला में उगाने से क्या लाभ है ?
नर्सरी अथवा पौधशाला में प्रयुक्त स्थान काफ ी छोटा होता है। जिसके कारण कोमल और नाजुक पौधों की देखभाल आसानी से की जा सकती है। साथ ही, कुछ सब्जियों के बीज छोटे होते है जिनका खेत में वितरण काफ ी कठिन होता है। नर्सरी में तैयार पौध की रोपाई मुख्य खेत में करने पर पौधे एक समान गति से वृद्धि करते हैं और लगभग समान रूप से कटाई अथवा तुड़ाई योग्य हो जाते हैं। नर्सरी में से कमजोर और बीमार पौध को छांटकर स्वस्थ पौधे ही खेत में लगा सकते है।
पौधशाला में बीमारियाँ कम से कम लगे, इसके लिये क्या करना चाहिये ?
कई बार यह देखने में आता है कि पौध उगते ही जड़ गलन/आद्र्रगलन (डेम्पिंग ऑफ और तना गलन फफूंद के साथ-साथ जीवाणु, सूत्रकृमि, खरपतवारों के बीज आदि) से संदूषित हो जाती है, जिससे वह खराब हो जाती है। इनसे बचाव हेतु उपयोग में ली जाने वाली भूमि अथवा मिट्टी का ध्रुमन अथवा शोधन कर लेना चाहिए। भूमि के साथ-साथ प्रर्वधन में प्रयुक्त किये जाने वाले औजार, बर्तन आदि का भी रसायन द्वारा शोधन कर लेना चाहिए। शोधन के लिए रसायनों जैसे फार्मेल्डिहाइड, क्लोरोपिकरीन, मिथाइल ब्रोमाइड इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है।
किसान भाइयों को क्यारियां कैसे तैयार करनी चाहिये ?
नर्सरी वाले स्थान की मिट्टी को अच्छी तरह तैयार करने के पश्चात उसमें सड़ी हुई गोबर की खाद 4-5 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से मिला देनी चाहिये। पौध तैयार करने के लिए समतल क्यारियों के बजाय जमीन से 15-20 सेमी ऊंची उठी हुई छोटी-छोटी क्यारियां उपयुक्त रहती है। लेकिन, क्यारियां 1 मीटर से अधिक चौड़ी नहीं होनी चाहिये। जिससे इनमें सिंचाई, खरपतवार हटाने और पौध संरक्षण आदि कार्य में सुविधा रहे। प्रत्येक दो क्यारियों के बीच में 1.5 से 2 फ ीट जगह छोडऩी चाहिए, जिससे सिंचाई, जल निकास और कृषि कार्य आसानी से किया जा सके। साधारणतया क्यारियाँ 10 फ ीट लम्बी, 3 फीट चौड़ी 0.5 फ ीट ऊँची बनानी चाहिये।
बीजोपचार और बुवाई का तरीका किस प्रकार का होना चाहिये ?
स्वस्थ और उन्नत किस्म का बीज लेकर बुवाई से पूर्व 2 ग्राम फफूंदनाशी दवा जैसे थाइराम/ केप्टॉन/ कार्बेन्डाजिम इत्यादि को प्रति किलो बीज की दर से मिलाकर बीजोपचार करें। बीजों की बुवाई 5 सेमी की दूरी पर कतार बनाकर करें। सामान्यतया नर्सरी में बीजों को छीटक कर बोते है, परन्तु यह विधि ठीक नहीं है। बीजों को कतारों में बोना अच्छा रहता है, इससे नर्सरी में निराई, गुड़ाई में आसानी रहती है और बीज का वितरण भी एक-सा रहता है। बीजों के आकार के आधार पर 0.5 से 1 सेमी की गहराई पर बुवाई करें। बीज बुवाई के पश्चात् उनके ऊपर खाद (वर्मी कम्पोस्ट) और रेत 1:1 अनुपात के मिश्रण की हल्की परत बिछा दी जाती है। ताकि, सिंचाई करते समय बीज इधर-उधर नहीं हो जावे। सर्दियों में कम तापमान के कारण बीजों के शीघ्र अंकुरण के लिए क्यारियों को सूखी घास अथवा काली पॉलीथीन की शीट से ढक देना चाहिए। इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है तथा अंकुरण भी जल्दी होता है, लेकिन अंकुरण होते ही इसे हटा देना चाहिए।
किसान भाईयों को पौध कब और कैसे लगानी चाहिये ?
पौध जब 4-6 सप्ताह पुरानी अथवा 10-15 सेमी. लम्बी और 3-4 पत्तियों वाली हो जाये तब इसकी रोपाई की जा सकती है। पौधरोपण से पूर्व ट्राइकोडर्मा (10 ग्राम/लीटर पानी) अथवा कार्बेण्डाजिम (1 ग्राम/ लीटर पानी) के घोल में 30 मिनट तक पौधे की जड़ों को डुबाकर उपचारित करना चाहिए। पौधरोपण हमेशा सायंकाल में करना चाहिए, जिससे पौधे रातभर में भलीभांति स्थापित हो जाते हैं। बादल अथवा छाया रहने पर रोपाई किसी भी समय की जा सकती है। रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। रोपाई के 7-10 दिनों के बाद यदि कोई पौधा सूख जाए तो उस स्थान पर नई पौध रोपित कर दें