मेहन्दी की खेती के लिए नर्सरी स्थापना (सभी तस्वीरें- हलधर)
प्रदेश में मेहन्दी की खेती लगभग 40 हजार हैक्टयर क्षेत्र में की जाती हैं। जिसमें से अकेले पाली जिले मे लगभग 95 प्रतिशत क्षेत्र आता हैं। पाली जिले की सोजत, मारवाड जंक्शन और रायपुर तहसील में मेहन्दी का 90 प्रतिशत क्षेत्रफल हैं। मेहन्दी की सूखा सहने की क्षमता, गहरे जड़ तंत्र के कारण किसानो को अच्छी आय देती हैं। एक बार स्थापित हो जाने पर इसकी झाड़ी 20-25 वर्षो तक टिकी रहती हैं। किसानों द्वारा इसकी खेती ज्यादातर बिना उर्वरक के प्रयोग और न्यूनतम प्रबंधन के साथ वर्षा आधारित फ सल के रूप में की जाती हैं। मेहन्दी एक बहुवर्षीय झाड़ी होने के कारण लघु चक्रीय वानिकी रोपण के रूप में एक अच्छा विकल्प देती हैं। इसके साथ ही यह अपने पर्ण समूह अवशेषों से न केवल मृदा आवरण को निरंतर बनाये रखती है।ं बल्कि, सीमान्त शुष्क क्षेत्र में स्वच्छ पर्यावरण निर्माण में भी सहयोग करती हैं। मेहन्दी आधारित कृषि वानिकी पद्धति जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का प्रतिरोध करने में भी मदद कर सकती हैं।
भूमि:- क्षारीय-लवणीय भूमि उपयुक्त नहीं।
बीज दर- 6-8 किग्रा प्रति हैक्टयर।
उन्नत किस्म: एमएच-01, 02, हिना, धन्धुका।
प्रवर्धन: मेहन्दी की बुवाई प्राय: बीज द्वारा की जाती हैं। मेहन्दी का बीज काफ ी बारीक होता हैं। अत:मार्च-अप्रैल के महीने में छायादार जगह पर उठी हुई क्यारियां बना कर मेहन्दी के बीज को छिडक दिया जाता हैं। क्यारियों में बीज छिड़ककर हल्की सिंचाई की जाती हैं। ध्यान रहे की 15 से 20 दिन तक क्यारियां उपर से सूखने न पाए। 15-25 दिन में मेहन्दी का लगभग सारा बीज उग जाता है। खरपतवार उगने पर इन्हें अवश्य निकाल देना चाहिए। आवश्यकता पडऩे पर नीम की खली का घोल पौधों पर छिड़का जा सकता हैं। इससे पौधे स्वस्थ और कीट रहित रहते हैं।
खेत की तैयारी:- ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करके प्रति हैक्टयर 250 किग्रा जिप्सम वर्षा से पहले मिट्टी में मिलाएं। वर्षा से पहले मिट्टी पलटने वाले हल से 15-20 सेमी गहरी जुताई करें। एक गहरी जुताई और दो हेरोइंग कर ले । इससे वर्षा जल का संचय खेत में होता है। पहली वर्षा के साथ खेत में 45-60 सेमी की दूरी पर 30 सेमी चौड़ा और 15-20 सेमी गहरा कुंड बना लें। जब कुंड बनाये तो खेत में 25 किलोग्राम क्लोरोपायरीफ ोस चूर्ण मिला देना चाहिए। खेत के चारो तरफ मेड बनाये और कुंडो में वर्षा जल संग्रहित होने दे। कुडो में नमी लम्बे समय तक बनी रहती हैं। मेड 2-3 फिट ऊँची हो और कुंड ढलान की विपरीत दिशा में हो ।
पौधों की रोपाई: अंकुरण के तीन माह बाद अथवा जुलाई अगस्त में । जब नर्सरी में पौध 40-45 सेमी के हो जाएं। रोपाई के समय से पूर्व मैलाथियान 5प्रतिशत चूर्ण अथवा क्यूनालफ ोस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टयर की दर से मिट्टी में मिला दें । ताकि, दीमक के प्रकोप से पौधे का बचाव हो सके।
कतार से कतार की दूरी- 1 मीटर
पौधें से पौधें की दूरी- 40 सेमी.
खाद-उर्वरक: 5 टन गोबर खाद, प्रथम वर्ष 40 किग्रा. फ ास्फ ोरस, 40 किग्रा नत्रजन प्रति हैक्टयर। पुराने खेतो में नत्रजन और फ ॉस्फ ोरस की मात्रा 60 और 40 किलो प्रति हैक्टयर रखें। फ ास्फ ोरस पहली वर्षा के साथ हल की कुंद के पीछे डाले। 45-60 सेमी की पंक्ति की दुरी में बेलो से हल चलाए जा सकता हैं।