स्वस्थ पशु से ज्यादा दुग्ध उत्पादन

नई दिल्ली 26-Nov-2024 12:51 PM

स्वस्थ पशु से ज्यादा दुग्ध उत्पादन

(सभी तस्वीरें- हलधर)

साथ ही, कई बीमारियां पशु के उत्पादन पर कुप्रभाव डालती है। अत: पशु पालक को प्रमुख रोगो के बारे में जानकारी रखना आवश्यक है । ताकि , उचित समय पर उचित कदम उठा कर आर्थिक हानि से बचा जा सके। पशुओं में होने वाली बीमारी और पोषण की समस्या को लेकर डॉ. मेहरचन्द से हलधर टाइम्स की हुई वार्ता के मुख्याशं...

डॉ. मेहरचन्द वर्तमान में वरिष्ठ पशुचिकित्सा अधिकारी के पद पर राजकीय प्रथम श्रेणी पशुचिकित्सालय, बड़ाऊ (खेतड़ी) में पदस्थापित हैं। डॉ. मेहरचन्द मूलत: मोईपुरानी (सिंघाना) के रहने वाले हैं। वर्ष 2003 में इन्होंने पशुचिकित्सा महाविद्यालय, बीकानेर से स्नातक किया। इन्होंने एएचडीपी कॉलेज में प्रिंसिपल के पद से अपना कॅरियर शुरू किया। वर्ष 2005 में पशुपालन विभाग में पशुचिकित्सा अधिकारी के पद पर राजकीय पशुचिकित्सालय, रियाबड़ी (नागौर) में इनकी प्रथम नियुक्त हुई। 

पशुओं में हीमोग्लोबिन्यूरिया रोग क्यों होता है?
यह रोग गाय-भैस में ब्याने के 2-4 सप्ताह के अंदर ज्यादा होता है। गर्भावस्था के आखरी दिनों में भी होने की संभावना रहती है। गाय की तुलना में भैंस वंश में यह रोग अधिक होता है। इसे आम भाषा में लहू मूतना भी कहते है। यह रोग शरीर में फास्फोरस तत्व की कमी से होता है। जिस क्षेत्र कि मिट्टी में इस तत्व कि कमी होती है, वहां चारे में भी ये तत्व कम पाया जाता है। अत: पशु के शरीर में भी फास्फोरस तत्व की कमी आ जाती है। फस्फोरस की कमी उन पशुओं में अधिक होती है जिनको केवल सूखी घास, सूखा चारा या पुराल खिला कर पाला जाता है।

बछडे- बछडिय़ों में पैराटाईफाइड रोग के बारे में जानकारी दें।
यह रोग दो सप्ताह से 3 महीने के बछड़ों में होता है। यह रोग गंदगी और भीड वाली गौशालाओं में अधिक होता है। इस के मुख्य लक्षण तेज बुखार, खाने में अरुचि, सुस्ती। गोबर का रंग पीला या गंदला हो जाता है। बदबू आती है। रोग होते ही पशु चिकित्सक से संपर्क करें।

क्या टीकाकरण सुरक्षित हैं? इसके दुष्प्रभाव क्या हैं?
जी हाँ, टीकाकरण पूर्णरूप से सुरक्षित हैं। टीकों के उत्पादन में पूर्ण सावधानी बरती जाती है। तथा इनकी क्षमता, गुणवत्ता एवं सुरक्षा सम्बंधी परीक्षण किये जाते है, तत्पश्चात ही इन्हें उपयोग हेतु भेजा जाता है। टीकाकरण स्थान पर हल्की सूजन आ जाती है। लेकिन, इससे डरने की जरूरत नहीं है। यह स्वयं ठीक हो जाती है। 

संक्रामक रोग किसानों की आर्थिक स्थिति को कैसे प्रभावित करते हैं। 
संक्रामक रोग पशुओं के विभिन्न अंगों को प्रभावित करके अंतत: कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं। दुग्ध उत्पादन में कमी आ जाती है। भेड़-बकरियों में ऊन का उत्पादन प्रभावित होता है। इसके अतिरिक्त यह रोग मंास उत्पादन एवं उसकी गुणवत्ता को कम करते है। इसके अतिरिक्त ये रोग गर्भपात एवं प्रजनन क्षमता को कम करता हैं। संक्रामक रोग से तात्पर्य सूक्ष्म जीवाणुजनित विषाणु, फंफूद, माइक्रोपलाज्मा आदि से होने वाले रोग से है। संक्रामक रोग मुख्यत: संक्रामक रोगवाहको के सीधे समपर्क में आने से संक्रमित खाद्य पदार्थों, पेय वस्तुओं, संक्रमित पशु से फैलता हैं। ब्रूसेला, लेप्टोस्पाइरा, कैलमाइडिया आदि विषाणु संक्रामक रोग की श्रेणी में आते हैं। इस कारण पशुओं का गर्भपात भी हो जाता है। 

साईलेज क्या होता है? पशु पालक इसे कैसे तैयार कर सकते हैं।
वह विधि जिसके द्वारा हरे चारे अपने रसीली अवस्था में ही संरक्षित रूप में रखा हुआ मुलायम हर चारा होता है,  जो पशुओं को ऐसे समय खिलाया जाता है जबकि हरे चारे का पूर्णतया आभाव होता है। हरे चारे जैसे मक्का, जई, चरी,   को एक इंच से दो इंच की कुट्टी कर लें। ऐसे चारों में पानी का अंश 65 से 70 प्रतिशत होना चाहिए। 50 वर्ग फीट का एक गड्डा मिट्टी को खोद कर या जमीन के ऊपर बना लें।  जिसकी क्षमता 500 से 600 किलो ग्राम कुट्टी घास घास साईलेज की चाहिए। गड्डे के नीचे फर्श वह दीवारों की अच्छी तरह मिट्टी व गोबर से लिपाई पुताई कर लें तथा सूखी घास की एक इंच मोटी परत लगा दें । ताकि,  मिट्टी साईलेज से ना लगे। फिर इसे 50 वर्ग फीट के गड्डे में 500 से 600 किलो ग्राम हरे चारे की कुट्टी, 25 किलोग्राम शीरा व 1.5 किलो यूरिया मिश्रण परतों में लगातार दबाकर भर दें।  घास की तह को गड्डे से 1 से 1.5 फुट ऊपर अद्र्ध चन्द्राकार बना लें। ताकि गड्डे के अंदर पानी और हवा का प्रवेश नहीं हो। मिश्रण को 45-50 दिन बाद आवश्यकतानुसार उपयोग लिया जा सकता है।
 


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