आवंला बगीचा की स्थापना (सभी तस्वीरें- हलधर)
अनुष्का कुन्तल, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर
औषधीय गुण और पोषक तत्वों से भरपूर ऑवला के फल प्रकृति की एक अभूतपूर्व देन है। ऑवला के फलों में विटामीन सी (500-700 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम) और कैल्शियम, फ ास्फोरस, पोटेशियम और शर्करा प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। इसके अलावा टेनिन जैसे गैलिक और इलेजिक अम्ल पाये जाते हैं, जो विटामिन ''सी'' को आक्सीकरण (आक्सीड़ेसन) से बचाते है, जिससे विटामिन ''सी'' की उच्च मात्रा इनके परिरक्षित करने पर भी बनी रहती है। आंवले की खेती भारत वर्ष में की जाती है। परन्तु सहिष्णु फल होने के कारण सूखे व अनउपजाऊ क्षेत्रों में इसकी फसल की जा सकती है।
भूमि:- जल निकास युक्त गहरी बलुई दोमट भूमि उपयुक्त। पीएच- 6.5-9.5।
किस्में:- आंवले में बनारसी, चकइया, कंचन, नरेन्द्र आंवला -7 (नीलम), 6(कृष्णा), 4, 8, 9,10, बलवंत, फ ्रान्सिस, , आनंद-2 , बीएसआर.-1, 2।
प्रवर्धन:- वानस्पतिक विधि से पौधे तैयार करने के लिए पहले बीज बोकर मूलवृन्त तैयार किये जाते है। बीज बोने के लिए भूमि की सतह से 15-20 से.मी. ऊॅची और 3 गुना 1 वर्ग मीटर लम्बी चौड़ी क्यारी बनाते हैं। उनमें जुलाई-अगस्त में बीज बोते हैं। अंकुरित पौधों को लगभग एक माह बाद समतल क्यारियों में 20 गुना 20 सेमी. की पूरी पर लगाना चाहिए । जिससे इन पर अगले वर्ष जुलाई में कालिफायन किया जा सके। पौधशाला में रोग से बचाव के लिए डायथेन एम-45 (0.3 प्रतिशत घोल) का 10-15 दिन के अन्तराल से छिड़काव करना चाहिए। पॉलीथीन की थैली (30 गुना 12सेमी.) में ंखाद, चिकनी मिट्टी और बालू बराबर अनुपात में भरकर भी मूलवृन्त तैयार किये जा सकते है। इन थैलियों को लगभग 30 सेमी. गहरी क्यारियों में सीधी रखकर मिश्रण भरते हुए जमाते हैं तथा फरवरी-मार्च में बीज बो देते हैं जो 5-7 दिन में अंकुरित हो जाते है। जो 8-10 माह बाद पेन्सिल आकार के चश्मा चढ़ाने योग्य हो जाते हैं। कालिकायन जुलाई से सितम्बर तक किया जा सकता है। कालिकामन पैबन्दी चश्ता, विरूपित छल्ला और साफ्टवुड़ ग्राफ्टिंग विधि से कलमी पौधे तैयार किये जा सकते है। पुराने बीजू पेड़ों को षिखर रोपण (टॉप वर्किंग) करके भी कलमी पेड़ों में परिवर्तित किया जा सकता है।
बीज उपचार: बाविस्टन 2 ग्राम प्रति किग्रा. बीज। बीज को 20-24 घण्टे 80 डिग्री सेल्सियस गरम पानी में अथवा 500 पी.पी.एम. जेब्रेलिक एसिड में भिगो कर बोने से अंकुरण शीघ्र होता है।
कतार
गढ्ढे की तैयारी : गर्मियों के दिनों में 1 मी. लम्बा गुना 1 मी. चौड़ा गुना 1 मी. गहरा आकार के गढ्ढे खोदकर खुला छोड़ देते है, जिससे उनमें छिपे हानिकारक कीटाणु धूप अथवा चिडय़ों द्वारा नष्ट हो जायें। फिर गढ्ढे में दो भाग मिट्टी, एक भाग अच्छी सड़ी गली गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट और 5 प्रतिशत क्यूनॉलफ ॉस (50-100 ग्राम) मिश्रण से और उसमें पानी भर देते है। मौसम का सही समय आने पर गढ्ढों के बीचों-बीच आंवले के पौधे लगाना चाहिए। आंवले की अच्छी उपज के लिए 5-10 प्रतिषत अन्य किस्मों के पौधे लगाना चाहिए
पौध रोपण:- आंवले का बाग लगाने के लिए भूमि को रेखांकित करना चाहिए। आंवले के पेड़ बड़े होने के कारण पौधे से पौधे व कतार से कतार की दूरी दोनों ही 8-10 मीटर रखते है। ।
खाद एवं उर्वरक का प्रयोग:- सामान्यता: खाद की मात्रा भूमि की उर्वरा शक्ति और पौधे की आयु पर आधारित है। आंवले के पौधों मे ंदिये जाने वाले पोषक तत्वों का विवरण निम्नानुसार है:-
पौधे की आयु (वर्षों में) |
गोबर की खाद (कि.ग्रा प्रति पौधा) |
नत्रजन (ग्राम में) |
फास्फोरस (ग्राम में) |
पोटाष (ग्राम में)
|
1 |
5 |
100 |
50 |
100 |
2 |
10 |
200 |
100 |
200 |
3 |
15 |
300 |
150 |
300 |
4 |
20 |
400 |
200 |
400 |
5 |
25 |
500 |
250 |
500 |
6 |
30 |
600 |
300 |
600 |
7 |
40 |
700 |
350 |
700 |
8 |
45 |
800 |
400 |
800 |
9 |
50 |
900 |
450 |
900 |
10 वर्ष या अधिक |
55 |
1000 |
500 |
1000 |
गोबर की खाद की सम्पूर्ण मात्रा, नत्रजन, की आधी मात्रा फास्फोरस व पोटाष की सम्पूर्ण मात्रा फूल आने से पहले जनवरी व फरवरी महीने में तथा शेष नत्रजन की मात्रा जुलाई-अगस्त में देते है।