अमरूद-संतरे में कीट-रोग नियंत्रण
(सभी तस्वीरें- हलधर)अमरूद और संतरा की फसल किसानों के लिए लाभकारी है। लेकिन, उचित सार-संभाल के अभाव में कीट-रोग की अधिकता किसान का मुनाफा गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। कीट-रोग की अधिकता के कारण कई बार तो किसान को बगीचा भी नष्ट करना पड़ जाता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि किसान खेत में पौध रोपाई से उत्पादन मिलने के बाद तक पौधों से जुड़ी उन्नत शस्य क्रियाएं अपनाएं । साथ ही, कीट-रोग को खेत में पनपने से रोकने के लिए समय-समय पर खरपतवार का नियंत्रण करें। गौरतलब है कि संतरा और अमरूद से पेय और खाद्य उत्पादन भी तैयार होते है।
अमरूद
फ ल मक्खी :- मैलाथियान 50 ईसी का एक मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।
छाल भक्षक :- सुरंगों को साफ करके मिट्टी का तेल अथवा पेट्रोल से भीगा हुआ रूई का फोया सुरंग में भर कर ऊपर से मिट्टी का लेप कर दे।
उखठा रोग :- कार्बेण्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 20 लीटर घोल प्रति पेड़ प्रयोग करें।
श्याम वर्ण :- नियत्रंण के लिए 3:5:50 बोर्डो मिश्रण अथवा मैन्कोजेब का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर 10-15 दिन के अन्तराल से छिड़काव करना चाहिए।
संतरा
नींबू पर्ण सुरंगा, नींबू का साइला कीट, शाल्क कीट, मुल ग्रन्थि सूत्रकृमी नियत्रंण के लिये मैलाथियान 0.2 प्रतिशत को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे।
रस चूसक कीट :- बगीचे में फॉस्फोमिडान के 0.05 प्रतिशत, इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मिली प्रति लीटर घोल का छिड़काव करना चाहिये।
साइला :- नियंत्रण के लिये पौधे पर डाईमिथोएट 30 ईसी 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़़काव करना चाहिए। फ फंू दी रोग से बचाव के लिये पौधे पर नीला थोथा के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करे।
गोदांति रोग :- तने पर बने हुए गोंद के थैले को खुरचकर साफ करने के बाद नीला थोथा का लेप लगाना चाहिए।
कैंकर रोग :- निदान हेतु स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के 200 पीपीएम (200 मिग्रा. दवा/लीटर पानी) घोल का छिड़काव करना चाहिए।