एकीकृत खेती से घटेगा जोखिम बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण और जनसंख्या दबाव

नई दिल्ली 06-Aug-2024 01:37 PM

एकीकृत खेती से घटेगा जोखिम बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण और जनसंख्या दबाव (सभी तस्वीरें- हलधर)

बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण और जनसंख्या दबाव के कारण प्रति व्यक्ति भूमि जोत का आकार निरंतर घटता जा रहा है। भू-जोत का आकार घटना कृषि क्षेत्र में अनेक समस्याओं को जन्म दे रहा है। इससे खेती, किसानों के लिए जटिल और जोखिम भरी हो गई है। जरूरत है किसान की समस्या को केन्द्रित करके कृषि का मॉड़ल विकसित करने की। जिसके उपयोग से किसानो की आय में आशातीत वृद्धि की जा सके। किसान की आय बढ़ाने को लेकर हलधर टाइम्स की शंकरलाल कांटवा से हुई वार्ता के मुख्यांश...

शंकरलाल कांटवा मूलत जयपुर जिले के हिरनोदा गांव के रहने वाले हैं। वर्तमान में पादप संरक्षण विशेषज्ञ के रूप में कृषि विज्ञान केन्द्र दांता-बाड़मेर में एक दशक से ज्यादा समय से अपनी सेवाएं दे रहे है। इन्होंने स्नातक स्नातकोतर की शिक्षा श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर जयपुर से हुई। इनके 8 रिसर्च पेपर 10 कृषि आलेख और विभिन्न विषयों पर 15 फोल्डर का प्रकाशित हो चुके हैं। कांटवा निकरा परियोजना, हैंडीक्राफ्ट प्रॉजेक्ट, डीएसपीपी प्रॉजेक्ट के मुख्य अन्वेषक रह चुके है।  

बढ़ती आबादी कृषि पर क्या प्रभाव डाल रही है? 
देश की बढ़ती जनसंख्या और घटती कृषि जोत किसान का जोखिम बढ़ा रही है। किसान को उत्पाद का वाजिब मूल्य नहीं मिल पाने से किसान खेती छोडऩे को मजबूर हो रहा है। गौरतलब है कि वर्ष 2025 तक देश की जनसंख्या एक अरब 46 करोड़ हो जायेगी। इनके भरण पोषण के लिये अनुमानित भोजन वर्ष 2020 तक अनाज 343, दूध 171, सब्जी 168, फल 81, चीनी 22, खाद्य तेल 13 और मांस-मछली, अण्डा 27 मिलियन टन की आवश्यकता पड़ेगी। ऐसे में कृषि के साथ किसान और देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती है। किसान की आय बढ़ाने के बारे में सरकार के साथ कृषि वैज्ञानिकों को सोचने की जरूरत है। 
किसान की आय में स्थिरता कैसे लाई जा सकती है ?
बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण और जनसंख्या के दबाव और घटती भू-जोत के कारण किसान की आय भी प्रभावित हुई है। कृषि-आधारित विभिन्न व्यवसायों को समन्वित करके लघु और सीमांत किसानों की आय में स्थिरता एवं निरंतरता को बनाए रखा जा सकता है। ऐसे में कृषि और सम्बद्ध गतिविधियों को अलग-अलग अपनाने के बजाए एकीकृत कृषि-प्रणाली आधारित तकनीकी मॉडल अपनाना पड़ेगा। ऐसा करने से किसानों को अतिरिक्त रोजगार और आय के अवसर प्राप्त होगें। 
क्या एकीकृत कृषि प्रणाली से किसान आय को बढ़ाया जा सकता है?
हां, एकीकृत कृषि प्रणाली से किसान आय को बढ़ाने में मदद मिल सकती है। क्योंकि, एकीकृत कृषि प्रणाली का उद्धेश्य किसान परिवार की सभी जरूरत पूरा करना है। ऐसा कृषि मॉडल जिससे किसान की सीमित संसाधन में आय बढ़े, रोजगार का भी सृजन हो। ताकि, बाजार पर किसान की निर्भरता को कम किया जा सके। इससे हम किसान परिवार कि आवश्यकता के हिसाब से अनाज, दाल, तेल, शक्कर, दूध, फ ल, सब्जी, मांस और अण्डा आदि की वर्ष भर कितनी जरूरत है और उसको उगाने के लिए कितनी जमीन की आवश्यकता होती है। इन सभी चीजो का विशेष ध्यान एकीकृत कृषि मॉडल में रखा जाता है। 
एकीकृत कृषि प्रणाली के मुख्य घटक कौनसे है?
कृषि के इस मॉडल में किसान की स्थिति की समग्र रूप से चिंता की गई है। इसमें फसल उत्पादन, पशुपालन, मुर्गी और बतखपालन, मछली, मधुमक्खीपालन, मशरूम उत्पादन, कृषि वानिकी, बायोगैस उत्पादन को शामिल किया गया है। इन गतिविधियों को अपनाकर किसान स्वरोजगार के अवसर पैदा कर सकते है। अपने परिवार के सदस्यो के अलावा दूसरे किसानों को भी रोजगार दे सकते है। गौरतलब है कि ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा बेरोजगार घूम रहा है। समन्वित कृषि प्रणाली में विविधिकरण और सघनीकरण के कारण प्रति इकाई समय, प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक कृषि क्रियाओं के कारण अधिक कृषि मजदूरों की आवश्यकता होती है। इससे ग्रामीण बेरोजगारी को काफी कम किया जा सकता है।


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