मोटा अनाज किसानी और अर्थव्यवस्था

नई दिल्ली 18-Apr-2023 05:03 PM

मोटा अनाज किसानी और अर्थव्यवस्था (सभी तस्वीरें- हलधर)

मिलेट ने पश्चिम देशों में लोकप्रियता हासिल की है। क्योंकि, यह ग्लूटेन  मुक्त और उच्च प्रोटीन, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट युक्त होने के साथ ही कम सिंचाई और कम समय में पककर तैयार हो जाते है। यह किसानों के लिए भी फायदेमंद है।  भारत सरकार मिलेट के उत्पादन को बढ़ाने के लिए 2018 से प्रयास कर रही है। वहीं,  पोषण विविधता बढ़ाने के लिए वर्ष -2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में पूरी दुनिया मे मनाया जा रहा है। भारत मिलेट का विश्व में अग्रणी उत्पादक और पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक देश है। आमतौर पर मिलेट को मोटा अनाज समझा जाता है, परंतु मोटे अनाज में गैर मिलेट समूह भी आते हैं जैसे कि जौ और मक्का आदि। मिलेट पहला प्राचीन भोजन है। इसकी खेती 131 देशों में की जाती है, जो कि एशिया और अफ्रीका में 59 करोड़ लोगों का पारंपरिक भोजन है। मिलेट्स को लेकर हलधर टाइम्स की कृषि विशेषज्ञ डॉ. विकास पावडिय़ा से हुई वार्ता के मुख्याशं...

जीवन परिचय

डॉ विकास पावडिय़ा कृषि महाविद्यालय नागौर, में सहायक प्रोफेसर (कृषि अर्थशास्त्र) के पद पर कार्यरत हैं । डॉ पावडयि़ा ने 35 रिसर्च पेपर, पाँच बुक चैप्टर, 15 पॉपुलर आर्टिकल, पांच किताबें प्रकाशित हुई है। वहीं, 20 टीवी और रेडियो का प्रसारण हुआ है। इन्होंने पाँच उद्यमिता विकाश कार्यक्रम और एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन करवाया है। उन्होंने 12 रिसर्च पेपर कांफ्रें स में प्रस्तुत किए हैं । उनके पास थाईलैंड और मोरोक्को का विदेश एक्सपोजर है। डॉ पावडयि़ा डी एस टी के एक प्रोजेक्ट में सह अन्वेषक की भूमिका निभा रहे है।

मोटे अनाज का विश्व पटल पर क्या स्टेटस है?

मोटे अनाज जिनमें मुख्यत बाजरा, ज्वार, रागी, सावा, चीना, कुटकी, कागंनी है । मोटे अनाज का इतिहास 8 हज़ार साल पुराना है जिसके अंदर ज़्यादातर सबसे पहले खेतों में उत्पादित फसलों के रूप में माना जाता है । विश्व में मोटा अनाज 89.17 मिलियन मेट्रिक टन है जो कि विश्व के 74 मिलियन हैक्टयर पर उत्पादित हो रहा है। भारत का विश्व में 15 प्रतिशत हिस्सा है जिसमें 15.53 मिलियन टन उत्पादन 12.53 मिलियन हैक्यर में हो रहा है इसकी उत्पादकता भारत में 12.37 क्विंटल प्रति हैक्टयर है।

मोटे अनाज की को फिर से पूर्वरूप में करने की ज़रूरत क्यों पड़ी?

जब देश आज़ाद हुआ 1950-51  में 36.10 करोड़ जनसंख्या के लिए 50.82 मिलियन टन का उत्पादन हो रहा था। वहीं पर आज 141 करोड़ जनसंख्या के लिए कुल अनाज 323.5 मिलियन टन पर पहुँच गया। आज उत्पादन में हम आत्मनिर्भर हो चुके हैं । अब ज़रूरत है कि हम गुणवत्ता और न्यूट्रीशनल वैल्यू पर ध्यान दे।

इसके लिए क्या प्रयास चल रहे हैं

1965 मे मोटे अनाजों का सेवन 29 किलोग्राम प्रति व्यक्ति था। वही उपभोग 2022 में चार किलोग्राम प्रति व्यक्ति रह गया हैं। इसलिए ज़रूरी हो जाता है की उपभोग को बढ़ाने और लोगों को मोटे अनाजों की विशेषताओं से अवगत कराने के लिए हमें 2018 में राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया। वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष के रूप में मना रहे हैं। साथ ही, सरकार कई सारी राष्ट्रीय योजनाओं से इसके उत्पादन पर औरअनुसंधान पर ध्यान दे रही है। 2014-2022 के बीच में अकेले बाजरे की ओर लगभग 52 किस्मों का ईजाद किया गया। लेकिन, ज़रूरी यह हो जाता है कि किसान और उपभोक्ता तक पहुँचे, जो कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से पहुँचाई जा सकती है।

किसानों के लिए मोटे अनाज क्यों महत्वपूर्ण है?

राजस्थान की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए हैं बाजऱा जैसे मोटे अनाज का उत्पादन बहुत आवश्यक हो जाता है। क्योंकि, राजस्थान की 2 प्रतिशत कृषि में से 46 प्रतिशत पशुपालन की हिस्सेदारी है। इसलिए चारा के रूप में इस्तेमाल करने के लिए बाजरे और ज्वार का उत्पादन ज़रूरी हो जाता है। क्योंकि, बाजरे में अनाज और चारा का अनुपात 1:2.5 है जबकि गेहूँ में 1:1 और चावल में 1:1.3 ही है । साथ ही, राजस्थान में बारिश कम होने की वजह से बाजरा आसानी से उत्पादित किया जा सकता है। क्योंकि, एक किलोग्राम बाजरे के उत्पादन में 400 लीटर पानी की ज़रूरत पड़ती हैं। जबकि एक किलोग्राम गेहूं के उत्पादन में 2000 लीटर पानी की ज़रूरत पड़ती है। वहीं पर एक किलोग्राम चावल के उत्पादन के लिए 4000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। बाजरा ग्लूटेन फ्री होने की वजह से हैं कई सारे रोगों से बचा जा सकता है।ं इसके न्यूट्रीशनल मूल्यों से ख़ुद को लाभान्वित किया जा सकता है। पेट का अल्सर, कैंसर के रिस्क कम, ब्लड शुगर कंट्रोल, पाचन तंत्र में सुधार, सीलिएक रोग मे और हृदय के स्वास्थ्य में भी लाभदायक है।

मोटे अनाज में किसान की आर्थिकी किस तरह से देखी जा सकती है?

बाजरा किसानों को आय का एक स्थिर स्रोत प्रदान करता है । क्योंकि यह सूखा प्रतिरोधी हैं और मौसम संबंधी घटनाओं के कारण विफ लता के लिए कम संवेदनशील हैं। बाजरा उत्पादन के लिए कम प्रारंभिक पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। 2020 में वैश्विक बाजरा बाजार का मूल्य 9.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और 2021 से 2028 तक 5 प्रतिशत की सीएजीआर से बढ़ते हुए 2028 में 14.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।


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