पशु आहार में यूरिया से प्रोटीन पूर्ति का किफायती समाधान
(सभी तस्वीरें- हलधर)पशुओं के लिए प्रोटीन के मुख्य स्त्रोत हरे चारे, चूनी, चोकर और खलियां है। जब हरे चारे की उपलब्धता कम रहती है और पशुओं को केवल भूसे, पुआल, कड़वी आदि पर जीवन निर्वाह करना पड़ता है। पशुपालकों को सूखे चारे के साथ काफी मात्रा में खलियां आदि खिलानी पड़ती है, जिससे पशुओं की प्रोटीन सम्बन्धी आवश्यकता पूर्ण हो सके। इससे लागत में इजाफा होता है। यदि किसान यूरिया का उपयोग करता है तो काफी बचत होती है। एक किलोग्राम यूरिया में 7-9 किलोग्राम खली के बराबर नत्रजन होती है । जब, पशु को यूरिया खिलायी जाती है तो रोमान्थ में यह अमोनिया गैस में बदल जाती है और सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा प्रोटीन में परिवर्तित हो जाती है। पशु शरीर की प्रोटीन की कुल आवश्यकता का एक तिहाई हिस्सा यूरिया द्वारा पूर्ण किया जा सकता है । पशु आहार में यूरिया उपचार को लेकर हलधर टाइम्स की डॉ. सुनील कुमावत से हुई वार्ता...

पशुओं को यूरिया खिलाने की विभिन्न विधियां वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गयी है । जिनमें से कुछ निम्न है-
यूरिया- गुड़ का घोल बनाकर:- इस विधि में 150 ग्राम यूरिया और 250 ग्राम गुड़ का अलग-अलग एक-एक लीटर पानी में घोल बनाकर 10 किलोग्राम सूखे चारे में अच्छी तरह मिलाकर पशुओं को खिलाया जाता है।
छिड़काव विधि:- इस विधि में 1.5 किलोग्राम यूरिया, आधा किग्रा. साधारण नमक, आधा किलो खनिज लवण मिश्रण तथा 20 ग्राम बिटाविलैन्ड का 10 लीटर पानी में घोल बनाकर एक क्विंटल भूसे पर छिड़काव करके सुखा लिया जाता है। इस विधि से तैयार भूसे को तुरन्त खिलाया जा सकता है अथवा फिर प्लास्टिक के कन्टेनर में भरकर सील करके 2-3 सप्ताह तक रख जा सकता है। रखने से भूसे का किण्वन होकर यह और अधिक रोचक हो जाता है। इस विधि से तैयार भूसे 2-3 सप्ताह में इस्तेमाल कर लेना चाहिए।
यूरिया द्वारा भूसा उपचारित करने का तरीका क्या है?
इस विधि में 4 कि.ग्रा. यूरिया को 65 लीटर पानी में घोलकर एक क्विंटल भूसे पर छिड़का जाता है। पुन: एक क्विंटल भूसा इसी के ऊपर डालकर फिर 65 लीटर पानी में 4.0 किग्रा. यूरिया के घोल का छिड़काव किया जाता है और दबाया जाता है। इस प्रकार तरह के ऊपर तह लगाते रहते है। जब वांछित मात्रा से भूसा उपचारित हो जाए तो अन्तिम तह पर सूखा भूसा डालकर यूरिया का घोल नहीं छिड़कते और इस पूरे ढेर को तिरपाल अथवा पोलीथीन आदि से अच्छी से अच्छी तरह ढककर हवा रहित कर दिया जाता है। 21 दिन बाद एक किनारे से इसे खोलकर जितना भूसा एक समय में खिलाना है निकालकर फैला दिया जाता है जिससे उसमें उपस्थित गैस की दुर्गन्ध समाप्त हो जाए। इस विधि से उपचारित भूसे को पशु बहुत चाव से खाते है। इसकी पाचकता और क्रुड प्रोटीन का प्रतिशत भी बढ़ जाता है।
यूरिया खिलाने के दौरान पशुपालक को सावधानियां रखनी होती है ?
यूरिया खिलाना प्रारम्भ करते समय विशेषज्ञ की सलाह और देखरेख अनिवार्य है। बताई गयी मात्रा से अधिक अथवा मनमानी विधि से यूरिया नहीं खिलाए। पशुओं को यूरिया अथवा उपचारित भूसे की मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ाकर बतायी गयी सीमा पर ले जाए, प्रथम दिन में ही पूरी मात्रा देना प्रारम्भ नहीं करें। छ: माह से कम आयु के बछड़े-बछडयि़ों को यूरिया न खिलाए। बीमार पशुओं को यूरिया नहीं खिलानी चाहिए। यूरिया का घोल पहले से बनाकर नहीं रखना चाहिए । इसे सदैव प्रयोग के समय ही बनाए। क्योंकि, यदि यह किसी पशु ने पी लिया तो नुकसान हो सकता है। यूरिया को सदैव पशुओं की पहुंच से दूर रखना चाहिए। यदि पशु ने यूरिया अथवा इसका घोल पी लिया हो तो तुरन्त सिरका अथवा नीबू का रस पिलाएं। इसके अतिरिक्त गुड़, दला हुआ गेहूँ, जौ मक्का आदि देना भी लाभकारी रहता है।
यूरिया शीरा तरल मिश्रण कैसे तैयार किया जाता है?
इस विधि में दो किग्रा. यूरिया को 2 लीटर पानी में घोलकर 100 किग्रा. शीरे में मिला दिया जाता है। इसमें 2 किग्रा. खनिज लवण मिश्रण, एक किग्रा. नमक और 20 ग्राम वीटाविलेन्ट मिलाकर उबलने तक गर्म किया जाता है। यह मिश्रण 1 किग्रा प्रति 100 किलोग्राम शरीर भाग के अनुसार पशुओं को खिलाया जाता है अथवा फिर हरे चारे और भूसे के अतिरिक्त जितना पशु खाना चाहे दिया जा सकता है।