आम में कीट-रोग प्रबंधन (सभी तस्वीरें- हलधर)
आम की खेती प्रदेश के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, सिरोही, चित्तौडग़ढ़, प्रतापगढ़, उदयपुर जिलें में की जाती है। आम को फलों का राजा कहा जाता है। आम का उपयोग कच्चे और पक्के दोनों रूप में होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह उत्तम फल है। यह विटामिन ए और बी का अच्छा स्त्रोत है। लेकिन, इस फसल को कई कीट नुकसान पहुंचाते है। कीटों के कारण उत्पादन के स्तर में गिरावट तो आती ही है। साथ ही, किसान को भी आर्थिक नुकसान होता है। आम की फसल में कीट-व्याधि प्रबंधन इस तरह किया जा सकता है।
कीट
मिली बग : पेड़ के चारों ओर पोलीथीन की 30-40 सेमी. चौड़ी पट्टी जमीन से 60 सेमी. की ऊँचाई पर तने के चारों तरफ लगायें। इसके निचले भाग में 15-20 सेमी. तक ग्रीस का लेप कर दें।
छाल भक्षक कीट : नियंत्रण हेतु रूई को पेट्रोल अथवा केरोसिन में भीगाकर कीट की सुरंग के अन्दर भर दे। ऊपर से मिट्टी लगा दें।
जाला कीट (टेन्ट केटरपिलर) : जुलाई के महीने में क्विनालफॉस आधा ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
फुदका : नीम तेल 3000 पीपीएम प्रति 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल का छिड़काव करेें। अथवा क्यूनालफॉस 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
फल मक्खी : मेलाथियान 0.08 फीसदी की दर से घोल बनाकर डिब्बे में भरकर पेड़ पर लटका दें। एक हैक्टयर बाग में 10 डिब्बे लटकाएं।
गाल मीज : इनके रोकथाम के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करना चाहिए। आधा फोस्फोमिडान प्रति लीटर पानी में मिलाकर बौर घटने की स्थिति में छिड़काव करें।
रोग
चूर्णी फफंूद : नियंत्रण हेतु घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम अथवा कैराथेन 1 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर दो बार छिड़काव करें।
श्यामव्रण : नियंत्रण के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम अथवा मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें। रोग ग्रस्त टहनी और पत्तियों को काट कर नष्ट कर देंं।
कायकीय विकार - गुच्छा-मुच्छा रोग : रोगी भाग को नष्ट करने के साथ 200 पीपीएम अल्फा-नेफ्थेलीन एसीटिक अम्ल का छिड़काव करें । शीघ्र आने वाले (अगेती) पुष्पक्रम को तोड़ दें।
एकान्तर फलन : उचित समय पर खाद, उर्वरक और वृद्धि नियंत्रक का प्रयोग, सिंचाई, निराई, गुड़ाई और कीट- व्याधि नियंत्रण से अनियमित फलन की समस्या को कम किया जा सकता है।