मिट्टी में पोषक तत्व और जैविक सामग्री का वर्तमान परिदृश्य
(सभी तस्वीरें- हलधर)
माइक्रो और मैक्रो पोषक तत्वों का संतुलन
नाइट्रोजन , फॉस्फोरस और पोटाश जैसे स्थूल पोषक तत्वों का अधिकतम उपयोग हो रहा है। एक औसत भारतीय किसान प्रति हैक्टयर 150-200 किग्रा नाइट्रोजन, 50-75 किग्रा फॉस्फोरस और 30-40 किग्रा पोटाश का उपयोग करता है। इसके परिणामस्वरूप, मिट्टी में जिंक, आयरन, बोरॉन, कॉपर जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की भारी कमी पाई गई है। राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार, भारतीय मिट्टी में लगभग 48 प्रतिशत जिंक, 11 प्रतिशत आयरन और 7 प्रतिशत बोरॉन की कमी दर्ज की गई है।
जैविक सामग्री की कमी
जैविक सामग्री, जो मिट्टी की संरचना और जल धारण क्षमता के लिए महत्वपूर्ण है, में भी बड़ी गिरावट आई है। एफएओ
की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा औसतन 0.5 से 0.75 प्रतिशत के बीच है। जबकि, स्वस्थ मिट्टी के लिए यह 1.5 से 2.5 प्रतिशत होनी चाहिए। कम जैविक सामग्री मिट्टी के पोषण चक्र और सूक्ष्मजीव गतिविधि को प्रभावित करती है। जिससे मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता में गिरावट आ रही है।
2030 तक संभावित परिणाम
मिट्टी की उर्वरता में गिरावट
पोषक तत्वों का असंतुलन और जैविक सामग्री की कमी मिट्टी की उर्वरता को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी। एफएओ की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारत की 50 प्रतिशत कृषि भूमि में मिट्टी की उर्वरता में 20 प्रतिशत से अधिक की गिरावट हो सकती है।
फसल उत्पादन में कमी
असंतुलित पोषक तत्वों के कारण फसलों की गुणवत्ता और मात्रा में कमी आएगी। मिट्टी की सेहत में गिरावट के चलते 2030 तक फसल उत्पादन में 15 से 25 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है।
पर्यावरणीय क्षति
अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों का उपयोग जल स्रोतों को प्रदूषित कर सकता है, जिससे जल जीवन और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारत के जल स्रोतों में नाइट्रेट और फॉस्फेट प्रदूषण 25 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
खाद्यान्न की पोषण गुणवत्ता में गिरावट
पोषक तत्वों के असंतुलन से उपज की पोषण गुणवत्ता में गिरावट होगी, जिससे खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। आईसीएआर के अनुसार, 2030 तक, भारतीय गेहूं और चावल की पोषण गुणवत्ता में 10 से 15 प्रतिशत की कमी हो सकती है।
समाधान और सुझाव
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का प्रभावी क्रियान्वयन किया जाना चाहिए, जिससे किसानों को उनकी मिट्टी की वास्तविक स्थिति की जानकारी मिल सके।
जैविक और प्राकृतिक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए । ताकि, मिट्टी में जैविक सामग्री की मात्रा बढ़े और सूक्ष्म पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखा जा सके।
फसल चक्रीकरण और समेकित पोषक तत्व प्रबंधन जैसी तकनीकों को अपनाया जाना चाहिए।
भूपेंद्र सिंह पथैना, वरिष्ठ अधिकारी प्रशासन (उद्यान)